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Rafale deal controversy: अनिल अंबानी के बाद अब मिडिल मैन का ट्विस्ट आया राफेल सौदे में

राफेल को लेकर एक बार फिर गरमाई भारतीय राजनीति, जाने क्या है मिडिल मेन की कहानी


Rafale deal controversy: लंबे समय से लड़ाकू विमान राफेल का इंतजार कर रहे भारतीयों को इंतजार की घड़ी 29 जुलाई 2020 को खत्म हो गई। लेकिन डील शुरु होने से पहले और अब तक इसको लेकर कई तरह के घोटाले के दावे किए गए हैं। हाल ही एक और घोटाला प्रकाश में आया है।  फ्रांस की एक पब्लिकेशन ने दावा किया है कि फ्रांसीसी कंपनी दसॉ ने भारत के एक बिचौलिये को एक मिलियन यूरो गिफ्ट के तौर पर दिए हैं। अब जब भारत में राफेल की एक खेप आ चुकी है ऐसे में इस तरह का खुलासा दोनों देशों की डील को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है।

दरअसल इस डील को लेकर फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी एएफए ने दसॉ के खाते का ऑडिट किया। मीडियापार्ट की रिपोर्ट की माने तो दसॉ ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इन पैसों का इस्तेमाल राफेल लड़ाकू विमान के 50 बड़े मॉडल बनाने में हुआ था। जबकि ऐसा कोई मॉडल बना ही नहीं है।  रिपोर्ट आने के बाद से ही फ्रांस में इसको लेकर किसी तरह की कोई कारवाई नहीं हुई है। जिससे यह माना जा रहा कि इसके पीछ कुछ राजनेताओं और जस्टिस सिस्टम का हाथ है।

जिस रिपोर्ट का जिक्र मीडियापार्ट कर रहा है। उसके अनुसार दसॉ ग्रुप द्वारा गिफ्ट की गई राशि का बचाव किया गया है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया है कि भारतीय कंपनी Defsys Solutions के इनवॉयस से दिखाया गया कि जो मॉडल तैयार हुए, उसकी आधी राशि उन्होंने दी थी। हर एक मॉडल की कीमत करीब 2 हजार यूरो से अधिक थी।  इस सभी आरोपों का दसॉ के पास कोई जवाब नहीं था इसीलिए ऑडिट के दौरान जवाब नहीं दे पाया।

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Image source – Patrika

सुप्रीम कोर्ट की फटकार

राफेल लीड को लेकर कई तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए हैं। जिसको लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक चला गया। जिसमें शीर्ष अदालत ने राफेल पर सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस सौदे की जांच के आदेश देने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की। इस याचिका में यह दलील दी गई कि राफेल मामले पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गलत जानकारी देकर गुमराह किया था, जिसकी वजह से फैसला सरकार के पक्ष में चला गया। वहीं इस याचिका पर केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि राफेल खरीद के मामले में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को कोई गलत जानकारी नहीं दी है।

वहीं, याचिकाकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर सीएजी की रिपोर्ट पर सवाल उठाया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ इस मसले पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सरकार ने कहा है कि कानूनन, मीडिया रिपोर्ट के आधार पर अदालत कोई निर्णय नहीं लेती। सरकार ने कहा, खरीद निर्णय लेने की प्रक्रिया कई चरणों में होती है और कई जगहों या अधिकारियों से हो गुजरती है। अपूर्ण आंतरिक रिपोर्ट के आधार पर परजूरी का आवेदन दाखिल नहीं किया जा सकता। मीडिया रिपोर्ट पूरे घटनाक्रम व प्रक्रिया की सही तस्वीर पेश नहीं करती, वह महज प्रक्रिया का एक हिस्सा है। सरकार ने आवेदन को पूरी तरह से आधारहीन बताया।

अनिल अंबानी को फायदा  पहुंचाने का इल्जाम

मोदी सरकार पर शुरु से ही अंबानी परिवार को फायदा पहुंचाने का आरोप लगता रहा है। राफेल डील वाले मामले में भी ऐसा ही हुआ था। विपक्ष ने  मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए राफेल मामले में नरेंद्र मोदी सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था।

अपने बयान में उन्होंने कहा कि ‘मोदी कृपा’ से फ्रांस की सरकार ने अनिल अंबानी की कंपनी के करोड़ो रुपये का टैक्स माफ किया।  वहीं दूसरी ओर अनिल अंबानी समूह की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस ने इस आरोप को खारिज कर दिया है। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि फ्रांस के प्रतिष्ठित अखबार ‘ले मोंदे’ की रिपोर्ट से ‘मनी ट्रेल’ का खुलासा हुआ है। जिससे यह साबति हो जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल मामले में ‘अनिल अंबानी के बिचौलिए’ का काम किया।

सरकार और अनिल अंबानी समूह ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उस दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सूरजेवाला ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि  ”फ्रांस के अखबार में सनसनीखेज खुलासा हुआ है। क्या मनी ट्रेल सामने आ गई है? क्या मोदी अपने मित्र ‘एए’ (अनिल अंबानी) के बिचौलिए के रूप में काम कर रहे हैं? क्या अब चौकीदार की चोरी पकड़ी गई है? ‘

उन्होंने कहा, ”23 मार्च 2015 को अंबानी पेरिस जाकर वहां के रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों से मिलते हैं। उस वक्त ऑफसेट साझेदार एचएएल थी। बाद में मोदी जी जाते हैं और सौदे को बदल देते हैं। 21 सितंबर 2018 को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद कहते हैं कि हमारे पास अनिल अंबानी के अलावा कोई विकल्प नहीं था।”

सुरजेवाला ने यह दावा किया था कि  ”2017-18 में डबल ए की कंपनी में दसाल्ट ने 284 करोड़ रुपये डाल दिए थे। साथ ही कहा कि ‘नयी कड़ी है कि ‘रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस’ की स्वामित्व वाली कंपनी रिलायंस गलोबल कॉम बरमूडा में पंजीकृत है। फ्रांस में रिलायंस अटलांटिक फ्लैग से 15 करोड़ यूरो टैक्स की मांग हुई थी। वह यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि ’10 अप्रैल 2015 को मोदी फ्रांस जाते हैं और 36 विमान खरीदने का सौदा करते हैं। इसके कुछ दिन बाद ही 14 करोड़ यूरो से अधिक का कर माफ कर दिया जाता है। इसे क्या समझा जाए।

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