Bharat Bandh: भारत बंद का देशभर में असर, कहीं बस चालकों ने पहना हेलमेट, कहीं ट्रैक पर जाम
Bharat Bandh, देशभर में यूनियनों द्वारा बुलाए गए हड़ताल का व्यापक असर देखने को मिल रहा है।
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Bharat Bandh, देशभर में यूनियनों द्वारा बुलाए गए हड़ताल का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। बैंकिंग, डाक, बीमा और परिवहन जैसे अहम क्षेत्र इस हड़ताल से बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। वहीं दूसरी ओर, शेयर बाजार और सर्राफा बाजार सामान्य रूप से खुले रहेंगे।
क्या है पूरा मामला?
इस हड़ताल के पीछे लंबे समय से चल रही नाराजगी और सरकार की अनदेखी है। पिछले साल यूनियनों ने केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को अपनी 17 मांगों का एक चार्टर सौंपा था, लेकिन यूनियनों का आरोप है कि अब तक उन मांगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। यही नहीं, पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन तक आयोजित नहीं हुआ है, जिसे यूनियनें सरकार की मजदूर विरोधी मानसिकता का प्रमाण मानती हैं। हिंद मजदूर सभा के प्रमुख हरभजन सिंह सिद्धू के अनुसार, “इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल से बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, फैक्टरी और राज्य परिवहन सेवाएं सबसे अधिक प्रभावित होंगी।” उन्होंने बताया कि हड़ताल केवल सेवाओं को बाधित करने के लिए नहीं, बल्कि सरकार की श्रमिक नीतियों के विरोध में एकजुटता दिखाने के लिए की जा रही है।
यूनियनों के आरोप, मजदूर हितों पर चोट
हड़ताल में शामिल संयुक्त ट्रेड यूनियनों के मंच ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि सरकार की नई श्रम संहिताएं (Labour Codes) श्रमिकों के अधिकारों को खत्म करने की दिशा में एक खतरनाक कदम हैं। इन संहिताओं से:
-सामूहिक सौदेबाजी की ताकत कमजोर होती है
-यूनियन गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है
-हड़ताल के अधिकार को सीमित किया गया है
इन नीतियों को यूनियनें केवल श्रम सुधार नहीं, बल्कि श्रमिक आंदोलन को कुचलने की योजना मानती हैं।
निजीकरण और ठेकेदारी से असुरक्षित भविष्य
संयुक्त मंच का यह भी कहना है कि सरकार सरकारी उद्यमों और सेवाओं के निजीकरण, आउटसोर्सिंग और ठेके पर काम कराने की नीतियों को बढ़ावा दे रही है। इससे न केवल रोजगार की स्थिरता खत्म होती है, बल्कि मजदूरों के भविष्य को भी खतरे में डाल दिया गया है। इन नीतियों के चलते स्थायी कर्मचारियों की संख्या घट रही है, और अस्थायी, कॉन्ट्रैक्ट आधारित और कम वेतन पर काम करने वाले मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। यूनियनों का मानना है कि यह सब कॉरपोरेट हितों की रक्षा के लिए किया जा रहा है, जबकि श्रमिकों के हितों की पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है।
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किसानों का समर्थन और ग्रामीण भारत में आंदोलन
इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल को सिर्फ मज़दूर संगठनों का ही नहीं, बल्कि किसान संगठनों का भी खुला समर्थन मिल रहा है।
संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि मज़दूर यूनियनों के संयुक्त मंच ने इस हड़ताल के समर्थन में ग्रामीण इलाकों में व्यापक प्रदर्शन आयोजित करने की घोषणा की है। उनका कहना है कि श्रमिक और किसान दोनों ही सरकार की आर्थिक नीतियों से प्रभावित हैं, और ऐसे में एकजुट होकर विरोध जताना ही एकमात्र रास्ता है।
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क्या हैं यूनियनों की चिंताएं?
इनका उद्देश्य श्रम कानूनों को सरल और एकीकृत करना बताया गया था, लेकिन यूनियनों का दावा है कि इनसे काम के घंटे बढ़ेंगे, यूनियनों की ताकत घटेगी और नियोक्ताओं को श्रम नियमों से बच निकलने के रास्ते मिल जाएंगे।
इसका नतीजा होगा:
-श्रमिकों के अधिकारों में कटौती
-नौकरी की सुरक्षा में गिरावट
-हड़ताल और विरोध की आज़ादी में बाधा
इस हड़ताल ने एक बार फिर देश में श्रमिक आंदोलनों की ताकत और उनकी समस्याओं को मुख्यधारा में ला दिया है। यूनियनें यह साफ कर चुकी हैं कि अगर सरकार ने उनकी मांगों की अनदेखी जारी रखी, तो भविष्य में और बड़े आंदोलन हो सकते हैं। श्रमिकों का कहना है कि वे सिर्फ वेतन नहीं, बल्कि सम्मानजनक कार्य, अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और भविष्य की स्थिरता की लड़ाई लड़ रहे हैं।
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