क्या है संगम में सरस्वती के बहने का राज
भारत को नदियों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार यहां 158 नदियां है जिसमें से 48 नदियां सूख चुकी है और 110 नदियां अभी अस्तित्व में हैं। गंगा, यमुना, ब्रह्मापुत्र, कृष्ण, कावेरी, नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, झेलम, सतलज यह देश की विशेष नदियां है। जिस पर देश की आर्थिक और सामाजिक संस्कृति टिकी हुई है।
देश में जहां-जहां भी गंगा और यमुना मिलती है वहां तीर्थ स्थान बने हुए है। लेकिन इलाहाबाद में गंगा, यमुना, सरस्वती तीनों एक साथ मिलती है इस संगम को त्रिवेणी संगम कहा जाता है।
क्या सच में यह तीनों नदियां इस संगम में मिलती है क्योंकि कहा तो जाता है कि यहां तीनों का मिलन होता है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ दिखता नहीं है।
चलिए इसी बारे में आज जानते हैं इसकी पीछे कुछ धार्मिक और वैज्ञानिक तथ्यों को
गंगा धरती की नदी नहीं है
गंगा, गंगोत्री से निकलती है और पूरे उत्तर भारत से होती हुई बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। धार्मिक तथ्यों के आधार पर देखा जाए तो गंगा धरती की नदी ही नहीं है।
यह नदी स्वर्ग से उतरी है। स्वर्गलोक से अपनी थोड़ी से चूक के कारण गंगाजी को धरती पर आना पड़ा। जब वह धरती पर आ रही थी तो भगवान ने उन्हें कहा कि जब तुम धरती पर जाओगी तो वहां तुम्हें एक बरगद का पेड़ मिलेगा। जब तुम उसके पास से होकर गुजरोगी तो उसके स्पर्श से तुम जितने प्राणियों के पाप धोकर पाप से ग्रस्त हो जाओगी। तो यही वृक्ष तुम्हारे पाप दूर कर देगा। इस वृक्ष को छूकर तुम निर्मल बन जाओगी। इसलिए गंगा को धरती में पवित्र माना जाता है जिसमें लोग अपने पाप धोने आते है। कलयुग में गंगा का हाल बद से बत्तर हो गया है।
गंगा नदी
यमी से बनी यमुना
माना जाता है कि यमुना भी धरती की नहीं है। कहा जाता है कि भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा उनकी गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकी तो उन्होंने अपनी ही छाया रूपी में एक औरत का निर्माण किया।
इस छाया को वो एक बार सूर्य देवता के पास छोड़ स्वयं अपने मायके चली जाती है। सूर्य देवता भी उसे पत्नी मानकर उसके साथ रहने लगते हैं।
वहीं दूसरी ओर संज्ञा के गर्भ से दो जुड़वा बच्चे पैदा हुए। एक लड़का और एक लड़की, लड़के का नाम यम और लड़की का नाम यमी रखा गया। यम तो यमराज बन गए जबकि यमी यमुना बन गई। सूर्य की दूसरी पत्नी छाया से शनि का जन्म हुआ था।
जब यमुना भी अपनी किसी भूल के परिमाण स्वरूप धरती पर आने लगी तो उसने अपने उद्धार का मार्ग भगवान से पूछा। भगवान ने बताया कि धरती पर देव नदी गंगा में मिलते ही जहां जाकर तुम पवित्र बन जाओगी। वैसे तो यमुना का उद्गम स्थल यमुनोत्री है। हिमालय से निकलकर हरियाणा, दिल्ली, आगरा से होते हुए इलाहाबाद में जाकर गंगा से मिल जाती है। इसी मिलन स्थान को संगम कहते है।
यमुना नदी
राजस्थान को सरस्वती ने बनाया मरुभूमि
अब बात करते है सरस्वती नदी की जो संगम में मिलती तो नहीं है लेकिन फिर भी इस जगह को त्रिवेणी का संगम कहा जाता है। वैसे देखा जाए तो संगम पर तीसरी नदी तो दिखती ही नहीं है।
धार्मिक ग्रन्थों की माने तो सरस्वती नदी का अस्तित्व था और इसे गंगा नदी की तरह ही पवित्र माना जाता था। ऋग्वेद में भी इसकी चर्चा है।
महाभारत में भी सरस्वती का उल्लेख है। कहा जाता है कि यह नदी लुप्त हो गई है। सरस्वती हरियाणा के यमुनानगर को ऊपर ओर शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी।
भारतीय पुरातत्व परिषद के सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के ग्लेशियर से होता था। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था। फिर जलाधार के रूप में आदि बद्री तक सरस्वती बहकर आती थी।
भूगर्भीय खोजों से पता चला कि जिस जगह में सरस्वती बहती है वहां भीषण भूकंप आय़ा था। जिसके कारण जमीन के नीचे से एक पहाड़ निकल आया जिसके कारण नदी का जल पीछे की ओर चला गया।
कुछ विद्वानों की मानें तो सरस्वती पूर्व काल में स्वर्णभूमि में बहा करती थी। जिसका नाम बाद स्वर्णराष्ट्र पड़ा और आज वर्तमान में इसका नाम सौराष्ट्र है।
कहा जाता है कि सरस्वती मारवाड़ से बहुत प्रेम रखती थी। लेकिन यहां के लोगों का रहन-सहन और आचार-विचार उन्हें पसंद नहीं आ रहा था।
इससे सरस्वती दुखी रहने लगी तब उन्होंने ब्रह्माजी से अनुमति लेकर मारवाड़ एवं सौराष्ट्र छोड़कर प्रयाग में आकर बस गई। सरस्वती में वहां चले जाने के बाद पूरी भूमि, मरुभूमि में तबदील हो गई। जो आज का राजस्थान है। ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी।
मान्यता के अनुसार जब सरस्वती को पता चला कि ऐसा वृक्ष प्रयाग में स्थित है जिससे पाप धुल जाएंगे और आप पवित्र हो जाएंगे है। इसलिए सरस्वती ने ब्रह्माजी से अनुमति लेकर स्वर्मभूमि छोड़कर आकर प्रयाग में इन दोनों नदियों में शामिल हो गयी।
सच यह है कि प्रयाग में कभी सरस्वती पहुंचे ही नहीं। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में सरस्वती का जल प्रवाहित होने लगा।
इसलिए कहा जाता है कि त्रिवेणी संगम में तीन नदियों मिलती है। लेकिन वास्तव में वह सिर्फ दो है।
मरूस्थल