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शरद पूर्णिमा के दिन क्यों खाते है खीर, क्या है इसका महत्व ? Sharad Purnima 2019
लाइफस्टाइल

शरद पूर्णिमा के दिन क्यों खाते है खीर, क्या है इसका महत्व ?

जाने क्या है शरद पूर्णिमा के अन्य नाम और इसका सन्देश ?


शरद पूर्णिमा को हिन्दू धर्म में काफी खास माना जाता है। इस दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणें औषधीय गुणों से भरी हुई होती है। दरअसल चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा होती है। देश के अलग- अलग हिस्सों में शरद पूर्णिमा को अलग- अलग नाम से जाना जाता है। इसी दिन देवी- देवताओ का जन्म भी हुआ है तो इसलिऐ शरद पूर्णिमा का नाम उनसे भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं में ऐसी मान्यता है कि  माता लक्ष्मी आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि यानी शरद पूर्णिमा को समुद्र मंथन से निकली थीं। तो चलिए आपको बताते है शरद पूर्णिमा के बारे में कुछ रोचक तथ्यों के बारे में…

1.कोजागरी पूर्णिमा:

शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी पूनम भी कहते हैं। इसे बंगाल में कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी कहते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं।

2. कौमुदी व्रत:

आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को कौमुदी व्रत करते है और  इसे कोजागरी व्रत भी कहते है। दरअसल, माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिऐ आती है और उस दौरान पूछती हैं कि कौन जाग रहा है? जो जागता है, वो उसके घर में वास करती हैं।

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3. कुमार पूर्णिमा:

भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े बेटे कार्तिकेय का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इस वजह से शरद पूर्णिमा को कार्तिकेय पूर्णिमा भी कहते है। ओड़िशा में अविवाहित लड़कियां  इस दिन सूर्य और चंद्रमा की पूजा करती हैं ताकि उनको अच्छे जीवनसाथी मिले।

4. रास पूर्णिमा:

ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही गोपियों संग महारास रचाई थी, इस कारण से शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते है।

शरद पूर्णिमा को खीर का महत्व:

ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गीरता है तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का रीवाज़ है। जो शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा के उज्जवल किरणों से आलोकित हुई खीर का सेवन करते हैं, मान्यता है कि उन्हें उत्तम स्वास्थ्य के साथ मानसिक शांति का वरदान भी मिलता है।

शरद पूर्णिमा का संदेश:

चंद्रमा हमारे मन का प्रतीक है। हमारा मन भी चंद्रमा के समान घटता-बढ़ता यानी सकारात्मक और नकारात्मक विचारों से भरा रहता है।जिस तरह अमावस्या के अंधेरे से चंद्रमा निरंतर चलता हुआ पूर्णिमा के पूर्ण प्रकाश की यात्रा पूरा करता है, ठीक  उसी तरह मानव के मन से भी नकारात्मक विचारों के अंधेरे से आगे बढ़ता हुआ सकारात्मकता के प्रकाश को पाता है। यही मानव जीवन का लक्ष्य है और यही शरद पूर्णिमा का संदेश भी है।

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