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आंदोलनों को दौरान एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी और उसके बाद देश में बदलता माहौल और उसका प्रभाव
काम की बात

आंदोलनों को दौरान एक्टिविस्ट की गिरफ्तारी और उसके बाद देश में बदलता माहौल और उसका प्रभाव

सरकार लोगों की आवाज को दबाने के लिए बुलंद आवाजों को हमेशा के लिए दबाना चाहती है


किसान आंदोलन को लगभग तीन महीने होने जा रहे हैं. किसान दिल्ली के बॉर्डर पर अब भी डटे हुए हैं. इस बीच किसान आंदोलन के संबंध में टूलकिट तैयार करने के मामले में दिशा रवि को जमानत मिल गई है. दिशा को दिल्ली पाटियाला कोर्ट से 1 लाख रुपए के मुचलके पर जमानत मिल गई. देश में आजादी लेने से लेकर अब तक किसी भी आंदोलन में यह देखने को मिलता है आंदोलन में हिस्सा लेने वाले लोगों को गिरफ्तार किया जाता है. 21वीं सदीं में यह सारी बातें सामान्य है. देश में अक्सर  किसी न किसी मुद्दे पर आंदोलन होता ही है. इन आंदोलनों में छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है. इन लोगों की गिरफ्तारी का देश पर क्या असर पड़ता है काम की बात में हम इस पर चर्चा करेंगे.

अहम बिंदु

–         आजादी के दौरान गिरफ्तारियां

–         नागरिक संशोधन कानून

–         किसान आंदोलन

–         भीमा कोरेगांव

किसी भी हकुमूत को ललकार मारने के लिए कई लोगों को अपना बलिदान देना पड़ता है. अलग-अलग स्तर पर लोग अपना सहयोग देते हैं. देश को आजादी दिलाने के लिए सत्य और अहिंसा की लड़ाई करने वाले महात्मा गांधी को कई बार जेल जाना पड़ा. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को अंग्रेजो को आंख दिखाने की तौर पर 3,259 दिनों तक जेल में रहना पडा. अंग्रेजों से आजादी लेने के लिए कई स्वतंत्र सेनानियों को जेल में यातनाएं सहनी पड़ी. देश की आजादी 73 साल बीत गए हैं. इतने सालों में देश में आंदोलन और गिरफ्तारी में कोई अंतर नहीं आया  है. हाल ही में सरकार के कानूनों के लेकर कई तरह के आंदोलन हुए है.

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farmers protest
Image source: The Quint

 

नागरिक कानून

साल 2019 में नागरिक संशोधन कानून को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ. जिसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में हिंसा भी हुई. इस दौरान  जेएनयू के पूर्व शोधार्थी  उमर खालिद को देशद्रोह का मामले में गिरफ्तार किया गया. इसके अलावा सरकार के खिलाफ साल 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया में विरोध प्रदर्शन हुआ. जिसमें जामिया की ही छात्र सफुरा जरगर को गिरफ्तार कर लिया. इस गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर उसके चरित्र को लेकर तरह-तरह की बातें कही जाने लगी. बहुत दिनों तक उसे बेल भी नहीं दी गई. आईटी सेल द्वारा आंदोलन को दबाने की कोशिश की गई. शाहीन  बाग में आंदोलन कर रही महिलाओं को यहां तक कहा गया कि 500 लेकर महिलाएं धरने में बैठी है. अक्सर यह देखने को मिलता है. सरकार द्वारा आंदोलन को दबाने की कोशिश  की जाती है. सरकार भले किसी भी पार्टी की हो. हर बार आंदोलन को दबाने के लिए लोगों की छवि को खराब करने के लिए एक दूसरा नरेटिव तैयार किया जाता है. जिससे सरकार सत्ता में कायम रहे. सामाजिक कार्यकर्ता पद्मा सिंह का कहना है कि लोकतंत्र बना ही इसलिए ताकि लोग अपनी आवाज को उठा सके. वह आवाज किसी इंसान. विपक्ष की हो सकती है. सरकार की नीतियों को खिलाफ इकट्टा होते हैं. जहां वह सरकार की नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करती है. लेकिन सरकार द्वारा आवाजों को दबाना, उन पर यूएपीए जैसे कानून लगाना, खासकर छात्रों के साथ ऐसा व्यवहार करना सही नहीं है क्योंकि छात्र ही हमारे देश का भविष्य है. लेकिन वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि सबसे ज्यादा टारगेट छात्र और सामाजिक कार्यकर्ताओं को किया जा रहा है.

किसान आंदोलन

नए कृषि कानूनों को लेकर लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है. सरकार और किसानों के बीच कई . बार बात हुई है. लेकिन सारी बातें असफल साबित हुई. सरकार द्वारा लगातार दबाने की कोशिश की जा रही है. कई सामाजिक कार्यकर्ताओं पत्रकारों, को गिरफ्तार किया गया. इस आंदोलन पर लगातार यह आरोप लगाया जा रहा है कि इसमें कनाडा से फंडिग आ रही है. हाल ही में यह मुद्दा पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय बन गया. एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग से लेकर पॉप सिंगर रिहाना तक हर किसी ने   इस मुद्दे पर बात की है. लेकिन सरकार किसी भी इस तरह अपना आप को सही साबित करने पर तुली हुई है.  इस आंदोलन की आड़ में लोगों को कुचला जा रहा है.  दिल्ली हाईकोर्ट के वकील शशांक कुमार का कहना है अलग-अलग आंदोलनों में आए दिन एक्टिविस्ट लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है इससे सामाजिक स्तर पर भी बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हैं लोगों में एक्टिविज्म की ओर एक चाहत को दर्शाता है. भारत के संविधान की संरचना मौलिक अधिकारों का बहुत महत्व है जिसमें अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करना भी है. दुनिया की कोई भी सरकार लोगों के उसके हक में खड़े होने के लिए नहीं रोक सकती. चाहे उनकी आवाज छोटी हो या बड़ी हो जहां बात जन सरोकार की होगी गिरफ्तारियां कितनी भी हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लोगों के अंदर कहीं ना कहीं आंदोलन पनपता है तो इसका जिम्मेवार किसी न किसी रूप से सरकार की होती है. बंदी प्रत्यक्षीकरण का रिट केवल इसी बात के लिए स्वतंत्र भारत के संविधान में डाला गया कि सरकार अपने मन से बिना कानून के समर्थन के किसी को जेल में ना जा सके या उनकी गिरफ्तारी न कर सके.

भीमा कोरेगांव

साल 2018 की पहली जनवरी की सुबह महाराष्ट्र के पूणे में भीमा कोरेगांव की जयंती पर लोग इकट्ठा हो रहे थे. इस दौरान हिंसा हुई. इस हिंसा में सुधीर धावले, सुरेंद्र गाडलिंग(वकील), महेश राउत, रोना विल्सन, शोमा सेन, सुधा भारद्वाज को गिरफ्तार किया गया. इस गिरफ्तारी के  बाद देश  के अन्य-अन्य हिस्सों में लोगों ने इस गिरफ्तारी का विरोध किया. यह गिरफ्तारियां दर्शाती है कि सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को सरकार झुकाने की कोशिश करती है. देश के अलग-अलग आंदोलनों में होती गिरफ्तारियां और सरकार के बदलते रुख पर दिल्ली हाईकोर्ट के वकील शशांक कुमार का कहना है कि कुछ दिनों में बिहार वाह उत्तराखंड की सरकार ने जो घोषणा की है जो आंदोलनों को दबाने वाला है अगर आप सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन करते हैं तो आपको सरकारी नौकरियों से वंचित किया जाएगा यह कहीं ना कहीं गैर संवैधानिक कृत्य है. सोशल मीडिया पर सरकार के प्रति या नेताओं के प्रति गलत लिखने पर आप को जेल भेजा जा सकता है यह अभिव्यक्ति की आजादी पर करा प्रहार है.

 

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