Savitribai Phule : भारत की पहली महिला टीचर जिनकी महज 9 साल की उम्र मे हो गयी थी शादी, आज की नारी के लिए है मिसाल!
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Savitribai Phule :सावित्रीबाई फुले ने कैसे भारत मे महिलाओं की शिक्षा की नींव रखी? जानने के लिए इस रिपोर्ट को अंत तक जरूर पढ़े
Savitribai Phule : सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षिका, का जन्म 3 जनवरी, 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था और 10 मार्च 1897 में सावित्रीबाई दुनिया को अलविदा कह चलीं थीं। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका और कवयित्री थी। अपने विचारों से समाज के विचारों मे बदलाव लाने वाली सावित्रीबाई फुले का आज 126 वी पुण्यतिथि है, आइए उनके जीवन और उपलब्धियों पर एक नज़र डालते है।
सावित्रीबाई का विवाह नौ साल की उम्र में, ज्योतिराव फुले से हुआ था, जो एक प्रमुख लेखक और जाति-विरोधी समाज सुधारक थे। सावित्रीबाई उस उम्र में पढ़-लिख नहीं सकती थीं, इसलिए उनके पति ने उन्हें घर पर ही पढ़ाने की जिम्मेदारी ली। फिर ज्योतिराव फुले के दो दोस्त सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भावलकर ने आगे की पढ़ाई मे उनकी मदद की। तत्पश्चात उन्होने दो शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों मे दाखिला लिया पहला अहमदाबाद में और दूसरा पुणे में। शिक्षिका की पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद, उन्होंने पुणे में अपने पति के गुरु सगुनाबाई के साथ लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया जो एक क्रांतिकारी नारीवादी थीं।
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सन 1848 में, सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले ने भिड़े वाडा, पुणे में लड़कियों के लिए पहला भारतीय स्कूल शुरू किया। लड़कियों का स्कूल खोलने के लिए उन्हे और उनके पति को उनके ससुर ने घर से निकाल दिया था। फातिमा बेगम शेख, एक शिक्षित महिला और ज्योतिबा के दोस्त उस्मान शेख की बहन, भिड़े वाडा स्कूल में शामिल हुईं। वह देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका बनीं। ज्योतिराव ने 1851 तक शहर में तीन और स्कूल भी शुरू कर दिये थे।
1851 के अंत तक, फुले लगभग 150 छात्राओं के साथ पुणे में तीन स्कूल चला रहे थे। उनके स्कूलों में शिक्षण विधियों को सरकारी स्कूलों की तुलना में बेहतर माना जाता था और जल्द ही फुले के स्कूलों में नामांकित लड़कियों की संख्या सरकारी स्कूलों में लड़कों की संख्या से अधिक हो गई।
अपने जीवन मे सावित्रीबाई ने महिला उत्पीड़ितों के अधिकारों और उनके सशक्तिकरण के लिए संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा का समर्थन किया और यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि समाज उन्हें समान रूप में मान्यता दे। उन्होंने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव और अनुचित व्यवहार को खत्म करने के लिए भी काम किया।
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले को शूद्रों को शिक्षा प्राप्त करने में मदद करने के लिए उच्च जाति समुदायों के सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा। दंपति खुद सामाजिक रूप से पिछड़े माली समुदाय से थे।
उनके अभियानों में रूढ़िवादी विचारों के साथ स्थानीय समुदायों का प्रतिरोध देखा गया। ऐसा कहा जाता है कि सावित्रीबाई अक्सर अपने बैग में एक अतिरिक्त साड़ी के साथ अपने स्कूल की यात्रा करती थीं क्योंकि उन्हें अक्सर गोबर और पत्थरों के साथ उनके रूढ़िवादी विरोधियों द्वारा हमला का सामना करना पड़ता था। लेकिन उन्होंने प्रतिरोध का मुकाबला किया और वही किया जो वह करने के लिए तैयार थे।
सावित्रीबाई अपने अतीत को कभी नहीं भूली और 1854 में, बाल दुल्हनों, विधवाओं और उनके परिवारों द्वारा त्यागी गई अन्य महिलाओं के लिए एक आश्रय की स्थापना की। सावित्रीबाई ने ज्योतिबा के साथ 17 और स्कूल खोले।
सावित्रीबाई ने गर्भवती, बलात्कार पीड़ितों के लिए बालहत्या प्रतिबंधक गृह नामक एक केंद्र की स्थापना की। उन्होंने 1897 में प्लेग पीड़ितों के लिए एक क्लिनिक भी खोला। वह सती प्रथा के भी खिलाफ थीं। उन्होने और ज्योतिबा ने काशीबाई के पुत्र यशवंतराव को गोद लिया, जो एक विधवा थी, जिसे रूढ़िवादी ब्राह्मण उसके पति की मृत्यु के बाद मारना चाहते थे।