Election Ink: दुनिया के इस देश में चुनावी स्याही का रंग है भगवा, जानें भारत के अलावा और किन देशों में होता इलेक्शन इंक का इस्तेमाल
Election Ink: दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकसभा चुनाव का आगाज 19 अप्रैल से शुरू हो गया है। शुक्रवार को पहले फेज के तहत कुल 102 सीटों पर वोट डाले गए। वोटिंग के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर नीली स्याही से एक निशान बनाया जाता है, जो लोकतंत्र के पर्व में शामिल होने का भी निशान माना जाता है।
Election Ink: कब हुआ सबसे पहले इलेक्शन इंक का इस्तेमाल, जानें इतिहास
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकसभा चुनाव का आगाज 19 अप्रैल से शुरू हो गया है। शुक्रवार को पहले फेज के तहत कुल 102 सीटों पर वोट डाले गए। वोटिंग के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर नीली स्याही से एक निशान बनाया जाता है, जो लोकतंत्र के पर्व में शामिल होने का भी निशान माना जाता है। आपकी उंगली पर लगी नीली स्याही इस बात का सबूत है कि आपने किसी पार्टी की सरकार बनाने के लिए मतदान किया है। नीले रंग की स्याही को भारतीय चुनाव में शामिल करने का क्रेडिट देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन को जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में एक ऐसा देश भी है जहां वोट देने पर भगवा रंग की स्याही लगाई जाती है। जिसका कनेक्शन हिंदू धर्म से है। आइए जानते हैं-
आपको बता दें कि इस देश का नाम सूरीनाम है। ये दक्षिण अमेरिका का सबसे छोटा संप्रभु देश है। जो अटलांटिक महासागर के किनारे पर स्थित है। सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो है। इसमें अलग-अलग जाति और धर्म के लोग रहते हैं लेकिन हिंदू धर्म से इस देश का खास कनेक्शन है। यहां पिछले दो दशकों से विधानसभा चुनावों में भगवा रंग की चुनाव स्याही लोगों की उंगली पर लगाई जा रही है।
राष्ट्रीय रंगों से मिलता जुलता है भगवा रंग
दरअसल 2005 के सूरीनाम विधान सभा चुनाव के लिए मतदाताओं की उंगलियों को चिह्नित करने के लिए रंग के रूप में बैंगनी की जगह नारंगी ने ले ली। ये रंग नीले रंग के मुकाबले लंबे समय तक चला। साथ ही वोटर्स ने भी इसे पसंद किया। क्योंकि ये राष्ट्रीय रंगों से मिलता जुलता था। आपको बता दें कि सूरीनाम में 18 फीसदी से ज्यादा लोग हिंदू हैं। यहां की आबादी में भारतीय मूल के लोगों की अच्छी-ख़ासी संख्या है।
सूरीनाम देश में चुनावी स्याही का रंग भगवा
सूरीनाम में हिंदू धर्म की कहानी 19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश राज में शुरू होती है। तब जबकि डच और ब्रिटिश के बीच खास व्यवस्था के तहत भारतीय गिरमिटिया मज़दूरों को औपनिवेशिक डच गुयाना भेजा गया। नीदरलैंड की हिंदू धर्म के प्रति उदार नीति ने वहां हिंदू धर्म को विकसित होने में मदद दी। 2015 तक सूरीनाम में 129,440 हिंदू थे। सूरीनाम को 25 नवंबर, 1975 को आज़ादी मिली। फिलहाल वहां से राष्ट्रपति चंद्रिकाप्रसाद ‘चान’ संतोखी हैं, जो 2020 से यहां राष्ट्रपति हैं और भारतवंशी हैं।
कब हुआ सबसे पहले इलेक्शन इंक का इस्तेमाल
1962 में देश में तीसरे आम चुनाव हुए। उसके बाद से सभी संसदीय चुनावों में वोट करने वाले वोटर्स को चिह्नित करने के लिए अमिट स्याही का इस्तेमाल किया गया। ऐसा दोहरे मतदान को रोकने के लिए किया जाता है। इस नीली स्याही को पानी, डिटर्जेंट, साबुन और अन्य सॉल्वैंट्स के प्रति प्रतिरोधी बनाया गया है। यानी आप किसी भी चीज से हाथ धो ले, ये इंक मिटेगी नहीं। यह निशान नाखून पर कुछ हफ्तों तक रहता है। नाखून बड़ा होने पर ये धीरे-धीरे मिटने लगता है। इस स्याही से स्किन को कोई नुकसान नहीं है।
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क्या है इलेक्शन इंक?
पानी आधारित स्याही सिल्वर नाइट्रेट, कई तरह के डाई (रंगों) और कुछ सॉल्वैंट्स का एक कॉम्बिनेशन है। इसे लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से भी जानते हैं। एक बार 40 सेकंड के अंदर उंगली के नाखून और त्वचा पर लागू होने पर यह करीब-करीब अमिट छाप छोड़ती है।
इन देशों में भी होता चुनावी स्याही का उपयोग
भारत के अलावा जहां चुनाची स्याही का इस्तेमाल होता है उनमें अफगानिस्तान, अल्बानिया, बहामा, अल्जीरिया, मिस्र, ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया, इराक, पाकिस्तान, लेबनान, लीबिया, मलेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, निकारागुआ, पेरू, फिलीपींस, सेंट किट्स और नेविस, दक्षिण अफ्रीका , श्रीलंका , सूडान, सीरिया , ट्यूनीशिया, तुर्की, वेनेजुएला, बहामास, कंबोडिया, चिली, डोमिनिक गणराज्य, मिस्र, ग्वाटेमाला, होंडूरास, इंडोनेशिया, इराक, केन्या, मैक्सिको, म्यांमार, नेपाल, निकारागुआ, फिलीपीन्स, पेरू, सेंट किट्स, सोलोमन आईलैंड्स और अमेरिका शामिल हैं।
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