नेशनल एंबुलेंस सर्विस की शुरुआत तो अच्छी लेकिन कुछ सालों बाद स्वयं बीमार
देश के अन्य-अन्य हिस्सों में नेशनल एंबुलेंस सर्विस तो है, लेकिन एंबुलेंस है गायब
गर्भवती महिलाओं की मृत्युदर में आई कमी
कोई भी नागरिक वाहन के अभाव में अपनी जान न गवाएं इसलिए राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा एंबुलेंस की सर्विस शुरु की गई थी. 15 अगस्त 2005 में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री ने 108 और 17 जनवरी 2014 को उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा 102 एंबुलेस सर्विस शुरु की गई.
अहम बिंदु
- 102 और 108 की सर्विस
- कैसे काम करती है दोनों एंबुलेंस सर्विस
- नेशनल एंबुलेंस सर्विस की कुछ उपलब्धियां
- कमी
आज से कुछ साल पहले तक लोगों तक संसाधनों की सही पहुंच नहीं थी. जिसके कारण कई लोग सही समय पर अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते थे. सही समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के अवस्था में लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. कई मामलों में देखा गया है कि कई बार सड़क दुर्घटना होने के बाद सही समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के अभाव में कई लोग अपनों से हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं. इन्ही सारी चीजें को ध्यान में रखते हुए सारी नेशनल हेल्थ मिशन के तहत नेशनल एंबुलेंस सर्विस की शुरुआत की गई. हालांकि पहले यह राज्य सरकारों द्वारा शुरु की गई. जिसे धीरे-धीरे पूरे देश में शुरु किया गया.
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108 एंबुलेंस सर्विस
आज यह सेवा देश के 29 राज्यों और केंद्रीय शासित प्रदेशों में चल रही है. जिसके कारण कई लोगों तक सही समय पर मेडिकल सुविधा पहुंच पा रही है. 108 एक आपातकालीन फोन नंबर है जिस पर फोन करने पर आपके पास एंबुलेंस पहुंच जाएगी. इसकी शुरुआत सबसे पहले आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस राजशेखर रेड्डी ने की थी. इसके बाद पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास ने इसे पूरे देश में शुरु किया. इस एंबुलेंस सर्विस की कल्पना रिटायर डॉक्टर ए.पी रंगाराव ने की थी जो आंध्रप्रदेश के हेन्डीकैप्ट डिपार्टमेंट के पूर्व डायरेक्टर थे. जिसे बाद में आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कार्यन्वित किया था. यह सर्विस इमरजेंसी मैनजमेंट एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा संचलित होती है.
102 एंबुलेंस सर्विस
यह भी एक मुक्त सर्विस है. जिसे 17 जनवरी 2014 को उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरु किया गया था. इस एंबुलेस की सर्विस 24*7 है. जिसमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों को अस्पताल पहुंचाया जाता है. यह सब जननी सुरक्षा योजना और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत मुक्त में किया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य मरीज को पास के किसी सरकारी या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया जाए. इस वक्त 10017 एंबुलेस इसके तहत कार्यरत हैं. कुछ राज्यों में 5484 वाहनों 102 के तहत सूची में शामिल किया गया है. उत्तरप्रदेश में इसकी सफलता के बाद अन्य राज्यों ने भी इसे लॉन्च किया गया. जिसका सकरात्मक प्रभाव देखने को मिला है.
कैसे काम करती है दोनों एंबुलेंस सर्विस
- 108 पर जब भी फोन आता है वहां सबसे पहले मुख्य जानकारियों को एकत्र किया जाता है. जिसमें मरीज के पता और उसे कहां लेकर जाना है. आपातकालीन सेवा, पुलिस की सहायता और अन्य, मरीज के पास 18 मिनट में पहुंचना शामिल है.
- मरीज के एंबुलेंस में ले जाते वक्त आपातकाल की सारी सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए.
- एंबुलेंस का इस्तेमाल दो तरह से किया जाता है. पहला रोड़ और दूसरा पानी. पानी वाली नाव एंबुलेंस का इस्तेमाल असम, गुजरात और दो केंद्र शासित प्रदेशों मे होता है. ओडिशा पहला राज्य है जिसने नाव एंबुलेस को लॉन्च किया अपने रिमोट एरिया के लिए.
- इस वक्त 108 की सेवा तीन कंपनियां दी रही हैं.
- 102 की सारी एंबुलेस में जीपीएस सिस्टम लगा होता है.
- ग्रामीण इलाकों में यह 30 मिनट और शहरी इलाकों को 20 मिनट में मरीज तक पहुंचती एंबुलेंस
- अन्य-अन्य राज्यों में अलग-अलग नाम से 102 एंबुलेंस सर्विस को चलाया जाता है. लेकिन सबके लिए गाइडलाइन नेशनल हेल्थ मिशन के तहत ही निर्धारित की गई है.
नेशनल एंबुलेंस सर्विस की कुछ उपलब्धियां
- जीवीके-ईएमआरई उत्तर प्रदेश के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर संजय खोसला के अनुसार अबतक 1 करोड़ 57 लाख लोगों को इस मिशन का लाफ मिला है.
- जम्मू कश्मीर में जेएचएल कंपनी ने अब तक 17, 54, 019 गर्भवती महिलाओं और 10,000 बच्चों को अस्पताल पहुंचाया है.
- 102 सर्विस के तहत ओडिशा राज्य में गर्भवती महिलाओं की मृत्युदर में कमी आई है.
- जीवीके हेल्थकेयर लिमिटेड के ताजा आंकडों को देखे तो इस वक्त यह कंपनी 16 राज्यों में अपनी सर्विस दे रही है. अबतक 24633416 लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया है जिसमें 8626667 गर्भवती महिलाएं और 255808 बच्चें शामिल है.
कमी
काम कोई भी हो उसमें कमी जरुर आ ही जाती है. शुरुआती दौर में जब नेशनल एंबुलेस सर्विस शुरु की गई तो हर राज्य में इसका काम सही चल रहा था. पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत काम शुरु किया गया था. लेकिन अब धीरे-धीरे इसमें कमी आ गई है. कहीं एंबुलेंस की समय पर मरम्मत नहीं पाई है तो कहीं इनकी संख्या ही कम हो गई है. दैनिक जागरण में छपी 2015 एक खबर के अनुसार हरियाणा के नारनौल जिले में मात्र छह एंबुलेंस है. प्रारम्भ मे यह 18 थी लेकिन धीरे-धीरे मरम्मत के अभाव में बस छह ही बची है. यह भी गर्भवती महिलाओं और अन्य मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने में सक्षम नहीं है. कोरोना के दौरान छत्तीसगढ़ के जशपुर में संजीवनी 108 की 11 एंबुलेंस में से सिर्फ 3 ही चल रही है. बाकी सभी का हाल खराब है. किसी का ब्रेक डाऊन है तो किसी की मरम्मत नहीं हो पाई.
हिंदुस्तान बेवसाइड की 2018 की खबर के अनुसार उत्तराखंड में बजट मे कमी के कारण तीन से 108 एंबुलेंस सेवा खड़ी है. उस वक्त उत्तराखंड में यह सर्विस जीवीके एनजीओ कर रहा था लेकिन आर्थिक तंगी के कारण एंबुलेंस की मरम्मत नहीं हो पाई है. एनजीओ का कहना था कि उसे बजट नहीं मिल पा रहा है और बजट के अभाव में वह मरम्मत नहीं करा पाएं. परिस्थितियां पहले ही खराब थी और अब कोरोना के दौरान तो लोगों के हाल और बद से बदतर हो गए. जनसत्ता की एक खबर के अनुसार 102. 108 एंबुलेंस कर्मचारियों ने रक्षात्मक उपकरणों की मांग की थी. इसके साथ ही यह भी कहा था कि उनको वेतन जल्द से जल्द दिया जाएगा. वरना कर्माचारी हड़ताल पर चले जाएगा. वहीं हिमाचल प्रदेश में लगभग 1200 एंबुलेंस सर्विस वालों को नौकरी से निकाल दिया गया. जिसमें 1,135 कर्मचारी, 588 ड्राइवर, 46 सहायक कर्मचारी, 29 कॉल सेंटर एक्जीक्यूटिव , 464 इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीसियन थे.
कुछ महत्वपूर्ण डेटा
निष्कर्ष
इस मिशन की शुरुआत इस बात को ध्यान में रखकर की गई होगी कि दूर दराज इलाकों में लोगों तक सही समय पर एंबुलेंस पहुंचे ताकि वह समय रहते अस्पताल पहुंच पाएं. लेकिन हाल इस कदर बुरे है कि दूर दराज के इलाकों को आज भी एंबुलेंस नहीं पहुंच पा रही हैं. आएं दिन ऐसी खबरें देखने और सुनने को मिलती है जहां समय पर एंबुलेंस न पहुंच पाने के कारण लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इतना ही नहीं खबर लिखते वक्त हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जिस मिशन की शुरुआत लोगों की सुरक्षा के लिए की गई है वह आज कई तरह की परेशानियों से घिरी हुई है.
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