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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का इतिहास, जहां सिंगूर, नंदीग्राम जैसे मामले ने तोड़ा लाल दुर्ग
काम की बात

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव का इतिहास, जहां सिंगूर, नंदीग्राम जैसे मामले ने तोड़ा लाल दुर्ग

History of west Bengal assembly election – क्या बीजेपी 3 सीटों से 200 सीटों तक पहुंच पाएगी


History of west Bengal assembly election – पश्चिम बंगाल में चुनाव की तारीखों का ऐलान होते के साथ ही विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने रण का आगाज कर दिया है। बंगाल के हर जिले में हर पार्टी के झंडे पर उसका  स्लोगन लिखा हुआ है। बंगाल और गैर बंगाली की लड़ाई में बंगाल के हर कोने से बड़े-बड़े होर्डिंग्स से लेकर दीवारों पर चिपके पोस्टर पर एक ही बात लिखी है “बंगला निजे मैए के चाई” अर्थात बंगाल अपनी बेटी को ही चाहता है। इन सारे स्लोगन का से साफ  है कि बंगाल की सत्ता में सिर्फ बंगाली भाषी ही काबिज रहने चाहिए। यहां की राजनीति का एक लंबा इतिहास रहा है। जहां कोयलांचल के कोयले से लेकर दार्जिलिंग के चाय बगान तक राजनीति शामिल है। बंगाल हमेशा से अपनी संस्कृति के लिए  ही जाना जाता है। यही बात तृणमूल कांग्रेस लोगों के जहन में डालने की कोशिश कर रहा है।

आजादी से पहले ही बंगाल में राजनीति चेतना लोगों के बीच बहुत ज्यादा थी। शिक्षा का स्तर अच्छा होने के कारण यह राजनीति रुप से भी मजबूत था। देश आजाद होने के बाद पहला विधानसभा चुनाव 1951 में हुआ  जिसमें 14 पार्टियों मैदान  में थी।  पहले विधानसभा चुनाव में 42 प्रतिशत वोट पड़े और कांग्रेस की जीत हुई। कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया 10.76 प्रतिशत वोट के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसके बाद लगातार तीन बार बंगाल में इनका राज रहा। जिसमें दो बार विधान चंद्र राय और एक बार प्रफुल्ल चंद्र सेन प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। जिस वक्त बंगाल में कांग्रेस सत्ता में  थी केंद्र में भी कांग्रेस का ही राज था। देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस काबिज थी।  लगातार तीन बार की जीत के बाद बंगाल में किसी भी पार्टी ने बहुमत हासिल नहीं किया। जिसके परिणाम यह हुआ कि वाम दलों ने अपने आप को बंगाल को मजबूत कर लिया और यहां से शुरु होती है बंगाल में वाम की कहानी।

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bengal elections
Image source – India today

बंगाल में 34 साल वाम

बंगाल की सत्ता में लगातार बिना बहुमत की  बनती पार्टियों के बीच 1972 में कांग्रेस ने एकबार फिर वापसी कर पांच साल तक सत्ता में काबिज रही। वहीं दूसरी ओर देश में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकलकर जनता पार्टी के हाथ में चली गई। वही दूसरी ओर बंगाल में भी सत्ता बदलने की तैयारी में थी। यहां वाम अपने आप मजबूत करने की तैयारी में थी।  इस विधानसभा चुनाव में  तीन पार्टियों ने मिलकर गठबंधन किया। जिसमें सीपीआईएम, जनता पार्टी और कांग्रेस ने चुनाव लड़ा। जिसमें सीपीआईएम ने 224 में से 178 सीटें, जनता पार्टी ने 289 में से 29 और 290 में 20 सीटों पर जीत हासिल कर वाम दल के लिए सत्ता का रास्ता खोला। यही से शुरु 34 साल तक बंगाल की सत्ता में कब्जा जमाने का सफर। जिसमें 1977 से लेकर 2000 तक ज्योति बसु प्रदेश का मुख्यमंत्री रहें और बाकी से सालों में 2001 से 2011 तक बुद्धदेव भट्टाचार्य ने लेफ्ट फ्रंट की सरकार की कमान संभाली।

नंदीग्राम ने बदला बंगाल में 34 साल का राज

बंगाल के इतिहास में नंदीग्राम का नाम हमेशा याद रखा जाएगा। यह एक ऐसी जगह है जिसने बंगाल की राजनीति में लाल के दुर्ग को हिला दिया। लंबे समय तक सत्ता पर काबिज वाम दल को बाहर का रास्ता दिखा दिया। जिसकी बदौलत तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल की राजनीति में अपना पैठ बना ली और पिछली दस सालों से ममता बनर्जी प्रदेश की मुख्यमंत्री है। वाम की सरकार ने सिंगूर और नंदीग्राम की जमीन का अधिग्रहण हुआ। इसी अधिग्रहण ने वाम की सरकार पर ही ग्रहण लगा दिया। पूंजीवाद के विरोध में ममता बनर्जी ने 25 दिनों तक अनशन किया। पुलिस की लाठियां खाई। लेकिन सिंगूर में टाटा का प्लांट और नंदीग्राम में फॉर्मा हब नहीं बनने दिया। उस वक्त दीदी का कहना था कि यह उपजाऊ जमीन को बर्बाद कर किसानों के हक को छीना जा रहा है। किसानों की हिमायती बनी थी दीदी। जिसके बदौलत उसने सत्ता हासिल की। साल 2011 में छह चरणों हुए चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 184 सीटों पर जीत हासिल कर अपनी सरकार बनाई। सत्ता में काबिज होते ही दीदी ने किसानों को हक दिलाया। लेकिन अब दस साल बाद स्थिति बदल गई है। जिस उपजाऊ जमीन के सहारे दीदी सत्ता में आई अब वह उसी उपजाऊ जमीन को उद्योगपत्तियों को देने की घोषणा की है। दीदी का कहना है कि पश्चिम बंगाल लघु उद्योग विकास निगम सिंगूर के 11 एकड़ में एक औद्योगिक पार्क बनाएगा। जहां उद्योगपतियों को छोटे प्लांट दिए जाएंगे। इन सबमें बड़ी बात यह राजनीति हमेशा फायदा देखती है। इसलिए मौके देखते ही वह सत्ता पर कब्जा करने के लिए काम करने लगती है।

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क्या इस साल बीजेपी को जीत हासिल कर पाएगी

बंगाल की राजनीति में अभी तक बीजेपी सत्ता में एक बार भी  काबिज नहीं हो पाई है। लेकिन क्या इस बार के विधानसभा चुनाव में वह रण पर विजय प्राप्त कर सकती है। जब बिहार में विधानसभा चुनाव चल रहा था। उस वक्त गृहमंत्री अमित शाह बंगाल के दौर पर थे। इस दौर में गृहमंत्री आदिवासियों के साथ अपनी पार्टी के संपर्क को मजबूत कर रहे थे। जिसके लिए  वह आदिवासी बहुल जिला बांकुडा में गए था। बंगाल की राजनीति में कभी भी वोट जाति पर नहीं पड़ते हैं।  साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटों की जीत के बाद से ही बीजेपी ने अपनी मंशा को जाहिर कर दिया था। जबकि साल 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में  मात्र 3 सीटों पर ही जीत हासिल की थी।   लेकिन इस नंबर को बढ़ाने के लिए  गृहमंत्री अमित शाह ने इस साल हो रहे विधानसभा चुनाव में 200 सीटें पर जीत हासिल करने की बात कही है। बंगाल की राजनीति बदलते राजनीतिक तेवरों को बीच तृणमूल के कई विधायक बीजेपी में शामिल हुए। जहां से ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक करियर में और ऊंचाई पाई  उसी नंदीग्राम के विधायक शुभेंद्र अधिकारी ने बीजेपी का दामन थाम लिया। उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद यह राजनीतिक लड़ाई और ज्यादा दिलचस्प हो गई है। इसी सीट से इस बार प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुनाव लड़ रही है। अब देखने वाली बात यह है जहां से दीदी ने मुख्यमंत्री बनने का सफर शुरु  किया था। क्या वहां से जीत हासिल कर पाएंगी है। हाल ही में एक लोकल चैनल को दिए एक इंटरव्यूय में पांडेश्वर के विधायकर और तृणमूल से बीजेपी में शामिल हुए जितेंद्र तिवारी ने कहा कि पश्चिम वर्द्ववान जिले के पांच सीटों पर बीजेपी की जीत पक्की है। लगातार बदली सत्ता के बीच अब देखना है क्या बीजेपी की परिवर्तन यात्रा बंगाल में सत्ता परिवर्तन कर सकती है।

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