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Dara Shikoh birthday: दारा शिकोह का जन्मदिन, एक विद्वान राजकुमार की विरासत

Dara Shikoh birthday: दारा शिकोह का जन्म 28 अक्टूबर 1615 को अजमेर, राजस्थान में हुआ था। वे मुगल सम्राट शाहजहाँ और मुमताज़ महल के सबसे बड़े पुत्र थे।

Dara Shikoh birthday: दारा शिकोह की जयंती, ज्ञान, संस्कृति और सहिष्णुता के प्रतीक

Dara Shikoh birthday: दारा शिकोह का जन्म 28 अक्टूबर 1615 को अजमेर, राजस्थान में हुआ था। वे मुगल सम्राट शाहजहाँ और मुमताज़ महल के सबसे बड़े पुत्र थे। दारा शिकोह न केवल एक योग्य शासक के रूप में जाने जाते हैं, बल्कि वे एक महान दार्शनिक, कवि और विद्वान भी थे। उनकी विचारधारा धार्मिक सहिष्णुता और हिंदू-मुस्लिम एकता पर आधारित थी।

शिक्षा और बौद्धिक झुकाव

दारा शिकोह को बचपन से ही शिक्षा और ज्ञान में रुचि थी। उन्होंने इस्लाम, हिंदू धर्म, सूफी परंपरा और वेदांत दर्शन का गहन अध्ययन किया। वे सूफी मत के अनुयायी थे और इस्लाम के रहस्यवादी पक्ष से प्रभावित थे। उन्होंने कई हिंदू ग्रंथों का फारसी में अनुवाद किया, जिनमें उपनिषद प्रमुख हैं। उनका मानना था कि इस्लाम और हिंदू धर्म का मूल एक ही है, और दोनों के बीच ज्ञान का आदान-प्रदान होना चाहिए।

धार्मिक सहिष्णुता और उपनिषदों का अनुवाद

दारा शिकोह ने हिंदू और इस्लामी परंपराओं के बीच समानता खोजने का प्रयास किया। उन्होंने संस्कृत के प्रमुख ग्रंथ उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया, जिससे भारतीय और इस्लामी ज्ञान परंपरा को जोड़ने में मदद मिली। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक “सिर्र-ए-अकबर” (महान रहस्य) में उन्होंने उपनिषदों को इस्लाम के विचारों से जोड़ा और उन्हें “तौहीद” (एकेश्वरवाद) की व्याख्या के रूप में प्रस्तुत किया।

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राजनीतिक संघर्ष और उत्तराधिकार युद्ध

शाहजहाँ के शासनकाल में दारा शिकोह को उत्तराधिकारी माना जा रहा था। वे अपने पिता के सबसे प्रिय पुत्र थे और उन्हें ‘शाह-ए-बुलंद इक़बाल’ की उपाधि दी गई थी। लेकिन उनके छोटे भाई औरंगज़ेब की कट्टर धार्मिक नीतियाँ और राजनीतिक महत्वाकांक्षा उनके लिए घातक साबित हुईं। 1657 में जब शाहजहाँ बीमार पड़े, तो मुगल सल्तनत में उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हो गया। दारा शिकोह को अपने भाइयों से कड़ी चुनौती मिली। 1658 में समूगढ़ के युद्ध में औरंगज़ेब ने उन्हें हरा दिया और बाद में 9 सितंबर 1659 को उन्हें बंदी बनाकर हत्या कर दी गई।

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दारा शिकोह की विरासत

दारा शिकोह भले ही सत्ता के संघर्ष में हार गए, लेकिन उनकी विचारधारा आज भी प्रासंगिक है। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे। उनकी किताबें और अनुवाद आज भी भारतीय दर्शन और इतिहास के महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं। दारा शिकोह केवल एक राजकुमार नहीं, बल्कि ज्ञान, सहिष्णुता और एकता के प्रतीक थे। उनका जन्मदिन हमें इस बात की याद दिलाता है कि भारत की वास्तविक पहचान विविधता और समरसता में है। उनका जीवन हमें धर्म, ज्ञान और प्रेम की शक्ति को समझने की प्रेरणा देता है।

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