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कौन होते हैं Marcos Commandos, जिनके नाम से ही दुश्मन कांप कर भाग जाते हैं।

Marcos Commandos, जिनका नाम सुनते ही दुश्मन उल्टे पांव भाग जाते हैं। भारतीय नौसेना में मार्कोस कमांडो बनने की चयन प्रक्रिया काफी मुश्किल होती है। जो 3 साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार होते हैं। नौसेना के लिए 1000 के हजार सैनिकों में से एक ही मार्कोस कमांडो बन पाता है।

Marcos Commandos, ट्रेनिंग के दौरान क्या-क्या टास्क करने होते हैं?

भारत में खतरनाक और घातक स्पेशल फोर्स है जिनका नाम है मार्कोस कमांडो जिनका नाम सुनते ही दुश्मन उल्टे पांव भाग जाते हैं। भारतीय नौसेना में मार्कोस कमांडो बनने की चयन प्रक्रिया काफी मुश्किल होती है। जो 3 साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार होते हैं। नौसेना के लिए 1000 के हजार सैनिकों में से एक ही मार्कोस कमांडो बन पाता है।

दुनिया के अलग-अलग देशों के पास अपनी अलग और खास कमांडो फोर्स होती है। अमेरिका से लेकर चीन तक के पास भी अपनी स्पेशल कमांडो फोर्स है। भारत के पास भी अपनी कई कमांडो फोर्स है। जिनमें से एक स्पेशल कमांडो फोर्स है जिन्हें मार्कोस कमांडो के नाम से जाना जाता है। इसे दुनिया में इंडियन नेवी की स्पेशल फोर्स मार्कोस स्पेशलाइज्ड कमांडोज के नाम से जानती है।

जो किसी भी मिशन को पल भर में पूरा कर सकती है। ये फोर्स अमेरिका नेवी की सील की तर्ज पर बनी किसी भी दुश्मन के खिलाफ जल,वायु और थल सेना में मोर्चा संभालने के लिए एकदम तैयार रहती है।

Marcos Commandos: मौत को मात देकर तैयार होते हैं मार्कोस, पलक झपकते ही कर देते हैं दुश्मनों का सफाया

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कौन होते हैं Marcos Commandos

भारत के सबसे खतरनाक और घातक कमांडो में मार्कोस या मरीन कमांडो होते हैं। इनको ट्रेनिंग भी इसी तरह दी जाती है। कि यह आसानी से आसमान से लेकर जमीन स्तर तक दुश्मनों को धूल चटा सकते हैं। मार्कोस कमांडो इंडियन नेवी की एक स्पेशल फोर्स है इसके बारे में यह कहा जाता है। कि कई मामलों में वह दुनिया की टॉप फोर्स अमेरिकी नेवी सील से भी बेहतर है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि अमेरिकी नेवी सील और मार्कोस कमांडो का कई बार एक साथ अभ्यास हो चुका है। 26 फरवरी 1987 में इंडियन नेवी की मार्कोस कमांडो फोर्स का गठन हुआ। इन्हें दुनिया के सभी आधुनिक हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।

किस मकसद से बनाई गई यह स्पेशल कमांडो

मार्कोस कमांडो की स्पेशल यूनिट 26 फरवरी 1987 में इसलिए बनाई गई थी। उसे वक्त आतंकी हमले और समुद्री लुटेरों का आतंक काफी तेजी से बढ़ रहा था। उस पर काबू पाने और दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए यह स्पेशल यूनिट तैयार की गई। इसमें 1200 कमांडो मौजूद है, जिनका चयन बहुत ही कठिन ट्रेनिंग के बाद किया जाता है।

मार्कोस कमांडो की कठिन ट्रेनिंग कैसी होती है।

मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग बहुत कठिन होती है। जिसके बारे में एक आम इंसान सोच भी नहीं सकता मार्कोस के लिए चुने गए जवानों की 3 साल तक की बड़ी कठिन ट्रेनिंग होती है। इसमें से हजार जवानों में से कुछ ही जवानों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को 24 घंटे में सिर्फ चार-पांच घंटे ही सोने दिया जाता है। सुबह शुरू हुई है ट्रेनिंग देर रात भर चलती रहती है। हर परिस्थिति में जवानों को अपनी ट्रेनिंग पूरी करनी होती है। जवानों को भारत , राजस्थान,सोनमर्ग और मिजोरम जैसे अलग-अलग क्षेत्र में ट्रेनिंग देकर इन्हें तैयार किया जाता है।

ट्रेनिंग के दौरान क्या-क्या टास्क करने होते हैं?

मार्कोस की ट्रेनिंग के दौरान जवानों को कई तरह के मुश्किल टास्क करवाए जाते हैं। सैनिकों की पीठ पर 20-25 किलो का वजन रखकर उन्हें दौड़ाया जाता है। और इसके अलावा सैनिकों को भारी वजन लेकर कीचड़ के अंदर कम से कम समय में 800 किलोमीटर की दौड़ पूरी कराई जाती है। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को8-10 हजार मीटर की ऊंचाई से कूदना होता है।

और इन्हें जमा देने वाली बर्फ, डुबा देनी वाली कड़ी ट्रेनिंग कराई जाती है। मार्कोस के लिए जवानों की ट्रेनिंग अपनी जान में जोखिम डालने जैसी होती है ये ट्रेनिंग इतनी कठिन होती है।कि इस ट्रेनिंग में हिस्सा लेने वाला हर जवान इसे पूरा नहीं कर पाता। कई जवान तो आधी ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देते हैं। मार्कोस कमांडो के साथ किस तरह की सख्ती दिखाई जाती है। वो किसी का भी हौसला खत्म कर सकती है।

मार्कोस कमांडो कितने ऑपरेशन में हुए हैं तैनात

26 फरवरी 1987 से मार्कोस अब तक कई सारे ऑपरेशन में अपनी भूमिका निभा चुके हैं। और सारे ऑपरेशन को सफल अंजाम तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं। 1990 के दशक में पहली बार मार्कोस की तैनाती वुलर झील में की गई थी। 1987 पवन ऑपरेशन में मार्कोस कमांडो ने ही सफलता दिलाई थी।

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इसके बाद साल 1988 में कैक्टस ऑपरेशन1991 में ताशा ऑपरेशन,1999 में कारगिल वार ,2008 में ब्लैक टॉरनैडो नाडो ऑपरेशन और 2015 में हुए राहत ऑपरेशन इस स्पेशल कमांडो फोर्स ने कई बड़े ऑपरेशन में शानदार प्रदर्शन किया है। मार्कोस कमांडो को मगरमच्छ और दाढ़ीवाला फौज भी भी कहा जाता है इनके नाम से ही दुश्मनों की रूह कांपने लगती है।

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