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Sri Aurobindo: श्री अरविंद पुण्यतिथि, राष्ट्रवाद, अध्यात्म और पूर्णयोग के प्रवर्तक को याद करते हुए

Sri Aurobindo, भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में श्री अरविंद का नाम एक ऐसे महापुरुष के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने राष्ट्रवाद, योग, अध्यात्म और मानव चेतना के विकास को एक नई दिशा दी।

Sri Aurobindo : श्री अरविंद पुण्य स्मरण, वह ऋषि जिसने राष्ट्र को नई दिशा दी

Sri Aurobindo, भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में श्री अरविंद का नाम एक ऐसे महापुरुष के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने राष्ट्रवाद, योग, अध्यात्म और मानव चेतना के विकास को एक नई दिशा दी। 5 दिसंबर 1950 को जब उनका देहावसान हुआ, तब न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व ने एक महान ऋषि, चिंतक और दूरद्रष्टा को खो दिया। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके जीवन, दर्शन और योगदान को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं।

1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

श्री अरविंद का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता डॉक्टर कृष्णधन घोष पश्चिमी विचारों से प्रभावित थे और चाहते थे कि उनके बच्चे आधुनिक शिक्षा प्राप्त करें। इसी कारण अरविंद को बचपन में ही इंग्लैंड भेज दिया गया, जहाँ उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। पश्चिमी शिक्षा के बावजूद अरविंद के भीतर भारतीय संस्कृति और राष्ट्र की चेतना धीरे-धीरे जागृत होती गई। यूरोप में रहते हुए उन्होंने संस्कृत, बंगला, हिंदी और भारतीय दर्शन का भी अध्ययन किया।

2. स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी भूमिका

भारत लौटने के बाद अरविंद तेजी से राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रमुख चेहरे बन गए। उन्होंने अंग्रेजों के प्रति ‘पूर्ण स्वराज्य’ का विचार बहुत पहले रखा था, जब देश में इसकी चर्चा भी शुरू नहीं हुई थी। वे ‘वंदे मातरम्’ और ‘कर्मयोगिन’ जैसे पत्रों के माध्यम से युवाओं को जागृत करते थे। उनकी लेखनी में जो आग, जो राष्ट्रभक्ति और जो क्रांतिकारी चेतना थी, उसने ब्रिटिश शासन को बेचैन कर दिया। 1908 में उन्हें अलीपुर बम केस में गिरफ्तार किया गया। एक वर्ष जेल में रहकर उन्होंने जो आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त किए, वही उनके आगे के जीवन की दिशा बने।

3. आध्यात्मिक मार्ग की ओर यात्रा

अलीपुर जेल से रिहा होने के बाद श्री अरविंद राजनीति से धीरे-धीरे अलग हो गए और पूरी तरह आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हुए। वे पांडिचेरी चले गए, जहाँ उन्होंने ‘इंटीग्रल योग’ या ‘पूर्णयोग’ की साधना और शिक्षाओं को विकसित किया। इस योग का उद्देश्य मनुष्य के बाहरी और आंतरिक जीवन में पूर्ण परिवर्तन लाना था, ताकि वह एक दिव्य जीवन प्राप्त कर सके। उनकी आध्यात्मिक साधना से प्रभावित होकर अनेक लोग पांडिचेरी आने लगे, जिनमें से एक थीं मदर मिर्रा अल्फ़ासा, जिन्होंने आगे चलकर श्री अरविंद आश्रम का संचालन किया।

4. श्री अरविंद का दर्शन

श्री अरविंद का दर्शन बहुआयामी रहा—

  • राष्ट्रवाद और स्वाधीनता
  • मानव चेतना का उत्कर्ष
  • आध्यात्मिक विकास और योग
  • दिव्य जीवन की अवधारणा

उनके अनुसार मनुष्य में दिव्यता निहित है, लेकिन उसे जागृत करने के लिए साधना, शुद्ध विचार और आत्मचिंतन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मानव केवल ‘मानव’ बनकर नहीं रुका है; वह ‘सुपरमैन’ या ‘ऊर्ध्वमानव’ बनने की क्षमता रखता है।

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5. श्री अरविंद के साहित्यिक योगदान

श्री अरविंद केवल दार्शनिक और योगी ही नहीं, बल्कि महान साहित्यकार भी थे। उन्होंने अंग्रेजी में अपने विचारों को अत्यंत गहन और उच्च स्तरीय भाषा में अभिव्यक्त किया।
उनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं:

  • The Life Divine
  • Savitri
  • The Synthesis of Yoga
  • Essays on the Gita
  • The Human Cycle

विशेष रूप से Savitri एक महाकाव्य है जिसे आधुनिक युग का आध्यात्मिक ग्रंथ कहा जाता है।

6. अंत समय और देहावसान

5 दिसंबर 1950 को श्री अरविंद ने अपने शरीर को त्याग दिया। आश्रम के लोगों ने देखा कि उनकी देह कई दिनों तक सुनहरी आभा लिए हुए थी, जिसे उन्होंने एक आध्यात्मिक घटना के रूप में अनुभव किया।
उनके अनुयायियों का मानना है कि श्री अरविंद ने अपना कार्य पूरा कर लिया था और उनकी चेतना आज भी मानवता के कल्याण के लिए सक्रिय है।

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7. भारत और दुनिया पर श्री अरविंद की अमिट छाप

आज भी श्री अरविंद की शिक्षाएँ अनेक लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

  • उनके राष्ट्रवादी विचार आधुनिक राजनीति को मूल्य-आधारित दिशा देते हैं।
  • उनका योग विज्ञान और अध्यात्म के बीच सेतु का काम करता है।
  • उनकी शिक्षा मानव को भीतर से बदलने की प्रेरणा देती है।

भारत सरकार ने उनकी जयंती पर कई स्मृति कार्यक्रम शुरू किए हैं। पांडिचेरी में स्थित श्री अरविंद आश्रम और ऑरोविल आज विश्वभर के साधकों, शोधकर्ताओं और कलाकारों का केंद्र है। श्री अरविंद केवल एक महान दार्शनिक या योगी ही नहीं थे, बल्कि एक ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने जीवन को एक पूर्णता के रूप में देखा। उनकी पुण्यतिथि पर हम न केवल उन्हें याद करते हैं, बल्कि यह संकल्प भी लेते हैं कि उनके विचारों और आदर्शों को अपने जीवन में अपनाएँ।

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