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Anxiety in Gen Z: आज की युवा पीढ़ी क्यों झेल रही है ज्यादा Anxiety? जानें कारण और उपाय

Anxiety in Gen Z, आज की तेजी से बदलती दुनिया में Gen Z (1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी) सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। तकनीक, सोशल मीडिया, पढ़ाई, करियर और रिश्तों का दबाव इस पीढ़ी पर पहले से कहीं ज्यादा है।

Anxiety in Gen Z : क्या आप भी Gen Z हैं? जानें क्यों बढ़ रही है आपकी चिंता और कैसे करें कंट्रोल

Anxiety in Gen Z, आज की तेजी से बदलती दुनिया में Gen Z (1997 से 2012 के बीच जन्मी पीढ़ी) सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। तकनीक, सोशल मीडिया, पढ़ाई, करियर और रिश्तों का दबाव इस पीढ़ी पर पहले से कहीं ज्यादा है। परिणामस्वरूप, एंग्ज़ायटी (Anxiety) यानी चिंता की समस्या Gen Z में बड़ी तेजी से बढ़ रही है। यह केवल मानसिक स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि शारीरिक सेहत, आत्मविश्वास और रिश्तों को भी प्रभावित कर रही है।

Gen Z में एंग्ज़ायटी क्यों बढ़ रही है?

1. सोशल मीडिया का दबाव

इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसी प्लेटफ़ॉर्म्स पर “परफेक्ट लाइफ” को देखकर Gen Z खुद की तुलना दूसरों से करती है। लाइक्स और फॉलोअर्स का खेल उनके आत्मसम्मान को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे चिंता का कारण बनता है।

2. करियर और पढ़ाई का तनाव

आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में अच्छी पढ़ाई, करियर और जॉब को लेकर लगातार दबाव रहता है। “अगर मैं पीछे रह गया तो?” जैसी सोच युवा मन को असुरक्षित बना देती है।

3. आर्थिक असुरक्षा

मंहगाई, नौकरी की अनिश्चितता और भविष्य की प्लानिंग को लेकर भी Gen Z काफी चिंतित रहती है। आज का युवा स्टार्टअप्स या क्रिएटिव करियर की ओर बढ़ रहा है, लेकिन असफलता का डर उसे बेचैन करता है।

4. रिश्तों और सामाजिक अपेक्षाएँ

Gen Z रिश्तों में खुलकर एक्सप्लोर कर रही है, लेकिन असफल रिश्ते, ब्रेकअप और समाज की उम्मीदें उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती हैं।

5. कोविड-19 का प्रभाव

महामारी ने इस पीढ़ी को गहराई से प्रभावित किया। लंबे समय तक आइसोलेशन, ऑनलाइन क्लासेस और अनिश्चित भविष्य ने उनकी चिंता को और बढ़ा दिया।

एंग्ज़ायटी के लक्षण जिन्हें पहचानना ज़रूरी है

  • बार-बार बेचैनी और घबराहट महसूस होना
  • नींद न आना या बार-बार नींद टूटना
  • ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
  • नकारात्मक विचारों का आना
  • तेज धड़कन, पसीना आना, कांपना
  • छोटे-छोटे कामों में भी डर या घबराहट

अगर ये लक्षण लगातार बने रहें तो यह क्लिनिकल एंग्ज़ायटी हो सकती है।

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Gen Z को एंग्ज़ायटी से कैसे निपटना चाहिए?

1. डिजिटल डिटॉक्स

हर दिन कुछ घंटों के लिए सोशल मीडिया से दूरी बनाना बहुत जरूरी है। स्क्रीन टाइम कम करके रियल लाइफ एक्टिविटीज़ जैसे किताब पढ़ना, संगीत सुनना या दोस्तों से आमने-सामने बातचीत करना चिंता कम कर सकता है।

2. मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करना

Gen Z को “क्या कहेंगे लोग” वाली सोच छोड़कर मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करनी चाहिए। दोस्तों, परिवार या काउंसलर से बातचीत तनाव को हल्का करती है।

3. मेडिटेशन और योग

योग, प्राणायाम और मेडिटेशन चिंता को काफी हद तक कम करते हैं। यह तकनीक दिमाग को शांत, फोकस्ड और संतुलित बनाती है।

4. समय प्रबंधन और लक्ष्य निर्धारण

छोटे-छोटे लक्ष्य बनाकर उन पर काम करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और असफलता का डर कम होता है।

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5. हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाना

  • पौष्टिक खाना
  • नियमित व्यायाम
  • पर्याप्त नींद
    ये सब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को संतुलित रखते हैं।

6. प्रोफेशनल मदद लेना

अगर चिंता ज्यादा बढ़ जाए तो साइकोलॉजिस्ट या थेरेपिस्ट से मदद लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। थेरेपी और काउंसलिंग से नई सोच और सकारात्मक नजरिया मिलता है।

समाज की भूमिका

Gen Z की एंग्ज़ायटी को सिर्फ वे अकेले नहीं संभाल सकते। परिवार, स्कूल, कॉलेज और समाज को भी इसमें मदद करनी होगी। माता-पिता को बच्चों पर जरूरत से ज्यादा दबाव डालने से बचना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों को काउंसलिंग सेशन और वर्कशॉप्स आयोजित करनी चाहिए। समाज को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी रूढ़ियों को तोड़ना होगा। Gen Z भारत और दुनिया का भविष्य है। लेकिन अगर यही पीढ़ी मानसिक रूप से अस्वस्थ रहेगी तो समाज का संतुलन बिगड़ सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि हम एंग्ज़ायटी को कमजोरी नहीं बल्कि एक सामान्य समस्या मानें और इससे निपटने के लिए सही कदम उठाएँ।

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