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रानी लक्ष्मीबाई का दूसरा रुप Jhalkari bai, जिसने रानी को बचाने के लिए अंग्रेजों को दिया चकमा

इतिहास के पन्नों से ओझल है Jhalkari bai के बलिदान के किस्से- कहानियां


Jhalkari bai- देशों को आजाद कराने के लिए कई लोगों ने अपने प्राणों को निछावर कर दिया। इनमें कई महिलाएं भी थी जिन्होंने अपने प्राणों को बिना चिंता किए देश के लिए अपने आप की आहुति दे दी। इन्हें में से एक थी झलकारी बाई। जिन्हें झांसी की रानी की हमशक्ल कहा जाता है। इन दोनों वीरांगानओं की शक्ल एक जैसे होने कारण इन्होंने अंग्रेजों को युद्ध में चकमा दे दिया। जिसके कारण रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के जाल से बचने में कामयाब हो गई।

मशहूर सहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा ने अपनी उपन्यास “झांसी की रानी-लक्ष्मीबाई’ में लिखा है कि

प्रात:काल के पहले ही हाथ मुँह धोकर तैयार हो गईं.

पौ फटते ही घोड़े पर बैठीं और ऐठ के साथ अंग्रेज़ी छावनी की ओर चल दिया. साथ में कोई हथियार न लिया. चोली में केवल एक छुरी रख ली.

थोड़ी ही दूर पर गोरों का पहरा मिला. टोकी गयी….

झलकारी ने टोकने के उत्तर में कहा, ‘हम तुम्हारे जडैल के पास जाउता है.’

यदि कोई हिन्दुस्तानी इस भाषा को सुनता तो उसकी हँसी बिना आये न रहती.

एक गोरा हिन्दी के कुछ शब्द जानता था. बोला, ‘कौन?’

रानी – झाँसी की रानी, लक्ष्मीबाई, झलकारी ने बड़ी हेकड़ी के साथ जवाब दिया

गोरों ने उसको घेर लिया.

उन लोगों ने आपस में तुरंत सलाह की, ‘जनरल रोज़ के पास अविलम्ब ले चलना चाहिए.’

उसको घेरकर गोरे अपनी छावनी की ओर बढ़े.

शहर भर के गोरों में हल्ला फैल गया कि झाँसी की रानी पकड़ ली गयी. गोरे सिपाही ख़ुशी में पागल हो गये. उनसे बढ़कर पागल झलकारी थी.

उसको विश्वास था कि मेरी जाँच – पड़ताल और हत्या में जब तक अंग्रेज़ उलझेंगे तब तक रानी को इतना समय मिल जावेगा कि काफ़ी दूर निकल जावेगी और बच जावेगी…”

यह दास्ता उस वक्त की  जब झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई को बचाने के लिए अंग्रेजों को सामने स्वयं अकेली लड़ने चली गई और शहीद हो गई। हां यह सच है कि बहुजन समाज की नायिका झलकारी बाई को वे प्रसिद्धि या इतिहास में जगह नहीं मिल पाई जिसकी वह हकदार थी। आज भी मध्यप्रदेश के अलावा कई शहरों में उनकी मूर्तियां चौहारों पर देखने के मिलती है। जो यह दर्शाती है कि वह कितनी बड़ी वीरांगना थी। बचपन से ही साहसी थी।

उनके पिता सैनिक थी इसलिए अस्त्र-शस्त्र चलाना और घुड़सवारी विरासत में मिली थी। जिसका नतीजा यह था कि घुडसवारी से लेकर भला चलाने तक झलकारी हर काम में निपुण थी। झलकारी की माता देहांत उनके बचपन में ही हो गया था।

झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को झांसी के पास झोजला गांव  में एक निर्धन कोली परिवार हुआ था। मां की असमय मृत्यु होने के कारण वह बचपन से ही घर संभालने से लेकर पशुओं के रख-रखाव का भी ध्यान रखती थी। इतना ही नहीं इसी दौरान झलकारी ने घुडसवारी भी सीखीं। झलकारी ने अपनी इसी कला के सहारे डाकूओं के गिरोह का भी सामना किया और विजय  हुई।

एक बार भी बात है झलकारी जंगल में लकड़ी काटने गई थी। इसी दौरान उसका सामना एक तेंदुए से हो गया। वह भला चलने में इसी निपुण थी।  उन्होंने भले से तेंदुए को ही काट दिया। इसी बीच झलकारी बाई की शादी एक सैनिक से हो गई। शादी के बाद वह एक पूजा के अवसर पर रानी लक्ष्मीबाई को बधाई देने गई। रानी उन्हें देखकर हैरानी रह गई क्योंकि झलकारी रानी का दूसरा रुप थी। इसके बाद रानी लक्ष्मीबई और झलकारी बाई के बीच दोस्ती का सिलसिला बढ़ा और बलिदान देने पर खत्म हुआ।

पहला स्वतंत्रता संग्रम 1857 के दौरान जब सारा देश अंग्रेजों की चुंगल से आजादी के लिए आतुर था। उसी दौरान अंग्रेजों ने झांसी की रानी के किले पर हमला कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रानी लक्ष्मीबाई का एक सैनिक गद्दार निकल गया और अंग्रेजों के  साथ मिलकर उन्हें किले तक पहुंचने में उनकी मदद की। उसी दौरान झलकारी ने अपनी सच्ची मित्रता का परिचय देते हुए रानी को वहां से भाग जाने को कहा और स्वयं अंग्रेजों से लड़ी।

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झलकारी की बदौलत ही रानी वहां से भागने में कामयाब हो गई। वही दूसरी ओर अंग्रेजों को लगा कि वह रानी लक्ष्मीबाई को पकड़ने में कामयाब हो गए। लेकिन जब अंग्रेजों को यह पता चला कि उनके साथ धोखा हुआ है कि वह गुस्साएं अंग्रेजों ने झलकारी बाई को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया।

मैथिली शरण गुप्त ने झलकार बाई के बारे में  लिखा है  कि

जा कर रण में ललकारी थी

वह तो झांसी की झलकारी थी

गोरों से लड़ना सिखा गई

है इतिहास में झलक रही

वह भारत की ही नारी थी

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