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Ker Puja: अनुशासन और आस्था का पर्व, क्या है केर पूजा की खासियत?

Ker Puja, भारत विविधता और परंपराओं का देश है, जहाँ हर राज्य और जनजाति की अपनी-अपनी मान्यताएं और उत्सव होते हैं।

Ker Puja : जब पूरा शहर बन जाता है पवित्र क्षेत्र, केर पूजा की अनोखी रीत

Ker Puja: भारत विविधता और परंपराओं का देश है, जहाँ हर राज्य और जनजाति की अपनी-अपनी मान्यताएं और उत्सव होते हैं। त्रिपुरा राज्य का एक विशेष और अनोखा त्योहार है Ker Puja। यह पूजा धार्मिक आस्था, सामाजिक अनुशासन और जनजातीय परंपराओं का मिश्रण है, जिसे राजधानी अगरतला और आसपास के इलाकों में विशेष रूप से मनाया जाता है।

Ker Puja क्या है?

Ker Puja त्रिपुरा के पूर्व शासकों की परंपरा से जुड़ा हुआ त्योहार है। “केर” शब्द का अर्थ होता है रक्षा या सुरक्षा कवच। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य है राज्य की सुख-शांति, सुरक्षा और समृद्धि की कामना करना। माना जाता है कि केर पूजा के माध्यम से बुरी आत्माओं, बीमारियों और आपदाओं से राज्य की रक्षा की जाती है। यह पूजा त्रिपुरा के पूर्वानुसार रीति-रिवाजों के अनुसार होती है और इसमें पूरा क्षेत्र एक तरह से ‘शुद्ध और सुरक्षित क्षेत्र’ (Sacred Zone) घोषित कर दिया जाता है।

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कब और कैसे मनाई जाती है केर पूजा?

Ker Puja आमतौर पर खारची पूजा के दो दिन बाद मनाई जाती है। खारची पूजा देवी-देवताओं की पूजा होती है, जबकि Ker Puja ‘रक्षक देवता’ की आराधना मानी जाती है। पूजा के समय एक निश्चित क्षेत्र को पवित्र क्षेत्र (Holy Boundary) घोषित कर दिया जाता है और वहां 48 घंटे तक सख्त नियम लागू रहते हैं:

-इस दौरान लोग बाहर नहीं जा सकते, न ही कोई अंदर आ सकता है।

-संगीत, नाच-गाना, तेज आवाज आदि पर पूरी तरह पाबंदी होती है।

-कोई भी व्यक्ति घर छोड़कर यात्रा नहीं कर सकता, विवाह या किसी भी प्रकार के आनंदोत्सव की मनाही होती है।

-पूरे क्षेत्र में शांति, अनुशासन और ध्यान बनाए रखा जाता है।

राजा और राजपरिवार के सदस्यों के लिए यह पूजा विशेष महत्व रखती है और इसका आयोजन राजपरिवार की देखरेख में होता आया है।

Ker Puja की प्रक्रिया

पूजा एक विशिष्ट जनजातीय पुजारी द्वारा की जाती है, जिसे “चंथाई” कहा जाता है। चंथाई देवता की आराधना कर उनसे राज्य की सुरक्षा और समृद्धि की कामना करता है। इसमें बलि प्रथा भी शामिल होती है, जहां जानवरों की बलि दी जाती है (हालांकि अब कई जगहों पर यह प्रतीकात्मक रूप से होता है)। पूजा के दौरान मिट्टी से बने विशेष प्रतीकों और रक्षा चिह्नों की स्थापना की जाती है, और क्षेत्र की परिक्रमा करके उसकी रक्षा की कामना की जाती है।

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सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

Ker Puja त्रिपुरा के लोगों में सामूहिकता, अनुशासन और परंपरा के प्रति सम्मान का भाव जगाती है। यह पूजा न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि सामाजिक नियंत्रण और आत्मचिंतन का अवसर भी प्रदान करती है। आज भी, आधुनिकता के दौर में भी केर पूजा को पूरी श्रद्धा और सादगी से मनाया जाता है, जिससे पता चलता है कि जनजातीय संस्कृति और परंपराएं आज भी जीवंत हैं। केर पूजा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि त्रिपुरा की सांस्कृतिक आत्मा है। यह त्योहार सिखाता है कि अनुशासन, संयम और सामूहिकता से कैसे समाज में स्थिरता और सुरक्षा लाई जा सकती है। केर पूजा हमें भारतीय जनजातीय समाज की गहराई और विविधता का सजीव उदाहरण प्रस्तुत करती है।

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