Uniform Civil Code: उत्तराखंड में यूसीसी बिल लागू, मुस्लिम संगठनों ने की आलोचना, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष बोले- सड़कों पर न उतरें मुसलमान
Uttarakhand Uniform Civil Code Bill: विधानसभा में बिल को लेकर चर्चा हुई। वहीं, इसके बाद सीएम का संबोधन हुआ। बुधवार की शाम को यूसीसी बिल ध्वनिमत से पास कर दिया गया। हालांकि इसको लेकर कई जगह विरोध किए जा रहे हैं।
Uniform Civil Code: उत्तराखंड ने रचा इतिहास, विधानसभा में पास हुआ देश का पहला यूसीसी बिल
उत्तराखंड ने आज इतिहास रच दिया। आजादी के बाद देश का पहला समान नागरिक संहिता विधेयक उत्तराखंड 2024 विधानसभा में पास हो गया। दो दिन लंबी चर्चा, बहस और तर्कों के बाद बुधवार की शाम सदन में विधेयक ध्वनिमत से पास हुआ। विपक्ष ने चर्चा के दौरान बिल प्रवर समिति को भेजने की सिफारिश की थी। उसका यह प्रस्ताव भी ध्वनिमत से खारिज हो गया।
हालांकि इसके बाद बहुत सी बातें भी बदल जाएंगी। बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार भी इसे लेकर अपने इरादे जाहिर कर चुकी है। विधि आयोग ने पिछले साल यूसीसी पर विभिन्न पक्षों से 30 दिनों के अंदर राय देने को कहा था। अब उत्तराखंड के बाद कई बीजेपी शासित दूसरे राज्य भी इसे लागू कर सकते हैं।
यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनेगा
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि इस बिल से समाज का भेदभाव, कुरीतियां खत्म होंगी। कहा कि इस कानून में संशोधन की भी गुंजाइश होगी। पास होने के बाद अब बिल राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजा जाएगा, जहां से मुहर लगने के बाद यह कानून राज्य में लागू हो जाएगा। सभी विधिक प्रक्रिया और औपचारिकताएं पूरी करने के बाद यूसीसी लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनेगा।
सीएम बोले- पीएम के नेतृत्व में रामयुग की शुरूआत
मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस रामयुग की शुरुआत हुई है, यूसीसी उसमें एक बड़ी पहल साबित होगा। यह देश के लिए मील का पत्थर बनेगा। इसके अलावा उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री राष्ट्रऋषि नरेंद्र मोदी विकसित भारत का सपना देख रहे हैं। भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रही है। उनके नेतृत्व में यह देश तीन तलाक और अनुच्छेद-370 जैसी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के पथ पर है।
समान नागरिक संहिता का विधेयक प्रधानमंत्री के देश को विकसित, संगठित, समरस और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए किए जा रहे यज्ञ में उत्तराखंड की ओर से अर्पित की गई एक आहुति मात्र है। इस विधेयक में जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित सभी कानूनों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है।
परंपराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं
विधेयक में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को ही शामिल किया गया है। इन विषयों, खासतौर पर विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्राविधान बनाए गए हैं उनमें जाति, धर्म अथवा पंथ की परंपराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धार्मिक रीति-रिवाज जस के तस रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान
विधेयक में सभी धर्म-समुदायों में विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता और विरासत के लिए एक कानून का प्रावधान है। महिला-पुरुषों को समान अधिकारों की सिफारिश की गई है। अनुसूचित जनजातियों को इस कानून की परिधि से बाहर रखा गया है।
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बिना तलाक दिए दूसरी शादी नहीं कर सकेंगे मुस्लिम
विधेयक के मुताबिक, मुस्लिम कई शादियां कर सकते हैं, लेकिन उत्तराखंड में पेश किए गए यूसीसी बिल के अनुसार मुस्लिम भी बिना तलाक दिए एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकेंगे। तलाक के लिए सबके लिए समान कानून होगा। लड़की की शादी की उम्र माहवारी की शुरुआत को माना जाता है। लेकिन यूसीसी में लड़की की शादी की उम्र 18 साल है।
यूसीसी में किए गए बदलाव
हालांकि अभी तक कोई भी मुस्लिम शख्स बच्चे को गोद ले सकता था, लेकिन यूसीसी में इसे लेकर भी बदलाव किया गया है। यूसीसी बिल में तलाक को लेकर स्थिति साफ की गई है। तलाक के लिए पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार दिया गया है। मुस्लिमों में तीन तलाक, हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं पर इस कानून के लागू होने के बाद पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
मुस्लिम संगठनों ने आलोचना की
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे-जैसे यूसीसी को लेकर सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं, विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने इस प्रस्ताव की आलोचना की है। मुस्लिम संगठनों ने इसे अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन माना है। हालांकि हर संगठन यूसीसी का विरोध करने के लिए अलग-अलग तर्कों का सहारा ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों एक रैली में अपने भाषण में यूसीसी का मुद्दा उठाकर इसे ताजा हवा दे दी। उन्होंने सवाल किया, “हमारे देश में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून कैसे हो सकते हैं?”
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सड़कों पर न उतरने की अपील
इस बीच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा कि यूसीसी मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ है। “यह हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए किया जा रहा है। वे यह मैसेज देना चाहते हैं कि हम मुसलमानों के लिए वह करने में सक्षम हैं जो आजादी के बाद से कोई सरकार नहीं कर पाई।” उऩ्होंने कहा, “मुसलमानों को इसका विरोध करने के लिए सड़कों पर नहीं उतरना चाहिए।” मदनी ने पिछले कानून आयोग की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसने यूसीसी को इस स्तर पर ना तो जरूरी और ना ही वांछनीय कहकर साफ तौर पर खारिज कर दिया था। इसके विपरीत, जेआईएच ने इस मुद्दे पर अपेक्षाकृत चुप्पी साध रखी है।
केरल में भी हुआ विरोध
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केरल में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) ने पिछले दिनों विभिन्न गैर-राजनीतिक मुस्लिम समूहों की एक बैठक का नेतृत्व किया, जिसमें यूसीसी पर राय व्यक्त की गई। बैठक में शामिल मुस्लिम निकायों में समस्त केरल जमियथुल उलमा, केरल नदवथुल मुजाहिदीन, मुस्लिम एजुकेशन सोसाइटी और मुस्लिम सर्विस सोसाइटी शामिल थे। आईयूएमएल के प्रदेश अध्यक्ष पनक्कड़ सैय्यद सादिक अली शिहाब थंगल ने कहा, “यूसीसी मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, यह सभी लोगों का मुद्दा है। हम इसके खिलाफ सभी लोगों को एकजुट करेंगे और कानूनी और राजनीतिक रूप से लड़ेंगे।”
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