Hindi Patrakarita Divas: हिंदी पत्रकारिता ने तय किया 196 साल का सफर, जानिए कितने भारतीय हैं हिंदी को लेकर सजग!
Hindi Patrakarita Divas: कभी देश की आज़ादी तो कभी आम जन की आवाज़, हिंदी पत्रकारिता के जानें बेजोड़ प्रारूप
Highlights –
- 30 मई को हर साल हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है।
- 30 मई 1826 को उदन्त मार्तण्ड का पहला अंक प्रकाशित किया गया।
- 2011 की जनगणना में 52.8 करोड़ फीसद लोगों ने अपनी मातृभाषा हिंदी बताई।
Hindi Patrakarita Divas: आज 30 मई है यानी कि हिंदी पत्रकारिता दिवस।सबसे पहले तो आप सभी को हिंदी पत्रकारिता दिवस की बहुत सारी शुभकामनाएं। हिंदी पत्रकारिता ने एक लंबा सफर तय किया है। यह सफर कोई चंद सालों का नहीं है। हर भाषा की अपनी पहचान है, अपना वर्चस्व है जिसमें हिंदी भी है।
भारत में कई भाषाएं बोली जाती हैं। इसके अलावा कई बोलियाँ भी बोली जाती है। लेकिन हिंदी वह भाषा है जिसे लेकर देश में हमेशा सवाल उठते रहते हैं। आज हम हिंदी पत्रकारिता के विषय में बात करें उससे पहले हम हिंदी भाषा के बारे में ज़रा जानेंगे।
तथ्य – शुरुआत सरकार द्वारा किए गए जनगणना से करते हैं। 2011 की भाषाई जनगणना की बात करें तो 2011 की भाषाई जनगणना में 121 भाषाएं शामिल हैं। इन 121 भाषाओं में से संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं। इन 22 भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। 2011 की जनगणना में 52.8 करोड़ फीसद लोगों ने अपनी मातृभाषा हिंदी बताई थी जो 43.63 फीसद आबादी थी। इससे यह जाहिर होता है कि 56. 4 फीसद लोगों की मातृभाषा हिंदी नहीं थी। इसके अलावा समझने की बात करें तो देश के 57 प्रतिशत लोग हिंदी को समझते हैं।
हिंदी पत्रकारिता
वर्तमान समय में हिंदी भाषा को लेकर जो देशभर में खींचातानी है उससे हम सभी भली – भांती परिचित हैं। हिंदी पत्रकारिता देश की आज़ादी से पहले ही चली आ रही है और देश की स्वतंत्रता में हिंदी पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। तिलक, गांधी और भगत सिंह सहित देश के वीरों ने स्वतंत्रता के समय पत्रकारिता का सहारा लिया। उसमें भाषायी पत्रकारिता ख़ास करके हिंदी पत्रकारिता का बड़ा योगदान था।
पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी का प्रयोग अपनी सहूलियत से होता रहा है। आज परिवर्तन का समय है। लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से हिंदी का उपयोग करते हैं उसमें कई शब्द दूसरे भाषाओं के भी जोड़ दिए देते हैं। इससे कहीं – न – कहीं हिंदी पत्रकारिता की प्रकृति, इसका अपना रस विलुप्त हो रहा है। अथवा यह बहुत जरूरी है कि हम मिश्रित भाषाओं पर कम – से – कम ध्यान दें। क्योंकि यह बदलाव कभी हिंदी भाषा के विलुप्त होने का भी कारण हो सकता है।
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हिंदी पत्रकारिता का इतिहास
लगभग दो शताब्दी वर्ष पहले जब हिंदुस्तान में अंग्रेजों का राज था। उस वक्त अंग्रेजों ने हर भारतीय चीज पर अपना हक जमा लिया। यहाँ तक की भाषा पर भी अंग्रेजों ने अपना पैर जमाया था। अंग्रेजी को कामकाज की भाषा घोषित कर दी। अखबार से लेकर पत्रिका तक में अंग्रेजी भाषा का प्रकोप था। अंग्रेजी के अलावा फारसी, उर्दू, बांग्ला में अखबार और पत्रिका आते थे।
उस वक्त भारत में दूर – दूर तक हिंदी अखबार या पत्रिका को कोई नामोनिशान नहीं था। उस वक्त तत्कालीन भारत की राजधानी कलकत्ता में कानपुर के रहने वाले वकील पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने अंग्रेजों के नाक के नीचे हिंदी पत्रकारिता के इतिहास की आधारशिला रखी। उन्होंने उदन्त मार्तण्ड नाम के साप्ताहिक पत्रिका की आधारशिला पूरे देशभर में रखी।
इस साप्ताहिक पत्रिका ने पूरे देशभर में ऐसा छाप छोड़ा कि अंग्रेजों को यह बात हजम नहीं हुई और डेढ़ साल से अधिक इस पत्रिका का प्रकाशन नहीं हो पाया। यह साप्ताहिक अखबार प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित किया जाता था। इस अखबार में हिंदी भाषा के ब्रज और अवधी भाषा का मिश्रण होता था। भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत पंडित जुगल किशोर ने ही की थी।
30 मई को ही क्यों मनाया जाता है हिंदी पत्रकारिता दिवस
30 मई 1826 को उदन्त मार्तण्ड का पहला अंक प्रकाशित किया गया और यही वजह है कि 30 मई के दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाये जाने का प्रावधान शुरू किया गया और उसी वर्ष से हर वर्ष 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी को बचाओ
पत्रकार समाज का आईना कहलाते हैं। वह कभी सच से रूबरू कराते हैं तो कभी सही मार्ग दिखाते हैं। आज हिंदी पत्रकारिता ने 196 वर्ष का सफर तय किया है और इन वर्षों में हिंदी पत्रकारिता ने बहुत से उतार – चढ़ाव देखे हैं। हिंदी ने अपार बदलाव देखे हैं। कभी समाज की मार्गदर्शक बनने वाली यह भाषा आज अपनी शुद्धता खोती नज़र आ रही है। अपनी सहुलियत के हिसाब से दूसरे भाषाओं के साथ मिश्रण साथ ही अंग्रेजी का बढ़ावा कई ऐसे कारण हैं जो हिंदी पत्रकारिता को कमजोर कर रहे हैं।
आपके दिमाग में भाषा को लेकर कोई भी बात उपजे उससे पहले हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि यहाँ मुद्दा हिंदी भाषा को या हिंदी पत्रकारिता को सबसे उच्च बताना नहीं है बल्कि यहाँ मुद्दा है हिंदी पत्रकारिता की जो अपनी पहचान है उसे सदैव उजागर करते रहने का, उसे हमेशा जिंदा रखने का। बोलचाल की भाषा कहते – कहते शायद हम हिंदी के साथ कहीं – न- कहीं नाइंसाफी कर रहें हैं। इससे हमें बचना चाहिए।
तो इस हिंदी पत्रकारिता दिवस आइये हम सभी प्रण लें कि हम जितना और जब तक कर पाएंगे हम हिंदी के उत्थान, हिंदी की शुद्धता, हिंदी की अखंडता, हिंदी की सत्यता को बचाने में अपना पूरा योगदान देते रहेंगे।