Kanwar Yatra 2024: कबसे शुरू हो रही है कांवड़ यात्रा, यहां जानें शिवलिंग पर अभिषेक की तिथि, किन नियमों का पालन है जरूरी
Kanwar Yatra 2024: हिंदू धर्म में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना बेहद फलदायी माना जाता है और सावन में ही कांवड़ यात्रा की जाती है। जिसमें शिव जी के भक्त कांवड़ में गंगा जल भरकर लाते हैं और सावन शिवरात्रि पर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
Kanwar Yatra 2024: इस तैयारी के साथ आते हैं कांवड़ यात्री, यात्रा में न करें किसी भी वाहन का प्रयोग
हिन्दू धर्म में भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना बेहद खास माना जाता है। कहा जाता है कि सावन माह में भोलेनाथ को प्रसन्न करें तो हर मनचाही वस्तु प्राप्त हो सकती है। वहीं जिनका विवाह नहीं हो रहा होता है, वे भोलेनाथ से अच्छे वर की कामना भी इसी माह में करते हैं। आपको बता दें कि सावन के महीने में ही कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाता है। जिसमें शिवजी के भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर लाते हैं और सावन शिवरात्रि पर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। इस बार कांवड़ यात्रा 2024 में कब से शुरू हो रही है और कांवड़ यात्रा में क्या नियम होंगे, इसकी जानकारी आज हम आपको अपने इस लेख में देने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं विस्तार से-
हर साल लाखों की संख्या में कांवड़ियां हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने क्षेत्र के शिवालयों में जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। शास्त्रों में कांवड़ यात्रा को लेकर कई महत्वपूर्ण नियमों का जिक्र किया गया है। जिनका यात्रा के दौरान पालन करना बहुत ही आवश्यक होता है। कांवड़ यात्रा के नियमों को लेकर किसी भी तरह की ढील नहीं दी गई है और अगर इनको तोड़ा जाता है कि भगवान शिव नाराज भी हो सकते हैं।
22 ज़ुलाई से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा Kanwar Yatra 2024
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि कांवड़ यात्रा पूरी करने वालों पर भोलेनाथ की विशेष कृपा बनी रहती है। हजारों, लाखों की संख्या में लोग कांवड़ लेकर शिव जी को जल चढ़ाने पैदल ही कांवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इस साल कांवड़ यात्रा की शुरुआत 22 जुलाई 2024 से होगी और इसका समापन 2 अगस्त 2024 को सावन शिवरात्रि पर होगा। कावड़ यात्रा एक तीर्थ यात्रा के समान मानी गई है, जिसका लोग पूरे साल भर इंतजार करते हैं।
कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़ यात्रा पर जाने वाले भक्तों को इस दौरान खास नियमों का पालन करना होता है। इस दौरान सभी शिव भक्तों को पैदल यात्रा ही करनी होती है। इसके साथ ही यात्रा के दौरान भक्तों को सात्विक भोजन का सेवन करना होता है। साथ ही आराम करते समय कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते हैं। ऐसा करने से कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है। कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को किसी भी तरह का नशा, मांस मदिरा या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
कांवड़ यात्रा में न करें किसी भी वाहन का प्रयोग Kanwar Yatra 2024
कांवड़ यात्रा पूरी तरह पैदल की जाती है। यात्रा प्रारंभ होने से लेकर पूर्ण होने तक सफर पैदल ही किया जाता है। यात्रा में किसी वाहन का प्रयोग नहीं किया जाता है। कांवड़ में गंगा या किसी पवित्र नदी का ही जल रखा जाता है, किसी कुंए या तालाब का नहीं। कावड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही स्पर्श करना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि यात्रा के समय कांवड़ या आपसे चमड़ा स्पर्श न हो। कावड़ियों को हमेशा जत्थे के साथ ही रहना चाहिए।
जमीन पर न रखें कांवड़
कांवड़ यात्रा के दौरान ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप कहीं रुक रहे हैं तो कांवड़ को भूमि या किसी चबूतरे पर न रखें। कांवड़ को हमेशा स्टैंड या डाली पर ही लटकाकर रखें। अगर गलती से जमीन पर कांवड़ को रख दिया है तो फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है। कांवड़ यात्रा करते समय पूरे रास्ते बम बम भोले या जय जय शिव शंकर का उच्चारण करते रहना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांवड़ को किसी के ऊपर से लेकर न जाएं।
कांवड़ यात्रा का यह है अर्थ
कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर जलाभिषेक करने की परंपरा कांवड़ यात्रा कहलाती है। वहीं आनंद रामायण में भी यह उल्लेख किया गया है कि भगवान राम ने भी कांवड़ियां बनकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था।कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ यात्री वही गंगाजल लेकर शिवालय तक जाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
कांवड़ यात्रा आरंभ होने की दो कथा Kanwar Yatra 2024
कहा जाता है कि भगवान परशुराम पहले कांवड़ियां थे। उन्होनें महादेव को प्रसन्न करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जल ले जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। तभी से हर साल कांवड़ यात्रा की शुरुआत की गई। हालांकि कुछ मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत श्रवण कुमार ने त्रेता युग में की थी। श्रवण कुमार के अंधे माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा व्यक्त की। ऐसे में श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कंधे पर कांवड़ में बिठा कर पैदल यात्रा की और उन्हें गंगा स्नान करवाया। लौटते समय अपने साथ गंगा जल लेकर आए जिसे उन्होंने भगवान शिव का अभिषेक किया। माना जाता है कि इसके साथ ही कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का कारण
पौराणिक काल में जब समुद्र मंथन किया गया था तो समुद्र मंथन से निकले विष को पान कर भगवान शिव ने दुनिया की रक्षा की थी। वहीं इस विष को पीने के कारण उनका गला नीला पड़ गया था। कहते हैं कि इसी विष के प्रकोप को कम करने और उसके प्रभाव को ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। इस जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवाना भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
इस तैयारी के साथ आते हैं कांवड़ यात्री Kanwar Yatra 2024
कांवड़ बनाने में बांस, फेविकोल, कपड़े, डमरू, फूल-माला, घुंघरू, मंदिर, लोहे का बारिक तार और मजबूत धागे का इस्तेमाल किया जाता है। कांवड़ तैयार होने के बाद उसे फूल- माला, घंटी और घुंघरू से सजाया जाता है। इसके बाद गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप जलाकर बम भोले के जयकारों ओर भजनों के साथ कांवड़ यात्री जल भरने आते हैं और भगवान शिव को जला जढ़ाकर प्रसन्न करते हैं।
कई तरह से की जाती है कांवड़ यात्रा
सामान्य कांवड़ में यात्री कहीं भी आराम कर सकता है। लेकिन इस दौरान उन्हें ध्यान रखना होता है कि आराम करने के दौरान उनकी कांवड़ जमीन से नहीं छूनी चाहिए। इस दौरान कांवड़ स्टैंड पर रखी जाती है। वहीं, दूसरी ओर डाक कांवड़ में यात्री शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक बगैर रुके लगातार चलते रहते हैं। वहीं इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं वर्जित होती हैं। इसके अलावा खड़ी कांवड़ में भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता रहता है। इसके विपरीत दांडी कांवड़ में भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल यात्रा होती है, जिसमें कई दिन और कभी-कभी एक माह का समय तक लग जाता है।
कांवड का इतिहास Kanwar Yatra 2024
भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे। मान्यता है कि वे सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास “पुरा महादेव”, गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। उस समय श्रावण मास चल रहा था। तब से इस परंपरा को निभाते हुए भक्त श्रावण मास में कांवड़ यात्रा निकालने लगे।
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कई प्रकार की होती है कांवड़ यात्रा
शुरुआत में कांवड़ यात्रा पैदल ही निकाली जाती थी। लेकिन समय के साथ इसके तमाम प्रकार और नियम कायदे सामने आ गए। जानिए उनके बारे में….
सामान्य कांवड़ Kanwar Yatra 2024
सामान्य कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्त जहां चाहें विश्राम करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। इसके लिए सामाजिक संगठन के लोग कांवड़ियों के लिए पंडाल लगाते हैं, उनके लिए भोजन का प्रबंध करते हैं। विश्राम करने के बाद वह पुनः यात्रा शुरू करते हैं।
खड़ी कांवड़ यात्रा
खड़ी कांवड़ यात्रा सबसे कठिन होती है। इसमें भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर पैदल यात्रा करते हुए गंगाजल लेने जाते हैं। इस कांवड़ के नियम काफी कठिन होते हैं। इस कांवड़ को न तो जमीन पर रखा जाता है और न ही कहीं टांगा जाता है। यदि कांवड़िये को भोजन करना है या आराम करना है तो वो कांवड़ को या तो स्टैंड में रखेगा या फिर किसी अन्य कांवडिये को पकड़ा देगा। लेकिन न तो जमीन पर रखेगा और न ही किसी पेड़ की टहनी पर टांगेगा।
झांकी वाली कांवड़ Kanwar Yatra 2024
कुछ कांवड़िये झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा करते हैं। ये किसी ट्रक, जीप या खुली गाड़ी में शिव मूर्ति या प्रतिमा रखकर भजन चलाते हुए कांवड़ लेकर जाते हैं। इस दौरान भगवान शिव की प्रतिमा का श्रंगार किया जाता है और लोग भजन पर झूमते हुए यात्रा करते हैं। इस तरह की कांवड़ यात्रा को झांकी वाली कांवड़ कहा जाता है।
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डाक कांवड़
डाक कांवड़ वैसे तो झांकी वाली कांवड़ जैसी ही होती है। इसमें भी किसी गाड़ी में भोलेनाथ की प्रतिमा को सजाकर रखा जाता है और भक्त शिव भजनों पर झूमते हुए जाते हैं। लेकिन जब मंदिर से दूरी 36 घंटे या 24 घंटे की रह जाती है तो ये कांवड़िए कांवड़ में जल लेकर दौड़ते हैं। ऐसे में दौड़ते हुए जाना काफी मुश्किल होता है। इस तरह की कांवड़ यात्रा को करने से पहले संकल्प करना होता है।
दांडी कांवड़ Kanwar Yatra 2024
दांडी कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्त नदी तट से शिव धाम तक की यात्रा दांडी के सहारे पूरी करते हैं। यह सबसे कठिन यात्रा होती है, क्योंकि दांडी यात्रा में कभी-कभी महीनों लग जाते हैं।
कांवड़ यात्रा का महत्व
कांवड़ यात्रा एक पवित्र और कठिन यात्रा है जो पूरे भारत के भक्त विशेष रूप से उत्तर भारत में विभिन्न पवित्र स्थानों से गंगा जल लाने के लिए करते हैं, जो गौमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार हैं। वे पवित्र गंगा में एक पवित्र डुबकी लगाते हैं और वे कांवड़ को अपने कंधों पर ले जाते हैं। कांवड़ बांस से बना एक छोटा सा खंभा होता है जिसके विपरीत छोर पर घड़े बंधे होते हैं। भक्त उन घड़े को गंगाजल से भर देते हैं और फिर पैदल चलकर अपनी यात्रा शुरू करते हैं और कुछ भक्त नंगे पांव भी देखे जाते हैं।
न करें ये गलतियां Kanwar Yatra 2024
- जब भी हम कावड़ लेने जाएं तो अपने साथ कोई भी चमड़े का सामान जैसे चमड़े का पर्स, चमड़े की बेल्ट, चमड़े के जूते, चप्पल आदि नहीं ले जाना चाहिए। क्योंकि चमड़ा जानवरों की खाल से बनता है। जिसके कारण हमें हत्या का पाप लगता है। चमड़े का कोई भी सामान हमें अपने दैनिक जीवन में भी प्रयोग करने से बचना चाहिए।
- अपनी भाषा में परिवर्तन लाना बहुत जरूरी है। आप कावड़ लेने जाते हैं तो आप अपनी भाषा में बदलाव लाएं। जैसे कि किसी भी गलत भाषा का प्रयोग- गाली देना, अपशब्दों का प्रयोग करना और दूसरों के प्रति अपने मन में गलत विचार लाना। यह सब बिल्कुल एकदम बंद कर देना चाहिए। कावड़ यात्रा के दौरान आपको जो भी लोग मिलते हैं उन्हें भोला और भोले के नाम से ही संबोधित करना चाहिए।
- जहां तक संभव हो नंगे पैर से ही कावड़ यात्रा करें क्योंकि इसमें आत्मिक बल मिलता है और आपकी मनोकामना जल्दी पूरी होती है। कावड़ यात्रा के दौरान आप किसी भी मंदिर में जाकर भोलेनाथ की किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं। ओम नमः शिवाय का जाप करने से भगवान भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं।
- यात्रा के दौरान सभी प्रकार के नशे जैसे शराब, सिगरेट, पान मसाला और सबसे महत्वपूर्ण भांग का सेवन छोड़ देना चाहिए। कई लोग सोचते हैं कि यह भोलेनाथ का प्रसाद है। लेकिन इसका वर्णन किसी भी ग्रंथ या पुराण में नहीं मिलता। यदि आपको अपनी कावड़ यात्रा सफल करनी है तो इन सभी प्रकार की नशों को छोड़ देना चाहिए।
- यात्रा के दौरान शुद्ध सात्विक भोजन ही करना चाहिए। किसी भी प्रकार के मांसाहार का प्रयोग नहीं करना चाहिए यहां तक कि लहसुन प्याज का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। भोजन जमीन पर बैठकर ही करें। जमीन पर ही सोना चाहिए।
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