काम की बात

शुभ मुर्हूत के तहत दोपहर 12 बजे के बाद रखी जाएगी आधारशिला

टाइम कैप्सूल 200 फीट नीचे रखा जाएगा


देश में पांच अगस्त एक ऐतिहासिक दिन बन गया है। आज लंबे समय के इंतजार  के बाद राममंदिर का भूमि पूजन किया जा रहा है। जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया जाएगा। इस कार्यक्रम में लगभग 175 लोग शामिल होंगे। इससे पहले 200 लोगों की सूची तैयार की गई थी। लेकिन कोरोना को ध्यान में रखते हुए संख्या कमी की गई। 

अहम बिंदु

  • भूमि पूजन का कार्यक्रम
  • विपक्ष भी आया साथ
  • फैसले का इतिहास

भूमि पूजन और मंदिर की आधारशिला रखने से पहले पीएम हनुमानगढ़ी पर पूजा करेंगे। ऐसा माना जाता है कि भगवान हनुमान के आर्शीवाद के बिना भगवान राम का कोई काम शुरु नहीं किया जाता है। इसलिए पहले भगवान हनुमान की पूजा होगी। जिसके बाद पीएम 10 मिनट में रामलला विराजमान का दर्शन-पूजन करेंगे। दोपहर 12 बजकर 44 मिनट और 15 मिनट पर शुभ मुर्हूत के तहत आधारशिला की स्थापना करेंगे। 

भूमि पूजन कार्यक्रम में पीएम मोदी के अलावा, संघ प्रमुख मोहन भागवत, यूपी को मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ, योग गुरु बाबा रामदेव, स्वामी अवधेशानंद, चिदानंद, मुनि, सुधीर दहिया, राजू स्वामी शामिल होंगे। इसके अलावा 36 आध्यत्मिक परंपराओं से संबंध रखने वाले 135 पूज्य संत भी शामिल होंगे। भूमि पूजन के मंच पर श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत,राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद होंगे।

भूमि पूजन के बाद राम मंदिर को इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए 200 फीट नीचे टाइम कैप्सूल डाला जाएगा। यह कैप्सूल 21 किलो का चांदी की ईट की तरह है। जिस पर रामजन्मभूमि का विस्तृत इतिहास लिखा है। इसके अलावा समय और तिथि दी होगी। ताकि आने वाली पीढ़ी राम मंदिर के बारे में जान सकें। 

भूमि पूजन को लेकर पूरे देश मे खुशी की लहर है। इस बीच विपक्ष भी अपनी हिस्सेदारी दे रहा है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा “सरलता, साहस, संयम, त्याग, वचनबद्धता दीनबंधु राम नाम का सार है। राम सबमें हैं, राम सबके साथ है। भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने”।

वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम कमलानाथ ने कल हनुमान चालीसा का पाठ कराया। इसके साथ ही शिलान्यास के लिए 11 चांदी की ईटें भी भेजी गई। यह कांग्रेस सदस्यों से दान के साथ खरीदा गया था। 

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राम मंदिर भूमि पूजन कार्यक्रम से पहले कई तरहे क सवाल उठने लगे हैं। इनमें सबसे बड़ा सवाल यह था कि पूरी लड़ाई में अगली पंति में खड़े रहे बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को आयोजन में क्यों नहीं बुलाया गया। जिसके जवाब में यह बताया गया कि कोरोना बहुत ज्यादा फैला हुआ है और इनकी उम्र भी ज्यादा है। इसलिए इनके लिए लाइव वीडियो की व्यवस्था की जाएगी। बीजेपी की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने भकड़ते हुए शब्दों मे कहा कि राम के नाम पर बीजेपी का पेटेंट नहीं हो सकता है। राम का नाम अयोध्या या बीजेपी के बाप की  बपौती नहीं है। ये सबका हैं, जो बीजेपी में हैं या नहीं है, जो किसी भी धर्म को मानते हो , जो राम को मानते हैं राम उनके हैं। 

इस बीच पूजन से पहले लालकृष्ण आडवाणी ने कहा “ कभी-कभी किसी के जीवन में महत्वपूर्ण सपने आने में काफी समय लगता है, लेकिन अब उन्हें आखिरकार पता चलता है, तो इंतजार बहुत सार्थक हो जाता है। ऐसा ही एक सपना, मेरे दिल के करीब है जो अब पूरा हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रख रहे हैं। यह वास्तव में मेरे लिए ही नहीं ब्लकि सभी भारतीयों के लिए एक ऐतिहासिक और भावनात्मक दिन है।

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राम मंदिर बनने की कानूनी लड़ाई

राम जन्म भूमि की लड़ाई आजादी के बाद की नहीं है। ब्लकि यह तो 18वीं सदीं की ही है। इस लड़ाई मे असली मोड़ 6 मंदिर 1992 को मस्जिद को ढांचा गिराए जाने और दंगे होने के बाद आया। जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट मे भूमि शीर्षक का मामला दर्ज किया गया। जिसका फैसला 30 सितंबर 2010 में सुनाया गया। तीनों जजों द्वारा सुनाए गए इस फैसले के अनुसार अयोध्या की 2।77 एकड़(1।12 हेक्टेयर)  भूमि तो तीन  भागों में बांटने की बात कही गयी। जिसके अनुसार 1/3 रामलला या हिंदू महासबा द्वार प्रतिनिधित्व किया जाना था, 1/3 सुन्नी वक्फ बोर्ड और शेष 1/3 निर्मोही अखाड़े को दिया जाना था। इस फैसले के बाद भी कानूनी लड़ाई जारी रही। अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 नवंबर 2019 को मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले फैसले को हटा दिया। फैसले के अनुसार भूमि सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार है। इसने हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए भूमि को एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया। और सरकार को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वफ्क बोर्ड को वैकल्पिक 5 एकड़  जमीन देने का भी आदेश दिया। इसका फैसले पांच जजों की बेंच द्वारा किया गया था।

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