Radha Ashtami 2024: आज राधाष्टमी पर जरूर करें इस कथा का पाठ, किशोरी जी के इन नामों के जाप से पूरी होगी हर इच्छा
Radha Ashtami 2024: राधा रानी का जन्मदिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवी राधा के भक्त व्रत रखते हैं और घर और मंदिरों में श्री कृष्ण और राधा जी की पूजा-अर्चना की जाती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने के साथ कथा सुनने और पढ़ने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है।
Radha Ashtami 2024: राधा रानी को क्यों मिला था श्राप? जानें सब कुछ
जब भी भगवान कृष्ण की बात होती है तो राधा रानी का जरूर नाम लिया जाता है। मान्यताओं के मुताबिक, भगवान कृष्ण के जन्म से ठीक 15 दिन बाद राधा रानी का जन्म हुआ था। यही वजह है कि कृष्ण जन्माष्टमी के बाद राधाष्टमी का त्योहार भी मनाया जाता है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी होता है। Radha Ashtami 2024 वैसे तो देशभर में इस त्योहार का सेलिब्रेशन होता है लेकिन वृंदावन, मथुरा और बरसाना में इसका खास महत्व है। इस दिन व्रत रह कर राधा रानी की पूजा भी की जाती है। इस साल आज यानी कि 11 सितंबर को राधाष्टमी मनाई जा रही है। Radha Ashtami 2024 इस दिन राधा रानी के संग भगवान श्रीकृष्ण की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही व्रत भी किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने से साधक का जीवन खुशियों से भर जाता है और किशोरी जी की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए राधा अष्टमी के दिन व्रत कथा का पाठ करना बिल्कुल भी न भूलें।
राधा अष्टमी व्रत कथा Radha Ashtami 2024
पौराणिक कथा के अनुसार, राधा रानी श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में निवास करती थीं। एक बार भगवान श्रीकृष्ण को गोलोक में राधा नजर नहीं आईं, और कुछ समय बाद वे अपनी सखी विराजा के साथ घूमने चले गए। Radha Ashtami 2024 जब राधा को इस बात का पता चला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गईं और तुरंत कृष्ण के पास पहुंचीं। जिसके बाद क्रोध में ही उन्होंने विरजा को अपमानित कर दिया, जिसके बाद विरजा नदी के रूप में बहने लगी।
देवी राधा का यह व्यवहार श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को अच्छा नहीं लगा और वह देवी राधा को भला-बुरा कहने लगे। उसके बाद बिना किसी विचार के, सुदामा ने राधा को श्राप दे दिया कि वे पृथ्वी पर जन्म लेंगी। Radha Ashtami 2024 श्राप मिलने के बाद, राधा ने भी उन्हें श्राप दिया कि वे राक्षस कुल में जन्म लेंगे। इसी श्राप के परिणामस्वरूप सुदामा का जन्म शंखचूड़ दानव के रूप में हुआ, जो आगे चलकर भगवान विष्णु का महान भक्त बना।
दूसरी ओर, राधा रानी ने पृथ्वी पर वृषभानु जी के घर पुत्री के रूप में अवतार लिया। राधा का जन्म वृषभानु जी के घर तो हुआ, लेकिन देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं। जब राधा और सुदामा ने एक-दूसरे को श्राप दिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि राधा को वृषभानु और देवी कीर्ति की पुत्री बनकर पृथ्वी पर रहना होगा। Radha Ashtami 2024 मनुष्य योनी में आपके विवाह का संबंध एक वैश्य से होगा, जो मेरे ही अंश का अवतार होगा।
इस प्रकार, आप पृथ्वी पर भी मेरी ही संगिनी रहेंगी, लेकिन हमें पृथ्वी पर अलग होने का दुख सहना होगा। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि अब आप मनुष्य योनी में जन्म लेने की तैयारी करें। संसार के सामने वृषभानु जी की पत्नी गर्भवती हुईं और जिस प्रकार एक शिशु का जन्म होता है, उसी प्रकार देवी कीर्ति का भी प्रसव हुआ। हालांकि, वास्तव में राधा का जन्म उनके गर्भ से नहीं हुआ था।
भगवान की माया से उनके गर्भ में वायु आ गई थी, और उसी वायु से राधा रानी का प्राकट्य हुआ था। Radha Ashtami 2024 प्रसव के समय देवी कीर्ति को पीड़ा हो रही थी, और उसी समय राधा के रूप में एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ। राधा का अवतरण भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, और तभी से हर वर्ष इस दिन को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
राधा अष्टमी का महत्व Radha Ashtami 2024
हिंदू धर्म में राधा अष्टमी का विशेष महत्व है। इस दिन किशोरी जी के नाम का व्रत और पूजन करने के साथ राधा अष्टमी की व्रत कथा पढ़ने और सुनने से जीवन की सारी परेशानियां दूर होती हैं। शास्त्रों के अनुसार, देवी राधा के नाम का जाप करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा व्यक्ति को कभी भी आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता है।
राधा जी के 108 नाम Radha Ashtami 2024
ऊं कृष्णप्रियायै नम:
ऊं मदनमोहिन्यै नम:
ऊं श्रीमत्यै कृष्णकान्तायै नम:
ऊं कृष्णानन्दप्रदायिन्यै नम:
ऊं यशस्विन्यै नम:
ऊं यशोगम्यायै नम:
ऊं यशोदानन्दवल्लभायै नम:
ऊं दामोदरप्रियायै नम:
ऊं गोकुलानन्दकर्त्र्यै नम:
ऊं गोकुलानन्ददायिन्यै नम:
ऊं गतिप्रदायै नम:
ऊं गीतगम्यायै नम:
ऊं गमनागमनप्रियायै नम:
ऊं श्रीराधायै नम:
ऊं राधिकायै नम:
ऊं जीवायै नम:
ऊं जीवानन्दप्रदायिन्यै नम:
ऊं नन्दनन्दनपत्न्यै नम:
ऊं वृषभानुसुतायै नम:
ऊं शिवायै नम:
ऊं गणाध्यक्षायै नम:
ऊं गवाध्यक्षायै नम:
ऊं जगन्नाथप्रियायै नम:
ऊं किशोर्यै नम:
ऊं कमलायै नम:
ऊं कृष्णवल्लभायै नम:
ऊं कृष्णसंयुतायै नम:
ऊं वृन्दावनेश्वर्यै नम:
ऊं विष्णुप्रियायै नम:
ऊं विष्णुकान्तायै नम:
ऊं विष्णोरंकनिवासिन्यै नम:
ऊं यशोदानन्दपत्न्यै नम:
ऊं यशोदानन्दगेहिन्यै नम:
ऊं कामारिकान्तायै नम:
ऊं कामेश्यै नम:
ऊं कामलालसविग्रहायै नम:
ऊं जयप्रदायै नम:
ऊं जयायै नम:
ऊं गोप्यै नम:
ऊं गोपानन्दकर्यै नम:
ऊं कृष्णांगवासिन्यै नम:
ऊं हृद्यायै नम:
ऊं चित्रमालिन्यै नम:
ऊं विमलायै नम:
ऊं दु:खहन्त्र्यै नम:
ऊं मत्यै नम:
ऊं धृत्यै नम:
ऊं लज्जायै नम:
ऊं कान्त्यै नम:
ऊं पुष्टयै नम:
ऊं गोकुलत्वप्रदायिन्यै नम:
ऊं केशवायै नम:
ऊं केशवप्रीतायै नम:
ऊं रासक्रीडाकर्यै नम:
ऊं रासवासिन्यै नम:
ऊं राससुन्दर्यै नम:
ऊं हरिकान्तायै नम:
ऊं हरिप्रियायै नम:
ऊं प्रधानगोपिकायै नम:
ऊं गोपकन्यायै नम:
ऊं त्रैलोक्यसुन्दर्यै नम:
ऊं वृन्दावनविहारिण्यै नम:
ऊं विकसितमुखाम्बुजायै नम:
ऊं पद्मायै नम:
ऊं पद्महस्तायै नम:
ऊं पवित्रायै नम:
ऊं सर्वमंगलायै नम:
ऊं कृष्णकान्तायै नम:
ऊं विचित्रवासिन्यै नम:
ऊं वेणुवाद्यायै नम:
ऊं वेणुरत्यै नम:
ऊं सौम्यरूपायै नम:
ऊं ललितायै नम:
ऊं विशोकायै नम:
ऊं विशाखायै नम:
ऊं लवंगनाम्न्यै नम:
ऊं कृष्णभोग्यायै नम:
ऊं चन्द्रवल्लभायै नम:
ऊं अर्द्धचन्द्रधरायै नम:
ऊं रोहिण्यै नम:
ऊं कलायै नम:
ऊं शुकदेवगुणातीतायै नम:
ऊं शुकदेवप्रियायै सख्यै नम:
ऊं रतिप्रदायै नम:
ऊं चैतन्यप्रियायै नम:
ऊं सखीमध्यनिवासिन्यै नम:
ऊं मथुरायै नम:
ऊं श्रीकृष्णभावनायै नम:
ऊं पतिप्राणायै नम:
ऊं पतिव्रतायै नम:
ऊं कामकलायै नम:
ऊं बिल्ववृक्षनिवासिन्यै नम:
ऊं बिल्ववृक्षप्रियायै नम:
ऊं बिल्वोपमस्तन्यै नम:
ऊं तुलसीतोषिकायै नम:
ऊं गजमुक्तायै नम:
ऊं महामुक्तायै नम:
ऊं महामुक्तिफलप्रदायै नम:
ऊं प्रेमप्रियायै नम:
ऊं प्रेमरुपायै नम:
ऊं प्रेमभक्तिप्रदायै नम:
ऊं प्रेमक्रीडापरीतांग्यै नम:
ऊं दयारुपायै नम:
ऊं गौरचन्द्राननायै नम:
ऊं सकलेप्सितदात्र्यै नम:
ऊं कृष्णभार्यायै नम:
ऊं श्यामसख्यै नम:
ऊं कल्पवासिन्यै नम:
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