Cheteshwar Pujara retirement: पुजारा ने क्रिकेट छोड़ा, भावुक होकर कहा- मां का सपना पूरा हुआ
Cheteshwar Pujara retirement, भारतीय टेस्ट क्रिकेट के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में से एक चेतेश्वर पुजारा ने रविवार, 24 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी।
Cheteshwar Pujara retirement : रिटायरमेंट के बाद चेतेश्वर पुजारा का इमोशनल बयान: मां का सपना किया पूरा
Cheteshwar Pujara retirement, भारतीय टेस्ट क्रिकेट के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाजों में से एक चेतेश्वर पुजारा ने रविवार, 24 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी। 37 वर्षीय पुजारा ने 13 साल से भी ज्यादा लंबे करियर में अपनी धैर्य, तकनीक और संघर्ष की बदौलत टीम इंडिया के लिए अहम योगदान दिया। उन्होंने अपने करियर में 103 टेस्ट मैच खेले और 7195 रन बनाए। इस दौरान उनके बल्ले से 19 शतक और 43 अर्धशतक निकले। पिछले दो साल से भारतीय टेस्ट टीम से बाहर चल रहे पुजारा ने साफ शब्दों में कहा कि अब उन्हें आगे बढ़ना है और इस फैसले से उन्हें बिल्कुल भी अफसोस नहीं है।
संन्यास का ऐलान – “अब आगे बढ़ने का समय है”
गुजरात के राजकोट में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पुजारा ने भावुक होकर अपने संन्यास की घोषणा की। उन्होंने कहा “कोई पछतावा नहीं है। मुझे लंबे समय तक भारत के लिए खेलने का मौका मिला, जो हर खिलाड़ी को नहीं मिलता। मैं अपने परिवार और सभी लोगों का आभारी हूं जिन्होंने मुझे सपोर्ट किया।” पुजारा ने साफ किया कि क्रिकेट ने उन्हें जो दिया, उसके लिए वे हमेशा कृतज्ञ रहेंगे। उन्होंने इसे जीवन का नया अध्याय बताते हुए कहा कि अब वे कमेंट्री के जरिए क्रिकेट से जुड़े रहेंगे।
शानदार टेस्ट करियर की झलक
चेतेश्वर पुजारा ने साल 2010 में कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में भारत के लिए टेस्ट डेब्यू किया। शुरुआत में उन्हें सीमित मौके मिले, लेकिन 2012 में राहुल द्रविड़ के संन्यास के बाद भारतीय टीम के नंबर-3 बल्लेबाज के रूप में उन्होंने अपनी जगह पक्की कर ली। उनका करियर धैर्य और टेस्ट क्रिकेट के पारंपरिक अंदाज़ की मिसाल रहा। उन्होंने अक्सर मुश्किल परिस्थितियों में टीम को संभाला और कई बार जीत की नींव रखी।
ऑस्ट्रेलिया सीरीज – करियर का स्वर्णिम पल
पुजारा के करियर का सबसे यादगार पल 2018-19 की ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज रही। उस सीरीज में उन्होंने तीन शतक जमाते हुए 521 रन बनाए और 1258 गेंदों का सामना किया। यह वही सीरीज थी, जिसमें भारत ने ऑस्ट्रेलिया की धरती पर पहली बार टेस्ट सीरीज जीतकर इतिहास रचा। उस जीत का सबसे बड़ा श्रेय पुजारा की बैटिंग और धैर्य को दिया गया। उन्होंने बार-बार साबित किया कि टीम इंडिया का भरोसा उन पर क्यों है।
डेब्यू का गर्व – दिग्गजों के बीच शुरुआत
अपने डेब्यू टेस्ट को याद करते हुए पुजारा ने कहा कि जब उन्होंने पहली बार भारतीय ड्रेसिंग रूम में कदम रखा तो वहां सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर जैसे दिग्गज मौजूद थे।पुजारा ने कहा –
“वो पल मेरे जीवन का सबसे गर्वित लम्हा था। उन महान खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर करना मेरे लिए प्रेरणा और सौभाग्य की बात थी।”
मां का सपना किया पूरा
संन्यास के ऐलान के दौरान पुजारा ने अपनी मां रीना पुजारा को याद करते हुए भावुक हो गए। 2005 में कैंसर की वजह से उनकी मां का निधन हो गया था। पुजारा ने कहा कि उनकी मां हमेशा कहती थीं कि एक दिन बेटा इंडिया के लिए खेलेगा।पुजारा बोले “मां चाहती थीं कि मैं भारत के लिए खेलूं। आज जब मैं अपने करियर को देखता हूं तो लगता है कि मैंने मां का सपना पूरा किया। उन्होंने मुझे हमेशा सिखाया कि इंसान पहले अच्छा होना चाहिए, फिर बड़ा खिलाड़ी बनना।”
गुरु का आशीर्वाद – दबाव में भी शांत रहने का मंत्र
चेतेश्वर पुजारा ने अपने आध्यात्मिक गुरु हरिचरण दास जी महाराज का भी आभार जताया। उन्होंने कहा कि गुरुजी की शिक्षाओं की वजह से वे हमेशा दबाव की परिस्थितियों में शांत और संयमित रह पाए, चाहे क्रिकेट हो या जीवन। उन्होंने बताया कि यही सीख उन्हें मैदान पर स्थिर रहने और लंबी पारियां खेलने में मदद करती रही।
क्रिकेट से नाता बना रहेगा
हालांकि पुजारा अब बल्ला हाथ में नहीं उठाएंगे, लेकिन खेल से उनका नाता खत्म नहीं होगा। वह इंग्लैंड सीरीज के दौरान पहले ही कमेंट्री कर चुके हैं और अब इस क्षेत्र में और आगे बढ़ने का मन बना चुके हैं।उन्होंने कहा “अब मैं क्रिकेट नहीं खेलूंगा, लेकिन भारतीय टीम को देखता रहूंगा और कमेंट्री भी करता रहूंगा। मेरे लिए ये भी गर्व की बात होगी।”
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भारतीय क्रिकेट के “वॉल” का योगदान
चेतेश्वर पुजारा को उनकी ठोस तकनीक और धैर्यपूर्ण बल्लेबाजी के लिए अक्सर “भारतीय टेस्ट क्रिकेट का वॉल” कहा गया। राहुल द्रविड़ की तरह उन्होंने भी कई बार भारत को मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकाला। उनकी बल्लेबाजी का अंदाज़ भले ही धीमा था, लेकिन टेस्ट क्रिकेट की असली खूबसूरती को उन्होंने अपने खेल से जिंदा रखा। चेतेश्वर पुजारा का करियर सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि धैर्य, मेहनत, अनुशासन और परिवार के सपनों की मिसाल है। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनकी विदाई भले ही मैदान से हो रही है, लेकिन भारतीय क्रिकेट और फैंस के दिलों में उनका नाम हमेशा “वॉल पुजारा” के रूप में जिंदा रहेगा।
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