Saptarishi Ki Kahani: आखिर कौन थे सप्तऋषि? ब्रह्मा जी ने क्यों की थी इनकी उत्पत्ति, इन्हें माना जाता है वैदिक धर्म का संरक्षक
Saptarishi Ki Kahani: सप्तर्षि का मतलब सात ऋषि। मत्स्यपुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने संसार में धर्म की स्थापना के लिए अपने मस्तक से सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी।
Saptarishi Ki Kahani: तारामंडल से भी जोड़े जाते हैं सप्तऋषि, धर्म और मर्यादा की रक्षा करना है काम
धर्म ग्रंथों में गुरुओं का स्थान ईश्वर के समान बताया गया है। हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी को अपना गुरु मानता है। पुराने युगों में ऋषि-मुनियों को ही गुरु माना जाता था। दरअसल प्राचीन काल में सात ऋषियों का एक समूह था जिसे सप्तऋषि कहा जाता था। वेदों में इन सात ऋषियों को वैदिक धर्म का संरक्षक माना गया है। इन्हीं ऋषिओं के नाम से कुल के नामों का भी पता लगाया जाता है। इन ऋषियों पर ब्रह्माण्ड में संतुलन बनाए रखने और मानव जाति को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी है। माना जाता है कि सप्तऋषि आज भी अपने इन कार्यों में लगे हुए हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि सप्तऋषि कौन हैं और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई है? आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
विष्णु पुराण और पद्म पुराण में सप्तऋषियों की महिमा बताई गई है। सप्तऋषि का मतलब सात ऋषि। मत्स्यपुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने संसार में धर्म की स्थापना करने और सनातन संस्कृति का ज्ञान बनाए रखने के लिए अपने मस्तक से सप्तर्षियों की उत्पत्ति की थी। भगवान शिव ने सप्तऋषि का गुरु बनकर वेदों, ग्रंथों और पुराणों की शिक्षा दी। संसार में मनुष्यों को योग, विज्ञान, धर्म, वेद और पुराणों की शिक्षा देने और अपनी संस्कृति का ज्ञान कराने के लिए सप्तऋषियों को सबसे उच्चकोटि का गुरु बनाया गया है। वेद संहिता में सप्तऋषियों को वैदिक धर्म का जनक माना जाता है।
तारामंडल से भी जोड़े जाते हैं सप्तऋषि
वेदों में सप्तऋषियों की श्रेणी में वशिष्ठ, विश्वामित्र, कश्यप, भारद्वाज, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, ऋषि आदि ऋषियों को रखा गया है। इन महान ऋषियों को सप्तऋषि तारामंडल से भी जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये आकाश में सात तारों के रूप में आज भी मौजूद हैं। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि ये आगे चलकर तारामंडल का हिस्सा बने, जिसका जिक्र वेदों और पुराणों में मिलता है।
धर्म और मर्यादा की रक्षा करना है काम
जानकारी के लिए आपको बता दें कि सप्तऋषियों का कार्य धर्म और मर्यादा की रक्षा करना और ब्रह्मांड के सभी कार्यों का संचालन सही तरीके से होने देना है। लोगों का यह मानना है कि वे अपनी योग और तपस्या से संसार में सुख-शांति बनाए रखते हैं। आपको बता दें कि ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरू थे। ऋषि अत्रि के आश्रम में प्रभु श्रीराम रुके थे। ऋषि गौतम ने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया था और श्रीराम ने उन्हें श्रापमुक्त किया था।
सप्तऋषियों ने जनकल्याण में दिया अपना अमूल्य योगदान Saptarishi Ki Kahani
वहीं ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति ने देवताओं और दिति ने दैत्यों को जन्म दिया। ऋषि जमदग्नि भगवान परशुराम के पिता थे। ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद जैसे महान ग्रंथ की रचना की थी। ऋषि विश्वामित्र भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के गुरु थे। ऋषि विश्वामित्र ने ही गायत्री मंत्र की रचना की थी। इस प्रकार सप्तऋषियों ने जनकल्याण में अपना अमूल्य योगदान दिया। आज के युग में ध्रुव तारे के चारों ओर फैले तारामंडल को ही सप्तर्षि माना जाता है।
कौन थे ये ऋषि, विस्तार से जानें
ऋषि वशिष्ठ Saptarishi Ki Kahani
ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु थे। उनके द्वारा ही राजा दशरथ के चारों पुत्रों- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ने शिक्षा प्राप्त की थी। उनके कहने पर ही राजा दशरथ ने श्री राम और श्री लक्ष्मण को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेजा था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। जिसमें ऋषि वशिष्ठ विजयी हुए थे।
ऋषि विश्वामित्र Saptarishi Ki Kahani
विश्वामित्र ऋषि होने के साथ-साथ एक राजा भी थे। वे ऋषि विश्वामित्र ही थे जिन्होनें गायत्री मन्त्र की रचना की थी। ऋषि विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या को भंग किया जाने का प्रसंग बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को शरीर के साथ ही स्वर्ग के दर्शन करा दिए थे।
ऋषि कश्यप Saptarishi Ki Kahani
ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, कश्यप ऋषि के वंशज ही सृष्टि के प्रसार में सहायक हुए। कश्यप ऋषि की 17 पत्नियां थी। इनकी अदिति नाम की पत्नी से सभी देवता और दिति नाम की पत्नी से दैत्यों की उत्पत्ति मानी गई है। ऐसा माना जाता है कि शेष पत्नियों से भी अलग-अलग जीवों की उत्पत्ति हुई है।
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ऋषि भारद्वाज Saptarishi Ki Kahani
सप्तऋषियों में भारद्वाज ऋषियों को सबसे सर्वोच्च स्थान मिला हुआ है। ऋषि भारद्वाज ने आयुर्वेद सहित कई ग्रंथों की रचना की थी। इनके पुत्र द्रोणाचार्य थे।
ऋषि अत्रि Saptarishi Ki Kahani
ऋषि अत्रि, ब्रह्मा के सतयुग के 10 पुत्रों में से एक माने जाते हैं। अनुसूया उनकी पत्नी थी। हमारे देश में कृषि विकास के लिए ऋषि अत्रि का योगदान सबसे अहम माना जाता है। उन्हें प्राचीन भारत में बहुत बड़ा वैज्ञानिक भी माना जाता है।
ऋषि जमदग्नि Saptarishi Ki Kahani
भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि के ही पुत्र थे। इनके आश्रम में इच्छित फलों को प्रदान करनी वाली गाय थी, जिसे कार्तवीर्य छीनकर अपने साथ ले गया था। परशुराम जी को जब इस बात का पता चला तो वह कार्तवीर्य को मारकर कामधेनु गाय वापिस आश्रम में ले आए।
ऋषि गौतम Saptarishi Ki Kahani
गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थीं। इनके श्राप के कारण ही अहिल्या पत्थर बन गई थी। भगवान श्रीराम की कृपा से अहिल्या ने पुन: अपना रूप प्राप्त किया था। गौतम ऋषि अपने तपबल पर ब्रह्मगिरी के पर्वत पर मां गंगा को लेकर आए थे।
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