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Is India Heading Towards Emergency: क्या भारत में लग सकती है दूसरी बार इमरजेंसी? क्या उस ओर बढ़ रहा भारत?

2015 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वो मानते कि भारत में दोबारा इमरजेंसी लग सकती है।

Is India Heading Towards Emergency: जानिए एक इंटरव्यू में लालकृष्ण आडवाणी ने इमरजेंसी के बारे क्या कहा?


आज़ाद भारत के इतिहास में 25 जून का दिन बेहद अहम है। 43 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी यानी आपातकाल लगा दिया था। इस दौरान कई नेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को जेल में भर दिया गया और प्रेस की आज़ादी पर भी अंकुश लगा दिया गया था।
Is India Heading Towards Emergency: जिन पत्रकारों को इस दौरान गिरफ्तार किया गया था उनमें से एक थे वीरेंद्र कपूर जिन्हें अरुण जेटली के साथ गिरफ्तार किया गया था। डिफेंस इंडिया रूल्स के तहत गिरफ्तार किए गए वीरेंद्र उस वक्त ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए काम करते थे।

लालकृष्ण आडवाणी ने इंटरव्यू में कहा

2015 में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वो मानते कि भारत में दोबारा इमरजेंसी लग सकती है।

क्या भारत में लग सकती है दूसरी बार इमरजेंसी

मीडिया रिपोर्ट में अनुसार जब ये सवाल प्रो. आनंद से किया गया तो उन्होंने कहा, ये सवाल वाजिब है। आज भी तो कार्यपालिका पूरी तरह शासक पार्टी के पास ही है। विधान करीब करीब स्थगित है। न दलील न अपील है। कई लोग आज भी लंबे समय तक जेलों में हैं। अदालतें लगभग लाचार हैं। हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ जैसे लोग अभी हैं तो न्यायपालिका पर भरोसा है। उनके कभी कभार आने वाले नीतिपूर्ण फैसलों को देखकर यह कहना है मुश्किल है कि देश में आपातकाल जैसे हालात हैं। मीडिया का एक ही हिस्सा काम कर रहा है। विरोधी दलों के खिलाफ असहिष्णुता का माहौल है।

आज 1975 के जैसी इमरजेंसी नहीं लग सकती

1975 वाली इमरजेंसी अब दोबारा नहीं लग सकती। वो इसलिए कि जनता बहुत जागरुक है। 43 साल के बाद आज आम आदमी को उसके अधिकारों का पता है।
दूसरा ये कि आज के वक्त में मीडिया, सोशल मीडिया और इंटरनेट इतना बढ़ गया है कि आज 1975 के जैसी इमरजेंसी नहीं लग सकती।

इमरजेंसी के कई रूप 

इमरजेंसी के कई रूप हो सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आपको जेल में ही डालना है। सरकारें आज के दिन भी लोगों को या अपने विरोधियों को ऑथोरिटेरियन तरीके से संभाल सकती हैं। लेकिन जिस तरह की इमरजेंसी इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने लगाई थी वो आज मुमकिन नहीं है।

उस वक्त की इमरजेंसी में?

उस वक्त देश में एक ही व्यक्ति का राज था। विपक्ष काफ़ी कमज़ोर और बिखरा हुआ था। दूसरा ये कि मीडिया उस वक्त मज़बूत नहीं थी। अधिकांश मीडिया कांग्रेस और सत्ताधारी पार्टी का समर्थक थी और डर के मारे अधिक नहीं बोलती थी। मीडिया की चाबी उन मालिकों के हाथों में थी जो सत्ताधारी पार्टी से लाइसेंस लेने के लिए निर्भर करते थे।

आज़ादी के बाद इमरजेंसी तक कांग्रेस पार्टी का राज

आज के दौर में मीडिया का काफ़ी विस्तार हो गया है और मीडिया में भिन्नता आ गई है। आज़ादी के बाद से लेकर जब तक इमरजेंसी लगी थी तब तक देश में सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी का राज था। इमरजेंसी के बाद लोगों को लगा कि हम कांग्रेस को या फिर एक पार्टी के राज को हटा सकते हैं। राजनीति में एक विकल्प भी हो सकता है, ये इमरजेंसी ने जनता को सिखाया। जनता को लगा कि इंदिरा गांधी को हराना संभव है।
ये पहले नहीं था जो आज है। इमरजेंसी की ये बहुत बड़ी देन है कि उसने जनता को जागरुक किया कि जो शासक जनता पर अधिक ज़्यादती करे तो उसे जनता ही उखाड़ कर फेंक सकती है।
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