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Operation Cactus : ऑपरेशन कैक्टस’ जब मालदीव के राष्ट्रपति की जान भारत ने बचाई थी

Operation Cactus : 1988 के एक घटना की है जिसे दोनों देशों के संबंधों में मील का एक पत्थर माना जाता है

Operation Cactus : क्या है ‘ऑपरेशन कैक्टस’? जानिये पूरी कहानी


Operation Cactus : भारत के प्रधानमंत्री के लक्षद्वीप दौरे की तस्वीरों पर कुछ दिन पहले पड़ोसी देश की मंत्री और नेताओं की तरफ से आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं। बता दे की ये काम एक ऐसे पड़ोसी देश की मंत्री और नेताओं की तरफ से किया गया, जिसका साथ भारत ने कई बार मुश्किल वक्त में दिया था।

शायद यही कारण रही कि महज़ कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर बॉयकॉट मालदीव के साथ साथ एक्सपलोर लक्षद्वीप ट्रेंड करने लगा।

तो बस आज इसीलिए हम आपके लिए ले कर आए है एक एसी सच्ची घटना की कहानी जब संकट में फँसे मालदीव ने बढ़कर मदद मांगी और भारत ने आगे बढ़कर उसकी मदद की।

Operation Cactus : 1988 की  ‘ऑपरेशन कैक्टस’

बात 1988 के एक घटना की है जिसे दोनों देशों के संबंधों में मील का एक पत्थर माना जाता है। बता दे की उस वक्त मालदीव में एक विद्रोह हुआ था, जिसे भारत की फ़ौज की मदद से नाकाम कर दिया गया था। उस अभियान का नाम था – ‘ऑपरेशन कैक्टस’…

ग़यूम के ख़िलाफ़ विद्रोह

दरअसल 3 नवंबर, 1988 को मालदीव के राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम भारत यात्रा पर आने वाले थे। उनको लाने के लिए एक भारतीय विमान दिल्ली से माले के लिए उड़ान भर चुका था। लेकिन अभी वो आधे रास्ते में ही था कि भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को अचानक एक चुनाव के सिलसिले में दिल्ली से बाहर जाना पड़ गया। राजीव गांधी ने ग़यूम से बात कर ये तय किया कि वो फिर कभी भारत आएंगे।

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श्रीलंका के चरमपंथी संगठन ‘प्लोट’

लेकिन ग़यूम के ख़िलाफ़ विद्रोह की योजना बनाने वाले मालदीव के व्यापारी अब्दुल्ला लुथूफ़ी और उनके साथी सिक्का अहमद इस्माइल मानिक ने तय किया कि बग़ावत को स्थगित नहीं किया जाएगा। उन्होंने श्रीलंका के चरमपंथी संगठन ‘प्लोट’ (पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ तमिल ईलम) के भाड़े के लड़ाकुओं को पर्यटकों के भेष में स्पीड बोट्स के ज़रिए पहले ही माले पहुंचा दिया था।

माले की सड़कों पर विद्रोह

देखते ही देखते मालदीव की राजधानी माले की सड़कों पर विद्रोह शुरू हो गया और सड़कों पर भाड़े के लड़ाकू गोलियां चलाते हुए घूमने लगे। इस मुश्किल वक्त में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल ग़यूम तो एक सेफ हाउस में जा छिपे। तब राष्ट्रपति गयूम ने उन्हें और उनकी सरकार बचाने के लिए भारत से मदद मांगी थी। लेकिन तब तक राजधानी माले के हुलहुले हवाई अड्डे और टेलीफोन एक्सचेंज पर सैकड़ों विद्रोही कब्जा कर चुके थे।

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6 पैरा के 150 कमांडो से भरे विमान ने भारत से भरी उड़ान

ऐसी स्थिति में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव में भारतीय सेना भेजने का फैसला किया और कुछ ही देर में 6 पैरा के 150 कमांडो से भरे विमान ने आगरा के खेरिया हवाई अड्डे से मालदीव के लिए उड़ान भर दी। थोड़ी देर में दूसरा विमान उतरा मालदीव पहुंचा और उसने आनन फानन में एटीसी, जेटी और हवाई पट्टी के उत्तरी और दक्षिणी किनारे पर नियंत्रण कर लिया।

भारतीय सैनिकों ने राष्ट्रपति के सेफ हाउस को किया सुरक्षित

इसके बाद भारतीय सैनिकों ने राष्ट्रपति के सेफ हाउस को सुरक्षित किया। और फिर कुछ ही घंटों में भारतीय सैनिकों ने मालदीव की सरकार गिराने की कोशिश को नाकाम कर दिया।

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