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Guru Ghasidas Jayanti: गुरु घासीदास जयंती 2025, सतनाम पंथ के संस्थापक की शिक्षाएं और महत्व

Guru Ghasidas Jayanti, भारत की धरती संतों और महापुरुषों की रही है। इन्हीं में से एक महान संत थे गुरु घासीदास जी, जिन्होंने समाज में फैले अंधविश्वास, भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई।

Guru Ghasidas Jayanti : गुरु घासीदास जयंती विशेष, जानें उनके विचार, योगदान और उपदेशों का अर्थ

Guru Ghasidas Jayanti, भारत की धरती संतों और महापुरुषों की रही है। इन्हीं में से एक महान संत थे गुरु घासीदास जी, जिन्होंने समाज में फैले अंधविश्वास, भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। हर साल 18 दिसंबर को गुरु घासीदास जयंती मनाई जाती है। यह दिन न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे भारत में समरसता, समानता और सत्य के संदेश का प्रतीक है।

गुरु घासीदास जी का जीवन परिचय

गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 को गिरौदपुरी गाँव, जिला बलौदाबाजार (छत्तीसगढ़) में हुआ था।
उनके पिता का नाम महंगूदास और माता का नाम अमरोबाई था। वे सतनामी समाज से संबंधित थे एक ऐसा समुदाय जो समानता और सत्य के मार्ग पर चलता है। घासीदास जी ने बचपन से ही समाज में फैले भेदभाव और अंधविश्वास को देखा। यह देखकर उन्होंने अपना जीवन सामाजिक सुधार और मानवता के प्रचार में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों को यह समझाने में लगाया कि “सब मनुष्य एक समान हैं” और ईश्वर एक है।

सतनाम दर्शन की स्थापना

गुरु घासीदास जी ने अपने जीवन दर्शन को “सतनाम” के रूप में प्रस्तुत किया। ‘सतनाम’ का अर्थ है “सच्चा नाम” यानी सत्य ही ईश्वर है। उनका संदेश था कि हमें किसी मूर्ति, जाति या ऊँच-नीच के बजाय सत्य और करुणा के मार्ग पर चलना चाहिए।

सतनामी पंथ इसी दर्शन पर आधारित है। इस पंथ का मुख्य उद्देश्य है —

  • इंसानियत को सर्वोपरि मानना,
  • सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना,
  • और जात-पात से ऊपर उठकर एकता का संदेश देना।

सामाजिक सुधारक के रूप में भूमिका

गुरु घासीदास जी ने समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिवाद, अंधविश्वास और पाखंड के खिलाफ आंदोलन चलाया। उन्होंने लोगों से कहा कि ईश्वर किसी मंदिर या मूर्ति में नहीं, बल्कि सत्य और कर्म में बसता है। उन्होंने लोगों को शराब, हिंसा और अन्य बुराइयों से दूर रहने की प्रेरणा दी। उनका मानना था कि सच्चा धर्म वही है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है, न कि बाँटता है।

गुरुतत्व और जतनखेत

गुरु घासीदास जी ने अपने जीवन के दौरान जंगलों में साधना की। कहा जाता है कि उन्होंने गिरौदपुरी के पास जतनखेत नामक स्थान पर तपस्या की, जहाँ उन्होंने “सतनाम का ज्ञान” प्राप्त किया। वहीं उन्होंने समाज को समानता, प्रेम और सत्य का संदेश दिया। आज यह स्थान “गिरौदपुरी धाम” के नाम से प्रसिद्ध है जहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु गुरु घासीदास जयंती पर एकत्रित होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

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गुरु घासीदास जी के प्रमुख उपदेश

गुरु घासीदास जी ने अपने जीवन में कई गहन और सरल संदेश दिए, जो आज भी समाज के लिए मार्गदर्शक हैं —

  1. सत्य बोलो और सत्य का पालन करो।
  2. ईश्वर एक है, वह हर जीव में विद्यमान है।
  3. सभी मनुष्य समान हैं, किसी के साथ भेदभाव मत करो।
  4. अहिंसा का पालन करो और जीवों से प्रेम करो।
  5. कर्म ही पूजा है, आलस्य मत करो।
  6. शराब, जुआ और पाखंड से दूर रहो।

इन सिद्धांतों के कारण गुरु घासीदास जी को “सत्य और मानवता के दूत” कहा जाता है।

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गुरु घासीदास जयंती का महत्व

गुरु घासीदास जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह सामाजिक चेतना का प्रतीक है।
इस दिन लोग उनके विचारों और शिक्षाओं को याद करते हैं और समाज में समानता व शांति बनाए रखने का संकल्प लेते हैं।

  • छत्तीसगढ़ में इस दिन को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
  • गिरौदपुरी धाम में विशाल मेला आयोजित होता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
  • सतनामी समाज के लोग इस दिन सफाई अभियान, भंडारा, सतनाम कीर्तन और रैली आयोजित करते हैं।

🇮🇳 गुरु घासीदास जी के विचारों की आज भी प्रासंगिकता

आज जब समाज में भेदभाव, हिंसा और असहिष्णुता के हालात बढ़ रहे हैं, ऐसे समय में गुरु घासीदास जी के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। उनका दर्शन एक ऐसी समाजव्यवस्था की कल्पना करता है जहाँ न ऊँच-नीच हो, न धर्म का भेद, बल्कि सब एक परिवार की तरह रहें। गुरु घासीदास जयंती केवल एक स्मरण दिवस नहीं, बल्कि यह समानता, करुणा और सत्य की पुनर्स्थापना का दिन है। गुरु घासीदास जी ने अपने जीवन से यह दिखाया कि परिवर्तन किसी बाहरी शक्ति से नहीं, बल्कि अंतरात्मा की जागृति से आता है।

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