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जाने कैसे बनाते है सुरभि और उनके पार्टनर मंदिर के फूलों से ईको फ्रेंडली अगरबत्ती और हवन कप

जाने मंदिर के फूलों का सही इस्तमाल


मंदिर तो हम सभी लोग जाते है आपनेभी देखा होगा कि मंदिर में अक्सर लोग पूजा के समय चढ़ावे में प्रसाद से
लेकर पैसा, फल फूल सभी चीजें चढ़ाते है। और जिनका इस्तेमाल मंदिर के  पुजारियों को मंदिर के दान के रूप में किया जाता है। या फिर मंदिर के काम में लगा देते हैं सारी चीजे तो  इस्तेमाल हो जाते है फिर चाहे वो प्रसाद हो या फल या पैसे। लेकिन एक चीज जो इस्तेमाल नहीं होती वह है मंदिर में चढ़ने वाले फूल। ये फूल केवल कचरे के रूप में नदियों में बहाए जाते है। इसका नुकसान यह होता है कि इन फूलों में पड़े पेस्टीसाइड और कीटनाशक पानी को प्रदूषित करते है। जिनसे कई सारी बीमारियां पैदा होती। तो चलए आज हम आपको उस संस्था के बारे में बताएंगे जो इन फूलों का सही इस्तेमाल करती है।

दिल्ली की यह संस्था बनती है मंदिर के फूलों से अगरबत्ती और हवन कप

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 दिल्ली की यह संस्था बनती है मंदिर के फूलों से अगरबत्ती और हवन कप

हम में से ज्यादातर लोग जानते है कि मंदिर में चढ़ाये जाने वाले फूलों को अक्सर या तो किसी खाली जगह पर फेक दिया जाता है या फिर नदियों में बहा दिया जाता है जिसके कारण नदी के पानी में प्रदूषित हो जाता है। इस लिए आज हम आपको दिल्ली की एक ऐसी संस्था के बारे में बताएंगे जो मंदिर से निकलने वाले फूलों से पूजा में जलने वाली अगरबत्ती से लेकर धूप और हवन कप बनाते है। दिल्ली की यह संस्था दिल्ली के 120 से ज्यादा मंदिरों से जुड़ी हुई है। यह संस्था मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर  ईको फ्रेंडली अगरबत्ती और हवन कप बनाकर तैयार करती हैं।

आपको बता दे कि साल 2019 में राजीव बंसल ने  महाराष्ट्र के शिरडी में देखा कि कैसे हम मंदिर में चढ़े फूलों को रिसाइकिल कर इस्तेमाल कर सकते हैं। उसके बाद उन्होंने इस पर काफी ज्यादा रिसर्च की और पता लगाया की कैसे फूलों को रिसाइकल कर इस्तेमाल किया जा सकता है। उसके बाद उन्होंने अपनी सिस्टर इन लॉ सुरभि के साथ मिलकर निर्मलाय संस्था की शरूआत की।

आपको बता दे कि राजीव बंसल और उनकी सिस्टर इन लॉ सुरभि ने मिल कर दिल्ली के धाम कॉम्प्लेक्स में
इसकी फैक्ट्री को बनाया। यहाँ पर अपने रिसाइकिल के तरीके को बनाने के बाद उन्होंने इसे पेटेंट भी करा लिया “द काउंसिल फ
साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च” के अंतर्गत। शुरुआत में उन्होंने इस काम के लिए लगभग 40
महिलाओं को रखा। लेकिन उसके बाद कोरोना महामारी की वजह से मंदिरों के बंद होने और फूलों के चढ़ावे में कमी की वजह से उनके काम में भी कमी आ गई। उसके बाद उन्होंने 40 महिलाओं में से कुछ को हटा  दिया। अभी उनके साथ 15 महिलाएं ही काम पर रहती हैं।

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