विश्व मधुमेह दिवस
जागरुकता ही मधुमेह का इलाज है
हर साल 14 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस मनाया जाता है। इसे पहली बार सन् 1991 में मनाया गया और तब से इसे प्रत्येक वर्ष मनाया जा रहा है। जब रक्त में ग्लूकोस की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती है, तो उसे मधुमेह कहते हैं। भारत अपनी युवा आबादी की बदोलत आने वाले समय में दुनिया की एक बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के लिए तैयार है। लेकिन इस युवा आबादी के एक बड़े भाग के रक्त में मीठा ज़हर घुलता जा रहा है।
मधुमेह रोगियों की संख्या बढ़ना तो चिंता का विषय है ही, परंतु उससे बड़ा चिंता का विषय यह है की जिस उम्र कि लोगों को यह बीमारी हो रही है वह देश का आने वाला कल है अर्थात् युवा वर्ग है। पश्चिमी देशों की ओर देखा जाए तो वहाँ यह बीमारी लोगों को लगभग 60 की उम्र में घेरती है जबकि हमारे देश में यह बीमारी लोगों को 35-40 की उम्र के क़रीब ही लोगों के रक्त में अपने पैर जमा लेती है। इसका मतलब यह हुआ कि पश्चिमी देशों में यह बीमारी उन लोगों को प्रभावित कम कर रही है जो देश के लिए उत्पादक हैं।
डॉ.झींगन जो की मधुमेह पर एक पुस्तक लिख चुके हैं उनके अनुसार यह बीमारी शहरों में रहने वाले युवाओं में अधिक पाई जाती है, इसका कारण यह है की गाँव में रहने वाले लोग आज भी परिश्रम युक्त कार्य करते हैं जो शहरों में रहने वाले लोग नहीं करते। शहरों में रहने वाले लोगों का जीवन दिन प्रतिदिन गतिहीन होता जा रहा है। अब सभी काम नयी तकनीकी मशीन से किए जाते हैं।
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अब किसी घर का उदाहरण ही ले लिया जाए तो हमें हर कार्य को करने वाली मशीन मिल जाएगी। जैसे कपड़े धोना एक मेहनत का काम है परंतु मेहनत करने की जगह लोग घरों पर वॉशिंग मशीन रखना पसन्द करते हैं। यहाँ तक कि अब तो रोटी बनाने और आटा माँड़ने के लिए भी मशीन मार्केट में आसानी से उपलब्ध होती हैं।
इन सब ने मनुष्य की सहायता तो की है परंतु उतना ही बीमारियों को आमंत्रण भी दिआ है। शहरी जीवन में लोग खानपान के मामले में बेहद लापरवाह होते जा रहे हैं। दिल्ली में तो लोग नाश्ता भी छोले भटूरे से करते हैं। यह जानते हुए भी की वह उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नही है। शहरों में लोग चाहे-अनचाहे कितने ही रोग पालते हैं यही सब मिलकर मधुमेह का कारण बन जाते हैं।
अधिक भूख व प्यास लगना,अधिक बार पेशाब जाना,सुस्ती,वज़न घटना,घावों का देर से भरना,बार बार ऐलर्जी होना मधुमेह के सामान्य लक्षण हैं। लेकिन हम केवल इन लक्षणों से ही मधुमेह को नही पकड़ सकते। ताकि मधुमेह पूरे देश में ना फैले इसके लिए आवश्यक है की 35 साल की आयु के पश्चात सभी मनुष्यों को मधुमेह की जाँच कराते रहना चाहिए।
इससे समस्या के बिगड़ने को काफ़ी हद तक रोका जा सकता है क्योंकि यदि बहुत समय तक ग्लूकोस निर्धारित सीमा से अधिक रहे तो इससे हृदय,रक्तचाप, जिगर और नेत्रों से सम्बंधित समस्याएँ भी उत्पन्न होनी शुरू हो जाती हैं।
यह मानना ग़लत है की मधुमेह का इलाज केवल दवाइयों से ही हो सकता है यह जीवनशैली के कारण होने वाला रोग है और इसका उपचार जीवनशैली को ठीक कर के भी किआ जा सकता है। मधुमेह की रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने की ज़रूरत है और सभी का योगदान अनिवार्य है।