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How covid has impacted Artists
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How Covid Has Impacted Artists: दूसरों की ज़िंदगी में रंग भरने वाले, आज खुद है बेरंग: COVID 19 और कलाकार

How Covid Has Impacted Artists: कैसे कलाकार कर रहे हैं कोरोना में गुजारा ?


How Covid Has Impacted Artists: देखिए एक सब्जीवाला अपना ठेला निकाल लेगा, बाइक बनाने वाला भी अपना दुकान खोल लेगा, इंश्योरेंस वाला भी अपना काम शुरु कर देगा , मजदूरों को भी मनरेगा के तहत काम मिल जाएगा लेकिन एक कलाकार के पास अगले कई महीनों तक जीविकोपार्जन के लिए कोई उपाय नहीं है यह शब्द है बिहार के इमेजिनेशन थियेटर ग्रुप के सेक्रेटरी कुंदन कुमार के जो लॉकडाउन के कारण अपने काम से महरुम है.   
लॉकडाउन के बाद जहां कई लोग काम धंधे से वंचित हो गए वहीं इस कड़ी में कलाकार भी हैं. रंगमंच से अपनी कला के द्वारा लोगों के जीवन में खुशियां लाने वाले कलाकार आज खुद अपनी जिदंगी में हंसी की तलाश कर रहे हैं. लॉकडाउन के बाद से ही इनका कामधंधा बंद है  धीरे- धीरे आर्थिक तंगी भी शुरु हो गई. लेकिन सरकार है कि सुनने को ही तैयार नहीं हैं. बढ़ती परेशानियों को देखते हुए सोशल मीडिया पर “सूने साज सुने सरकार”  मुहिम चलाई जा रही है. इस मुहिम के द्वारा सरकार से मदद की गुहार लगाई जा रही है. इसी संदर्भ में हिंदी पट्टी के रंगमंच कलाकारों का हाल भी बहुत बुरा है. इनमें से कुछ का कहना है कि सरकार पहले ही मदद नहीं करती थी. फंडिंग के नाम पर कॉरपोरेट सपोर्ट भी बहुत कम है. ज्यादातर खर्च थियेटर ग्रुप वालों को स्वयं ही उठाना पड़ता है. कई बार नाटक के लिए टिकट निर्धारित की जाती है तो कभी दर्शकों को फ्री में दिखाया जाता है. ताकि एक कलाकार को पहचान मिल सकें. 

अनुदान तो पहले ही दो सालों से लटके थे अब और परेशानी बढ़ गई है

बिहार के निर्देशक और अभिनेता मोहम्मद जहांगीर का कहना कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के पास भी कलाकारों लिए कोई योजना नहीं है. कुछ दिन पहले सरकार ने 20 लाख करोड़ रूपए के राहत पैकेज का ऐलान किया लेकिन उसमें कहीं भी कलाकारों की चर्चा तक नहीं की गई. व्यक्तिगत अनुदान  तो पिछले कुछ समय से पूरी तरह से मिलने बंद हो गए है केंद्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले रेपेट्री ग्रांट पिछले दो सालों से लटके पड़े हैं. अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए जहांगीर बताते है कि कलाकार थोड़ा स्वाभिमानी किस्म का होता है वह बाहर निकलकर किसी से खाना मांग नहीं सकता लेकिन वह अपना खाना किसी और को दे जरुर सकता है. उनके घर परिवार के लिए सरकार कुछ नहीं सोच रहीहै कोई गाइडलाइन नहीं है. इन सब पर भी बिहार का रवैया तो वैसा है जैसे “एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा”. सहायता के नाम पर बिहार सरकार द्वारा एक विज्ञापन जारी किया गया जिसमें कहा गया है कि कलाकार पांच से दस मिनट का वीडियो बनाकर भेजे जिसमें यह दिखाया जाएं कि सरकार द्वारा कैसे कोरोना से लड़ा जा रहा है. इसके बाद जिस कलाकार का वीडियो चयनित किया जाएगा उसे एक हजार रूपए इनाम के तौर पर दिए जाएंगे.  आने वाली समय की चिंता जाहिर करते हुए जहांगीर कहते है कि अगर हम मेहनत करके नाटक तैयार कर भी लेते हैं तो देखने कौन आएगा हर किसी के मन में कोरोना को लेकर एक डर बैठा हुआ है. 
इस वक्त कलाकारों पर दोहरी मार पड़ने वाली है. स्पॉन्सर की चिंता जाहिर करते हुए वह कहते है कि बाकी जगहों में तो स्पॉन्सर मिलना आसान होता है लेकिन हिंदी पट्टी में प्राइवेट स्पॉन्सर मिलना बड़ा मुश्किल हैं. थियेटर कलाकारों की  बात करते हुए जहांगीर बताते है कि ये पागलपन ही है कि  कोई लम्बे वक्त तक इसमें समय देता है. लेकिन भविष्य के हिसाब से देखा जाएं तो अब के बच्चे जो नए-नए इस क्षेत्र  में प्रवेश कर रहे हैं उनमें ये चीजें देखने को मिलती है कि वह थियेटर को रोजगार उन्मूलक बनाने की कोशिश कर रहे है. पहले ऐसा माना जाता था कि इसमें भविष्य सुरक्षित नहीं है इसलिए ज्यादतर लोग अलग-अलग क्षेत्रों में चले जाते थे. लेकिन अब रोजगार की एक उम्मीद जगी है. हां, हम ये नहीं कह सकते की  प्राइवेट स्पॉन्सरशिप एकदम नहीं है. है.. लेकिन उसके लिए अच्छे से मॉनीटिरिंग की जाएं तो  कुछ अच्छा हो जाएं.  आसाम में मोबाइल थियेटर होता है जो पूरा  प्राइवेट स्पॉन्सरशिप पर है और उसमें बहुत पैसे मिलते हैं. बाकी दक्षिण भारत और महाराष्ट्र, गुजरात में भी प्राइवेट स्पॉन्सरशिप है. वहां के कलाकार अपना जीवनयापन कर पा रहे हैं. लेकिन हिंदी पट्टी के साथ ऐसा कुछ नहीं है. वेब सीरीज की बात करते हुए जहांगीर कहते हैं कि इन में सीरीज में लोगों को पहचान तो दी है साथ ही लोगों में विश्वास पैदा किया है कि अगर थियेटर करते है तो कहीं न कहीं काम और नाम दोनों मिलेगा. 

शादी में गाने बजाने वाले भी कलाकार है 

कुंदन कुमार बिहार के इमेजिनेशन थियेटर ग्रुप के कलाकार है उनका कहना है कि एक कलाकार हमेशा भीड़भाड़ वाले इलाके में ही काम करता है इस दौरान जब कोरोना बहुत ज्यादा फैला हुआ है  कोई भी कलाकार किसी भी प्रकार की प्रदर्शनी नहीं कर पाएगा. भारत की बहुत सारी संस्थाएं है जिन्हें रेपेट्री मिलता है वो भी लंबे समय से नहीं मिल पा रहा है. दूसरी बात कई राज्यों में कलाकारों को पेंशन मिलती हैं जबकि बिहार में आर्ट एवं कल्चर के लिए कोई नीति ही नहीं है. यहां कला की कोई कदर ही नहीं है. महामारी के इस दौर में जो कलाकार आर्थिक तौर पर सक्षम है वो दूसरे कलाकारों की मदद कर रहे हैं. हमलोगों को समाज की तरफ से भी कोई उम्मीद नहीं है. 
कुछ जिनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं होती है वो चुनाव वगैरा मे गाने बजाने के लिए चल जाते थे. लेकिन अभी बिहार में चुनाव होने वाले है लेकिन इस बार मुझे नहीं लगता इन कलाकारों को काम मिल पाएगा. शादी विवाह में गाने बजाने वाले भी कलाकार है रोज वो भी कम से कम 300-400 कमा ही लेते थे. लेकिन अब शादी में गाना बजाना नहीं हो रहा है तो उनकी स्थिति और दयनीय होती जा रही है. इन सब स्थिति को देखते हुए कलाकारों ने “सूने साज सुने सरकार” कैंपेन चलाया है. ताकि सरकार तक हमारी गुहार पहुंचे. 
 
 
आशा रेपेट्री के चंदन प्रियदर्शी का कहना है कि थियेटर फिजिक्ल एक्टिविटी के बिना संभव ही नहीं है. फिल्म वगैरा भी फिजिक्ल एक्टिविटी है लेकिन वहां ओटीजी प्लेटफॉर्म पर चलाया जा सकता है लेकिन थियेटर तो पूरा लाइव होता है. अनलॉक तो कर दिया गया है कि लेकिन थियेटर के लिए कोई पॉलिसी नहीं दी गई है. हमारा थियेटर ग्रुप पटना का एक नामी ग्रुप है लेकिन कोविड के बाद हमारी टारगेट ऑडियंस पर बहुत असर पड़ने वाला है. हिंदी रंगमंच के पास बहुत कुछ होता है लेकिन फाइनेशियल इतने स्ट्रॉंग नहीं है. बिहार सरकार द्वारा जो विज्ञापन निकाला गया है वो मुझे कहीं से सही नहीं लगा है. सरकार को अब हमें प्रूफ नहीं करना पडेगा. इस कारण कई लोगों ने वो वीडियो बनाकर नहीं भेजा हैं. हां कुछ लोग हो सकता है आर्थिक तौर पर बहुत ज्यादा मजबूर हो गए होंगे तो उन लोगों ने भेज होगा. इससे मुझे कोई परेशानी भी नहीं है. आम जनता की बात करते हुए चंदन बताते है कि मेरे यहां कई लोगों के खाते में जनधन के तहत पैसे दिए गए है. उसके लिए उन्हें कुछ प्रूफ नहीं करना पड़ा और यहां कलाकारों को अपनी कला का इम्तिहान देना पड़ा रहा है. तो आम जनता हमेशा ज्यादा अच्छी है फिर इस हिसाब से वहीं दूसरी ओर कलाकार को प्रूफ करना होगा कि वह कलाकार भी है और आम इंसान भी है. सरकार द्वारा व्यक्तिगत तौर पर कलाकारों को बढ़ाया नहीं जा रहा है. इसके कारण पिछले दो दशकों से कोई बड़ा कलाकार नहीं आ पाया है. संजय मिश्रा जी गए है उनका अपना स्टाइल है. बच्चे थियेटर में आना भी नहीं चाहते हैं. अभी हमलोग ऑनलाइन क्लास करवाते है. लेकिन बच्चें उसमें  इतना सीरियस होकर नहीं आते हैं. जबकि थियेटर पर्सेनिलिटी डेवलेट भी करवाता है. 

बिहार सरकार की मदद राशि

कोरोना के इस दौर में बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा सहायता राशि के तौर पर कलाकारों को एक वीडियो बनाने को कहा गया . अप्रैल के महीने में सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में कहा गया कि राज्य के कलाकार पंद्रह से बीस मिनट तक की एक वीडियो तैयार करके आनलाइन भेज. इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखा जाएं. इसके साथ ही एक व्यक्ति की एक ही प्रविष्टि हो. चयनित एकल  प्रस्तुति में 1000 और ग्रुप की प्रस्तुति में 2000 रुपए दिए जाएंगे. इसके साथ ही विज्ञापन में सरकार द्वारा यह बताया गया है कि वह किस विषय पर वीडियो बनाकर भेजे. इतना ही नहीं उसके साथ कई और चीजें बताई गई है जो एक कलाकार को करनी है.
 

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