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आज है दुर्गा पूजा का चौथा दिन, माँ कुष्‍मांडा की इस तरह करें पूजा, आरती और मंत्र
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आज है दुर्गा पूजा का चौथा दिन, माँ कुष्‍मांडा की इस तरह करें पूजा, आरती और मंत्र

नवरात्रि का चौथा दिन होता है माँ कूष्माण्डा का


आज शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन है. आज के दिन माँ कुष्माण्डा की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन साधक का मन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है. आज के दिन माँ कुष्‍मांडा की पूजा अर्चना करने से लोगों का मन शांत रहता है और उन पर माँ कुष्‍मांडा की कृपा-दृष्टि बनी रहती है. माना जाता है कि जब इस सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब माँ कुष्‍मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की थी. क्या आपको पता है माँ कुष्‍मांडा के शरीर में कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है. माँ कुष्‍मांडा के प्रकाश से ही दसों दिशाएं उज्जवलित हैं. माँ कुष्‍मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है.

माँ कुष्‍मांडा की पूजा

दुर्गा पूजा का चौथा दिन माँ कुष्माण्डा की पूजा अर्चना का होता है. इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर माँ कुष्माण्डा का स्मरण करें. माँ कुष्माण्डा को धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सुहाग का सामान चढ़ाएं. माँ कुष्माण्डा को हलवा और दही बहुत ज्यादा पसंद है. इस लिए नवरात्रि के चौथा दिन माँ कुष्‍मांडा को इनका ही भोग अर्पित करना चाहिए. साथ ही साथ भोग लगाने के बाद, इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें. अंत में माँ कुष्‍मांडा के मंत्र और आरती गाएं.

और पढ़ें: नवरात्रि का तीसरा दिन होता है माँ चंद्रघंटा देवी का, जाने पूजा, मंत्र और स्तोत्र पाठ

माँ कुष्‍मांडा के मंत्र

1. या देवी सर्वभू‍तेषु मां कुष्‍मांडा रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

2. वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्

सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कुष्माण्डा यशस्वनीम्॥

3. दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्

जयंदा धनदां कुष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

4. जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्

चराचरेश्वरी कुष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

माँ कुष्‍मांडा की पूजा विधि

दुर्गा पूजा का चौथा दिन माँ कुष्माण्डा की पूजा अर्चना का होता है. माँ कुष्माण्डा की पूजा का विधान भी उसी प्रकार होता है। जिस प्रकार माँ ब्रह्मचारिणी और माँ चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. इस दिन भी आपको सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद आप माँ कूष्‍मांडा की पूजा करेंगे. साथ ही शप्‍तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच और अंत में आरती करें.

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