Sarojini Naidu: नारी शक्ति की मिसाल, जानिए सरोजिनी नायडू का प्रेरणादायक जीवन
Sarojini Naidu, सरोजिनी नायडू एक ऐसी महान विभूति थीं जिन्होंने नारी सशक्तिकरण, स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी।
Sarojini Naidu : भारत कोकिला, सरोजिनी नायडू की जीवनगाथा
Sarojini Naidu, सरोजिनी नायडू एक ऐसी महान विभूति थीं जिन्होंने नारी सशक्तिकरण, स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय साहित्य को एक नई दिशा दी। वे केवल एक राजनेता या स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं थीं, बल्कि एक सशक्त कवियित्री भी थीं, जिन्हें “भारत कोकिला” की उपाधि दी गई थी। Sarojini Naidu का संपूर्ण जीवन देशभक्ति, नारी जागरण और साहित्यिक उत्कृष्टता से ओत-प्रोत रहा।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
Sarojini Naidu का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। Sarojini Naidu के पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय और माता का नाम वरदा सुंदरी था। उनके पिता एक वैज्ञानिक, शिक्षाविद और हैदराबाद कॉलेज के संस्थापक थे, जबकि माता एक कवियित्री थीं। सरोजिनी को बचपन से ही साहित्य और कला का वातावरण मिला। मात्र 12 वर्ष की उम्र में Sarojini Naidu ने “द लेडी ऑफ लेक” नामक लंबी कविता लिखी थी। 16 वर्ष की उम्र में उन्हें इंग्लैंड में पढ़ाई का अवसर मिला। उन्होंने किंग्स कॉलेज, लंदन और फिर गिरटन कॉलेज, कैंब्रिज में शिक्षा प्राप्त की। विदेश में रहकर उन्होंने पश्चिमी साहित्य, राजनीति और समाज के बारे में गहराई से जाना, साथ ही भारतीयता को भी और अधिक आत्मसात किया।
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Sarojini Naidu का साहित्यिक जीवन
Sarojini Naidu का साहित्यिक जीवन उनके राजनीतिक जीवन से पहले शुरू हुआ था। वे अंग्रेज़ी भाषा की प्रख्यात कवियित्री थीं, लेकिन उनकी कविताओं में भारतीयता, प्रेम, प्रकृति और देशभक्ति का अद्भुत समावेश था। उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं:
-The Golden Threshold (1905)
-The Bird of Time (1912)
-The Broken Wing (1917) उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति, त्योहार, लोक जीवन, स्त्री भावना और राष्ट्रप्रेम की सुंदर झलक मिलती है। उन्हें “भारत कोकिला” की उपाधि महात्मा गांधी द्वारा दी गई थी।
राजनीतिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
Sarojini Naidu का राजनीतिक जीवन महात्मा गांधी से मिलने के बाद प्रारंभ हुआ। वे गांधीजी से पहली बार 1914 में मिलीं और उनके विचारों से अत्यंत प्रभावित हुईं। इसके बाद उन्होंने सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया।
नारी सशक्तिकरण में योगदान
Sarojini Naidu उस समय नारी अधिकारों की आवाज बनीं, जब भारतीय समाज रूढ़िवादी सोच से जकड़ा हुआ था। वे भारतीय महिलाओं को शिक्षा, आत्मनिर्भरता और राजनीतिक भागीदारी के लिए प्रेरित करती थीं। Sarojini Naidu ने महिलाओं को राजनीति में आने के लिए उत्साहित किया और उनके आत्मबल को बढ़ाया। उनकी प्रेरणा से अनेक महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ (All India Women’s Conference) के माध्यम से महिलाओं को संगठित किया और उन्हें अधिकारों के लिए जागरूक किया।
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निधन
2 मार्च 1949 को उनका देहांत उत्तर प्रदेश के गवर्नर हाउस में हुआ। उनका निधन एक युग की समाप्ति जैसा था। वे अपने पीछे साहित्य, राजनीति और समाज सेवा की ऐसी विरासत छोड़ गईं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी। Sarojini Naidu न केवल स्वतंत्रता संग्राम की एक महान योद्धा थीं, बल्कि एक ऐसी स्त्री थीं जिन्होंने भारत की आत्मा को अपनी कविताओं और कार्यों में सजीव कर दिया। उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। आज भी उनके विचार, कविताएँ और कार्य भारतीय महिलाओं और युवाओं को नई दिशा देते हैं। वे वास्तव में भारत की एक महान बेटी थीं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है।
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