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Caste Census Bihar : बिहार में जातीय जनगणना शुरू, जानिए इसके फायदे और नुकसान

Caste Census Bihar : क्यों जातिगत जनगणना के लिए भिड़ रही है राज्य और केंद्र सरकार, यहां जानें


Highlights

  • अभी कुछ दिनों से कई राज्यों में जातीय जनगणना की मांग हो रही है।
  • फिलहाल बिहार में जातीय जनगणना को लेकर राज्य सरकार मांग कर रही है लेकिन केंद्र सरकार ने बार – बार जातिगत जनगणना से इनकार किया है।
  •  इससे पहले भी नीतीश कुमार जातीय जनगणना के पक्ष में खड़े हो चुके हैं।

Caste Census Bihar: भारत में प्रत्येक 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है इस से सरकार को विकास के लिए कई योजनाएं बनाने में मदद मिलती है लेकिन आजकल जातीय जनगणना बहुत चर्चा में है।

जब सामान्य जनगणना होती है तो उसमें महिला, पुरुष, साक्षरता आदि की गणना की जाती है इसके साथ ही यह भी गणना की जाती है कि, सामान्य जाति की जनसंख्या कितनी है, अनुसूचित जाती, जनजाति की जनसंख्या कितनी है। जातिगत जनगणना का तात्पर्य जनगणना के साथ-साथ जाती की जानकारी जुटाने से है इससे इस बात की जानकारी भी मिलेगी कि देश में कौन सी जाति के कितने लोग रहते है। सीधे और साफ शब्दों में जाति के आधार पर लोगों की गणना करना जातीय जनगणना कहलाता है।

वर्ष 1951 से 2011 तक भारत में हर 10 साल पर जनगणना का काम होता रहा है। लेकिन हर जनगणना में एससी और एसटी यानि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना के डाटा अलग से दिए जाते हैं, लेकिन दूसरी जातियों के नहीं। हांलांकि 1931 तक भारत में जो जनगणना हुई तो जाति गणना आधारित जरूर थी।

अभी कुछ दिनों से कई राज्यों में जातीय जनगणना की मांग हो रही है। फिलहाल बिहार में जातीय जनगणना को लेकर राज्य सरकार मांग कर रही है लेकिन केंद्र सरकार ने बार – बार जातिगत जनगणना से इनकार किया है। इससे पहले भी नीतीश कुमार जातीय जनगणना के पक्ष में खड़े हो चुके हैं। बिहार से पहले राजस्थान और कर्नाटक में भी जातीय जनगणना हो चुकी है। आपको बता दें 2011 में जब जनगणना हुई थी, तब इसे जारी नहीं किया गया था।
आइये जानते हैं बिहार में जातीय जनगणना की पूरी थ्योरी

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बिहार में क्यों जातीय जनगणना पर दिया जा रहा है जोर ?

बिहार में राजनीतिक दलों ने जातीय जनगणना की लंबे समय से मांग कर रही थी। बिहार में राजनीतिक दलों का कहना है कि इससे दलित, पिछड़ों की सही संख्या मालूम चलेगी और उन्हें इसके अनुसार आगे बढ़ाया जा सकेगा।

उनका कहना है कि जातीय जनसंख्या के अनुसार ही राज्य में योजनाएं बनाई जाएंगी। 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को बिहार विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना कराने से संबंधित प्रस्ताव पेश किया गया था। इसे भाजपा, राजद, जदयू समेत सभी दलों ने समर्थन दे दिया था। हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए।

केंद्र का कहना था कि जातियों की गिनती करना लंबा और कठिन काम है। हालांकि, इसके बावजूद नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना कराने का एलान कर दिया था। बिहार सरकार ने इस साल मई तक यह काम पूरा करने का दावा किया है।

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जातीय जनगणना से लाभ

जाति आधारित जनगणना का उद्देश्य केवल आरक्षण के मुद्दे तक सीमित नहीं है; यह वास्तव में उन विषयों को सामने लाएगी, जिन विषयों पर किसी भी लोकतांत्रिक देश को अवश्य ध्यान देना चाहिये।

जाति न केवल अलाभ की स्थिति का स्रोत है बल्कि यह हमारे समाज में विशेषाधिकार और लाभ की स्थिति का भी एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

हमें इस सोच को बदलना होगा कि जाति का विषय केवल वंचित, निर्धन या अभावग्रस्त लोगों से संबंधित है।
जातीय जनगणना से जो निचले तबके के लोग हैं उन्हें काफी मदद मिल सकती है।

जातीय जनगणना के नुकसान

जातीय जनगणना से जाति से जुड़ी हुई समस्याएं बढ़ेंगी और अल्पसंख्यक जाती अपनी जनसंख्या बढ़ाने की कोशिश करेगी जिससे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ेगी, और इससे जातिगत भेदभाव भी उत्पन्न हो सकता है।

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