World Malaria Day 2024: दुनिया में हर साल 25 करोड़ लोगों को होता है मलेरिया, जानें इसके लक्षण और कैसे करें बचाव
World Malaria Day 2024: मलेरिया के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोग जान गंवा देते हैं। इससे भी ज्यादा लोग मलेरिया की चपेट में आ जाते हैं। इस कारण सरकारों व आम लोगों पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ता है।
World Malaria Day 2024: कैसी डाइट लें मलेरिया के मरीज, आखिर क्यों पनपने लगते हैं मच्छर
मलेरिया के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोग जान गंवा देते हैं। इससे भी ज्यादा लोग मलेरिया की चपेट में आ जाते हैं। इस कारण सरकारों व आम लोगों पर भारी आर्थिक बोझ भी पड़ता है। मलेरिया मुक्त विश्व की परिकल्पना को साकार करने के लिए लिए वैश्विक स्तर पर हर साल 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है। विश्व मलेरिया दिवस के अवसर पर मलेरिया से जुड़े हर पक्ष के बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है, ताकि इसके प्रसार को रोका जा सके। वहीं आपको बता दें कि इस भीषण गर्मी में भी मलेरिया का खतरा बढ़ जाता हे। साफ सफाई की कमी, पानी का जमाव, संकरे घरों में मलेरिया के मच्छरों को पनपने का मौका मिलता है। आपको बता दें कि दुनिया में हर साल 25 करोड़ लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं।
किस मच्छर के काटने से होता है मलेरिया
मलेरिया मादा मच्छर एनोफेलीज के काटने से होता है। बरसात के मौसम या वातावरण में नमी होने पर मलेरिया के मच्छर पनपने लगते हैं और बीमारी फैलाते हैं। बुखार, सिर दर्द, उल्टी आना, ठंड लगना, थकान होना, चक्कर आना और पेट में दर्द होना मलेरिया के कुछ सामान्य लक्षण हैं। आमतौर पर मलेरिया दो सप्ताह में ठीक हो जाता है लेकिन बीमारी को नजरअंदाज करना रोगी के लिए जानलेवा हो सकता है। मलेरिया होने पर मरीज को अपने खानपान का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।
कैसे होती है बीमारी
WHO के मुताबिक मलेरिया की बीमारी ज्यादातर मामलों में संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से होती है। संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने के कारण इंसान के खून में प्लॅस्मोडियम वीवेक्स वायरस संचारित होता है। ये वायरस ही मलेरिया रोग की वजह बनता है। अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो वायरस लिवर तक पहुंचकर स्थिति को भयावह बना सकता है। कुछ मामलोंं में दूषित रक्त चढ़ाने और दूषित सुई के कारण भी मलेरिया हो सकता है।
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इन लक्षणों पर दें ध्यान
आपको बता दें कि मानव शरीर में प्रवेश हो जाने के बाद एनोफिलिस यकृत यानी लिवर में गुणात्मक रूप से बढ़ते हैं और फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। बुखार, ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द एवं थकान जैसी समस्या होने लगती है। कई बार तो बीमारी इतनी भयावह हो जाती है कि लोगों की मौत तक हो जाती है।
मलेरिया से बचाव के उपाय
- लक्षण महसूस होने पर तुरंत जांच कराना चाहिए।
- मलेरिया की दवाओं को चिकित्सक के परामर्श अनुसार लेना न भूलें। दवा को बीच में न छोड़ें।
- मच्छरदानी का प्रयोग अवश्य करें।
- सोने वाले कमरे में कीटनाशक का छिड़काव भी कर सकते हैं।
- आसपास पानी का जमाव न होने दें।
- पानी के टबों के ढक्कन बंद रखें।
- कूड़ेदान के प्रयोग की आदत डालें व ढक्कन को खुला न छोड़ें।
कैसी डाइट लें मलेरिया के मरीज
कार्बोहाइड्रेस से भरपूर आहार का करें सेवन
WHO के मुताबकि, मलेरिया के बुखार में शरीर का मेटाबॉलिक रेट बढ़ जाता है। इसलिए आपके शरीर को अधिक कैलोरी की जरूरत होती है। मलेरिया में मरीजों को हाई कार्बोहाइड्रेट डाइट का सेवन करना चाहिए। साबुत अनाज और बाजरा के बजाय चावल का विकल्प चुनें क्योंकि यह आसानी से पचता है और तेजी से शरीर को ऊर्जा देता है।
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प्रोटीन का सेवन अधिक करें
मलेरिया में ऊतकों को नुकसान होता है जिसके कारण प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता बढ़ जाती है। यह दोनों मैक्रोन्यूट्रिएंट्स ऊतकों के निर्माण में मदद करते हैं। प्रोटीन मैक्रोमोलेक्युलस हैं जो अमीनो एसिड से बने होते हैं जो आहार में आवश्यक होते हैं। इस बीमारी में प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है क्योंकि एंटीबॉडी को संश्लेषित करने के लिए आवश्यक प्रोटीन उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसे में मरीज को अंडे, नट्स, लीन मीट, मछली और डेयरी जैसे स्वस्थ प्रोटीन स्रोतों का सेवन करना चाहिए।
2022 में हुईं थीं इतनी मौतें
2022 में मलेरिया की चपेट में आने के कारण दुनिया भर में 608000 लोगों की मौत हो गई थी। 2022 में 24.900 करोड़ (249 मिलियन) लोग मलेरिया की चपेट में आए थे। 94 फीसदी मलेरिया के मामले और 95 फीसदी मौत के मामले अफ्रीका महाद्वीप में दर्ज किए गए थे।
भारत में मलेरिया की स्थिति
भारत के कई हिस्सों में मलेरिया आज भी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। देश में कुछ खास इलाके में हर साल नियमित तौर पर मलेरिया के मामले दर्ज किए जाते हैं। इन इलाकों में 90 फीसदी से ज्यादा मामले दर्ज किए जाते हैं। आधिकारिक तौर पर दर्ज 80 फीसदी मलेरिया के मामले कुछ सीमित क्षेत्रों में पाये जाते हैं, जिनमें आदिवासी समुदाय, पहाड़ी व दुर्गम इलाके के लोग रहते हैं।
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