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Guru Dutt: कौन थे गुरु दत्त? जानिए एक महान फिल्मकार की कहानी

Guru Dutt, गुरु दत्त, हिंदी सिनेमा के उन गिने-चुने कलाकारों में से एक हैं जिनकी प्रतिभा, संवेदनशीलता और कला के प्रति समर्पण ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दी।

Guru Dutt : जब सिनेमा ने कविता से मुलाकात की, गुरु दत्त की विरासत

Guru Dutt, गुरु दत्त, हिंदी सिनेमा के उन गिने-चुने कलाकारों में से एक हैं जिनकी प्रतिभा, संवेदनशीलता और कला के प्रति समर्पण ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को एक नई दिशा दी। उनका जन्म 9 जुलाई 1925 को बैंगलोर (तत्कालीन मैसूर राज्य) में हुआ था। गुरु दत्त न केवल एक उत्कृष्ट अभिनेता थे, बल्कि एक महान निर्देशक, निर्माता और पटकथा लेखक भी थे।

आरंभिक जीवन और करियर

Guru Dutt का वास्तविक नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था। उनका झुकाव बचपन से ही कला, विशेषकर नृत्य और अभिनय की ओर था। उन्होंने कुछ समय के लिए उस्ताद उदय शंकर के नृत्य संस्थान से प्रशिक्षण लिया। फिल्मी करियर की शुरुआत उन्होंने तकनीशियन के रूप में की थी, लेकिन उनकी प्रतिभा ने उन्हें जल्द ही कैमरे के सामने और उसके पीछे भी स्थापित कर दिया।

Guru Dutt
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निर्देशन की अनूठी शैली

गुरु दत्त की फिल्मों में कविता, संगीत, भावनात्मक गहराई और सामाजिक टिप्पणी का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने अपने समय से काफी आगे की सोच रखी, जिसकी झलक उनकी फिल्मों में साफ दिखती है। उनकी फिल्मों के विषय गंभीर होते थे, परंतु प्रस्तुतिकरण बेहद कलात्मक और संवेदनशील होता था। उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में ‘प्यासा’ (1957), ‘कागज़ के फूल’ (1959), ‘चौदहवीं का चाँद’ (1960) और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ (1962) प्रमुख हैं। विशेष रूप से ‘प्यासा’ को विश्व सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में गिना जाता है, जिसमें एक संवेदनशील कवि की पीड़ा और समाज से संघर्ष को बारीकी से दिखाया गया है।

Guru Dutt
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अभिनय और संगीत में योगदान

गुरु दत्त की फिल्मों की एक और खासियत थी संगीत। उन्होंने एस.डी. बर्मन, साहिर लुधियानवी, गीता दत्त, मोहम्मद रफ़ी जैसे कलाकारों के साथ मिलकर संगीत और भावनाओं का जादुई मेल तैयार किया। उनके अभिनय में नज़ाकत, गहराई और दर्द था, जो सीधे दर्शकों के दिलों को छू जाता था।

व्यक्तिगत जीवन और असमय निधन

गुरु दत्त का निजी जीवन उतना ही जटिल और भावनात्मक था जितनी उनकी फिल्में। गायिका गीता दत्त से विवाह के बावजूद उनके वैवाहिक संबंधों में तनाव रहा। उनके जीवन की असफलताएं, मानसिक तनाव और अकेलापन इतना बढ़ गया कि 10 अक्टूबर 1964 को मात्र 39 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। कहा जाता है कि यह आत्महत्या थी, हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी।

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