Sawan Jhoola: क्यों झूलती हैं महिलाएं सावन में झूला? जानें इसके पीछे की पौराणिक आस्था
Sawan Jhoola केवल मौज-मस्ती नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, स्त्री जीवन और धार्मिक आस्था का एक सुंदर संगम है। यह मां पार्वती की भावनाओं का प्रतीक है, जो हर महिला के दिल में समाई होती है।
Sawan Jhoola: सिर्फ एक उत्सव नहीं, मां पार्वती की भावना का प्रतीक है झूला
Sawan Jhoola: सावन का महीना आते ही हर ओर हरियाली, उमंग और भक्ति का एक खास वातावरण बन जाता है। खासकर उत्तर भारत में इस मौसम में एक पारंपरिक दृश्य देखने को मिलता है – महिलाएं रंग-बिरंगे परिधानों में सज-धजकर पेड़ों पर झूले झूलती हैं, गीत गाती हैं और सावन के उत्सव का आनंद लेती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सावन में झूला झूलने की परंपरा सिर्फ मनोरंजन या उत्सव का हिस्सा ही नहीं, बल्कि इसका संबंध मां पार्वती और भगवान शिव की कथा से भी जुड़ा हुआ है?
आख़िर क्यों झूलती हैं महिलाएं सावन में झूला?
सावन का महीना भारतीय संस्कृति में खास महत्व रखता है। हर ओर हरियाली, ठंडी हवाएं और रिमझिम बारिश का माहौल लोगों के मन को सुकून देता है। इसी मौसम में एक सुंदर परंपरा देखने को मिलती है—महिलाओं का झूला झूलना। सावन में महिलाएं न सिर्फ झूले का आनंद लेती हैं, बल्कि पारंपरिक गीत भी गाती हैं। यह परंपरा देखने में भले ही मनोरंजन का साधन लगे, लेकिन इसके पीछे कई धार्मिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक कारण छिपे हैं।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सावन के महीने में मां पार्वती अपने मायके आती हैं और इस दौरान वह झूला झूलती हैं। महिलाएं इस परंपरा को देवी पार्वती के स्वागत के रूप में निभाती हैं और स्वयं को पार्वती जी के रूप में देखती हैं। उनका झूला झूलना इस बात का प्रतीक होता है कि वे भी अपने मायके आई हैं और खुश हैं।
पुराने समय में जब महिलाएं शादी के बाद अपने ससुराल चली जाती थीं, तब सावन का महीना उनके मायके लौटने का समय माना जाता था। इस दौरान वे अपनी बहनों और सहेलियों से मिलतीं, पारंपरिक श्रृंगार करतीं, मेहंदी लगातीं और झूला झूलकर गीत गातीं। यह न केवल मेल-जोल का अवसर होता था, बल्कि मानसिक रूप से राहत और आनंद का भी समय होता था।

सावन और झूले का सांस्कृतिक संबंध
सावन का महीना विशेष रूप से शिव और पार्वती की पूजा-अर्चना के लिए जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में देवी पार्वती भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप करती हैं और अंततः सावन के महीने में ही उनका विवाह होता है। पार्वतीजी के मायके आने और वहां उल्लासपूर्वक झूला झूलने का प्रतीक रूप ये परंपरा आज भी जीवित है।
मां पार्वती और झूले की भावना
सावन के दौरान झूला झूलना इस भावना को दर्शाता है कि मां पार्वती अपने मायके आई हैं, और उनका स्वागत गीत-संगीत और झूले से किया जा रहा है। यही वजह है कि महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाकर और झूले झूलकर देवी के इस आगमन की खुशी मनाती हैं। यह प्रेम, अपनत्व और स्त्री जीवन के मायके-ससुराल के संबंध को दर्शाता है।
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महिलाओं के लिए उत्सव
सावन महिलाओं के लिए एक सामाजिक और भावनात्मक अवसर भी होता है। वे एक-दूसरे से मिलती हैं, श्रृंगार करती हैं, मेहंदी लगाती हैं, पारंपरिक गीत गाती हैं और झूले पर बैठकर प्राकृतिक वातावरण का आनंद लेती हैं। यह मौसम उनके लिए एक तरह का “रीचार्जिंग टाइम” होता है, जहां वे परिवार की जिम्मेदारियों से हटकर खुद को समय देती हैं।

झूला और बारिश
सावन में झूला झूलना केवल एक धार्मिक या सामाजिक क्रिया नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ तालमेल का भी प्रतीक है। जब हवा चलती है, बारिश की फुहारें गिरती हैं और झूला धीरे-धीरे आगे-पीछे होता है, तो यह एक प्राकृतिक सुखद अनुभव बन जाता है, जो मन और शरीर दोनों को सुकून देता है।
धार्मिक महत्व
सावन में झूला झूलते समय कई महिलाएं भक्ति गीत और झूला गीत गाती हैं जो शिव-पार्वती की कथाओं पर आधारित होते हैं। कई जगहों पर झूला उत्सव मंदिरों में भी मनाया जाता है, जहां भगवान कृष्ण या भगवान शिव को झूले पर विराजमान कर पूजा की जाती है।
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