लाइफस्टाइल

Lal Bahadur Shastri जय जवान, जय किसान  एक नारे से इतिहास रचने वाले व्यक्ति

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जीवन, संघर्ष और विरासत, जो आज भी हर भारतीय को प्रेरित करती है।

Lal Bahadur Shastri सादगी से शिखर तक का सफर

Lal Bahadur Shastri: ‘जय जवान, जय किसान’ यह सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में गूंजने वाली आवाज़ है। इस सशक्त संदेश के पीछे वह नाम है जिसने अपनी सादगी, ईमानदारी और अटूट समर्पण से पूरे राष्ट्र को प्रेरित किया Lal Bahadur Shastri। हर साल 2 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाई जाती है, और यह दिन हमें उनके जीवन, योगदान और अमर विरासत को याद करने का अवसर देता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के मुगलसराय में हुआ। उनका बचपन कठिनाइयों से भरा रहा, क्योंकि उनके पिता का निधन तब हो गया था जब वे केवल दो साल के थे। उनकी मां रामदुलारी देवी ने उन्हें ईमानदारी, कठोर परिश्रम और सादगी के मूल्य सिखाए, जो उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन गए।
काशी विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें 1925 में ‘शास्त्री’ की उपाधि मिली। दर्शनशास्त्र और नैतिकता में उनकी पढ़ाई ने राष्ट्र और समाज के प्रति उनकी सोच को और गहरा किया।

स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

शास्त्री जी की राजनीतिक चेतना महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट जैसे नेताओं से प्रभावित हुई। 1928 में वे कांग्रेस से जुड़े और 1930 में नमक सत्याग्रह में शामिल हुए। इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा, कुल मिलाकर सात वर्ष उन्होंने कारावास में बिताए। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रभावित होकर उनका समर्पण और भी प्रबल हुआ। स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका योगदान ईमानदारी और त्याग का प्रतीक था।

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स्वतंत्रता के बाद का राजनीतिक जीवन

आज़ादी के बाद, शास्त्री जी ने प्रशासन और राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। उन्हें उत्तर प्रदेश में पुलिस और परिवहन मंत्री बनाया गया, और 1952 में नेहरू मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री नियुक्त किया गया। रेलवे मंत्री के रूप में उन्होंने गंभीर रेल दुर्घटनाओं की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए दो बार इस्तीफ़ा दिया यह उनकी जवाबदेही और सच्चाई के प्रति अडिग विश्वास का उदाहरण था।

भारत के प्रधानमंत्री के रूप में

1964 में वे देश के प्रधानमंत्री बने। यह वह समय था जब भारत खाद्य संकट और पाकिस्तान के साथ युद्ध जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा था। इसी दौर में उन्होंने देश को एक नारा दिया ‘जय जवान, जय किसान’।

  • जवानों का सम्मान: सीमा पर डटे सैनिकों के साहस और बलिदान का प्रतीक।

  • किसानों का गौरव: खाद्य आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर बल और किसानों की मेहनत को राष्ट्र की रीढ़ मानना।

  • राष्ट्रीय एकता: यह नारा देशवासियों को एकजुट करता रहा और हर वर्ग में कर्तव्य और देशभक्ति की भावना जगाता रहा।

  • 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनका दृढ़ नेतृत्व और शांति की दिशा में प्रयास उनकी दूरदृष्टि का परिचायक है।

शास्त्री जी का निधन और रहस्य

11 जनवरी 1966 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में शांति वार्ता के बाद अचानक उनका निधन हो गया। आधिकारिक तौर पर इसे दिल का दौरा बताया गया, लेकिन परिस्थितियों को लेकर आज भी सवाल उठते हैं। उनकी असामयिक मृत्यु ने पूरे राष्ट्र को गहरे शोक में डुबो दिया।

विरासत और सम्मान

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल है। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनी हुई है। उनकी असाधारण सेवाओं के सम्मान में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से नवाजा गया।  विजय घाट पर उनका स्मारक आज भी उस नेता की याद दिलाता है, जिसने कहा था “जय जवान, जय किसान”, और इस वाक्य के साथ भारत के हर नागरिक को कर्तव्य, त्याग और देशभक्ति का पाठ पढ़ाया।

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