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International Day of Sign Languages: अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस, सुनने में असमर्थ लोगों के अधिकार और जागरूकता

International Day of Sign Languages, हर साल 23 सितंबर को International Day of Sign Languages (अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस) मनाया जाता है।

International Day of Sign Languages : अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस, बधिर और श्रवण बाधित लोगों के लिए समान अवसर

International Day of Sign Languages, हर साल 23 सितंबर को International Day of Sign Languages (अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य बधिर और श्रवण बाधित लोगों के अधिकारों और उनकी पहचान को मान्यता देना है। साथ ही, यह दिन समाज में सांकेतिक भाषा के महत्व को बढ़ावा देने और इसे अपनाने के लिए जागरूकता फैलाने का अवसर भी है। International Day of Sign Languages को 2017 में संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा मान्यता दी गई थी। इसका उद्देश्य दुनिया भर में सांकेतिक भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना और सुनने में असमर्थ लोगों की आवाज़ को समाज में सुना जाना सुनिश्चित करना है। इस दिन की शुरुआत World Federation of the Deaf (WFD) के प्रयासों से हुई। WFD ने यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया कि बधिर और श्रवण बाधित लोग शिक्षा, रोजगार और समाज में समान अवसर पा सकें।

उद्देश्य और महत्व

-सांकेतिक भाषा के अधिकारों को मान्यता देना – बधिर और श्रवण बाधित लोगों के लिए भाषा का उपयोग उनके अधिकारों में शामिल है।

-जागरूकता फैलाना – समाज में सांकेतिक भाषा के महत्व को बढ़ावा देना और लोगों को इसे सीखने के लिए प्रेरित करना।

-समावेशिता बढ़ाना – सभी स्कूलों, कार्यस्थलों और सार्वजनिक स्थानों पर बधिर व्यक्तियों के लिए सुविधाएँ सुनिश्चित करना।

-शिक्षा और रोजगार के अवसर – सांकेतिक भाषा सीखकर सुनने में असमर्थ लोग शिक्षा और रोजगार में बेहतर अवसर पा सकते हैं।

सांकेतिक भाषा क्या है?

सांकेतिक भाषा (Sign Language) एक दृष्टिगत भाषा है, जिसमें हाथों, चेहरे की हाव-भाव और शरीर की मुद्राओं का उपयोग करके संवाद किया जाता है। यह केवल शब्दों का विकल्प नहीं है, बल्कि एक पूरी भाषा है जिसमें व्याकरण, संरचना और व्यंजना होती है। सांकेतिक भाषा न केवल बधिर और श्रवण बाधित लोगों के लिए उपयोगी है, बल्कि यह उनके सामाजिक और भावनात्मक विकास में भी मदद करती है।

समाज में जागरूकता बढ़ाने के तरीके

-स्कूल और कॉलेज में शिक्षा – बच्चों को शुरुआती उम्र में सांकेतिक भाषा सिखाना।

-सार्वजनिक स्थानों पर प्रशिक्षण – सरकारी दफ्तर, अस्पताल और बैंक में स्टाफ को सांकेतिक भाषा में प्रशिक्षित करना।

-सोशल मीडिया और अभियान – हैशटैग #SignLanguageDay और #InternationalDayOfSignLanguages के माध्यम से जागरूकता फैलाना।

-कार्यशालाएँ और वेबिनार – सांकेतिक भाषा सीखने और उसका महत्व समझाने के लिए।

-सांकेतिक भाषा में मनोरंजन और मीडिया – फिल्म, टीवी और ऑनलाइन कंटेंट में सांकेतिक भाषा को शामिल करना।

सांकेतिक भाषा के लाभ

-संचार में स्वतंत्रता – सुनने में असमर्थ लोग बिना किसी बाधा के संवाद कर सकते हैं।

-शिक्षा और कैरियर में मदद – बच्चों और वयस्कों को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर प्रदान करती है।

-सामाजिक समावेशिता – समाज में बधिर और श्रवण बाधित लोगों को शामिल करती है।

-भावनात्मक स्वास्थ्य – आत्मनिर्भरता और सम्मान का एहसास कराती है।

-भाषाई विविधता – विभिन्न देशों और समुदायों में अलग-अलग सांकेतिक भाषाओं का आदान-प्रदान संभव होता है।

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भारत में सांकेतिक भाषा

भारत में भारतीय सांकेतिक भाषा (Indian Sign Language – ISL) का उपयोग किया जाता है। इसे स्कूलों, कॉलेजों और कई सरकारी कार्यक्रमों में पढ़ाया और अपनाया जा रहा है। ISL को मान्यता मिलने से बधिर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा बढ़ी है और उनके लिए शिक्षा, रोजगार और सामाजिक अवसरों में सुधार हुआ है।

भारत सरकार ने बधिर और श्रवण बाधित लोगों के लिए कई पहल की हैं, जैसे:

-स्कूलों में ISL शिक्षक नियुक्त करना।

-विभिन्न सरकारी सेवाओं में सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल।

-रोजगार और प्रशिक्षण में समान अवसर।

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International Day of Sign Languages की गतिविधियाँ

-वर्कशॉप और सेमिनार – सांकेतिक भाषा सीखने और दूसरों को सिखाने के लिए।

-फ्री ट्रेनिंग कैंप – बच्चों और वयस्कों के लिए।

-सोशल मीडिया अभियान – हैशटैग के माध्यम से जागरूकता।

-सांकेतिक भाषा में प्रस्तुतियाँ – संगीत, नाटक और कविता के माध्यम से संदेश फैलाना।

-सामुदायिक कार्यक्रम – स्थानीय समुदायों में सांकेतिक भाषा के महत्व को समझाना। International Day of Sign Languages केवल एक दिन नहीं है, बल्कि यह सुनने में असमर्थ लोगों के अधिकार और पहचान का प्रतीक है। इस दिन का महत्व सिर्फ बधिर समुदाय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के हर व्यक्ति के लिए जागरूकता और समावेशिता का संदेश देता है। हमें यह समझना चाहिए कि सभी के लिए समान अवसर और सम्मान सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है। सांकेतिक भाषा सीखना और दूसरों को सिखाना न केवल संवाद की सुविधा देता है बल्कि समाज में समानता और समावेशिता भी बढ़ाता है।

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