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Bakri Eid 2020: क्यों मनाई जाती है बकरी ईद, जाने इसका इतिहास और महत्व
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Bakri Eid 2020: क्यों मनाई जाती है बकरी ईद, जाने इसका इतिहास और महत्व

कब मनाई जाएगी बकरी ईद


बकरी ईद मुसलमानों के प्रमुख त्‍योहारों में से एक है। बकरी ईद, मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद मनाई जाती है। इस बार बकरी ईद 1 अगस्त यानि कल बनाई जा सकती है। बकरी ईद कुर्बानी को याद रखने और उसे सलामी देने के लिए मनाई जाती है। अगर आप इस्‍लामिक कैलेंडर के हिसाब से देखे तो बकरी ईद को ईद-उल-अजहा के नाम से जाना जाता है। इस्‍लामिक कैलेंडर के अनुसार ईद साल में दो बार मनाई जाती है। एक को ईद-उल-जुहा जिसे मीठी ईद के नाम से भी जाना जाता है। दूसरा ईद-उल- फितर जिसे बकरी ईद के नाम से जाना जाता है। मुस्लिम समुदाय के लोग ईद को बड़ी धूम- धाम से मनाते है। इस बार देश में चल रहे कोरोना वायरस के कारण बकरी ईद की रौनक थोड़ी कम जरूर हो गयी है। परन्तु फिर भी आपको इस बार बकरी ईद की धूम देखने को मिलेगी।

जाने बकरी ईद का इतिहास

मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार 624ई. में पहली बार ईद-उल-फितर यानि मीठी ईद मनाई गई थी। मुस्लिम समुदाय के अनुसार मीठी ईद को पैगंबर हजरत मुहम्मद के युद्ध में विजय प्राप्त करने की खुशी में मनाया गया था  इसी के बाद से मुस्लिम समुदाय ने ईद मनाने की शुरुआत की थी। मीठी ईद के ठीक दो महीने बाद बकरी ईद मनाई जाती है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देकर इस त्‍योहार को मनाते है क्या आपको पता है बकरी ईद के दिन बकरी की कुर्बानी क्यों दी जाती है।

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बकरी ईद पर क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी

ये बात तो हम सब लोग जानते है कि मुस्लिम समुदाय के लोग हजरत इब्राहिम को अल्लाह का पैगंबर मानते है हजरत इब्राहिम अपनी पूरी ज़िन्दगी दुनिया की भलाई में ही लगे रहे। हजरत इब्राहिम की 90 साल तक कोई संतान नहीं थी जिसके बाद उन्होंने खुदा की इबादत की। जिसके बाद उनको एक बेटा हुआ। ऐसा माना जाता है कि हजरत इब्राहिम के सपनों में खुदा का आदेश आया कि वो अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कर दे। जिसके बाद उन्होंने अपनी सभी प्यारी चीजें कुर्बान कर दी। परन्तु फिर से हजरत इब्राहिम के सपनों में खुदा का आदेश आया कि वो अपने बेटे को कुर्बान कर दे। तो उन्होंने अपने आँखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे को कुर्बान कर दिया। उसके बाद जब उन्होंने पट्टी हटती तो देखा उनका बेटा खेल रहा है और बेटे की जगह बकरे की कुर्बानी हो गयी। जिसके बाद से ईद के मौके पर बकरे के कुर्बानी का चलन शुरू हो गया।

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