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Gangaur Puja 2024: क्यों स्त्रियां छिपकर करतीं हैं गणगौर व्रत, जानें क्या है पूजा विधि और पौराणिक कथा

Gangaur Puja 2024: गणगौर पूजा हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। उस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं, पूजा करती हैं। गुरुवार 11 अप्रैल को गणगौर की पूजा होगी और गणगौर की सवारी निकलेगी।

Gangaur Puja 2024: माता पार्वती ने इन महिलाओं को उंगली चीरकर खून के छींटों से दिया था आशीर्वाद, जानें क्या थी वजह

गणगौर पूजा हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। उस दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं, पूजा करती हैं। गुरुवार 11 अप्रैल को गणगौर की पूजा होगी और गणगौर की सवारी निकलेगी। इस बार गणगौर के दिन 3 शुभ योग बन रहे हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि महिलाएं इसे गुप्त रूप से करती हैं। वे अपने पति को व्रत और पूजा के बारे में नहीं बताती हैं। यह व्रत और पूजा पति को बिना बताए की जाती है। गणगौर का व्रत और पूजन अविवाहित युवतियां भी करती हैं ताकि उनको मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त हो सके।

शिव-पार्वती से है गणगौर व्रत का नाता

गणगौर का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है। गण का अर्थ शिव और गौर का अर्थ गौरी है। इसलिए इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करते हैं। शिव और गौरी की पूजा करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य एवं सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

गणगौर पूजा तिथि

हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 10 अप्रैल को शाम 05:32 मिनट से प्रारंभ होगी। इस तिथि का समापन 11 अप्रैल को दोपहर 03:03 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर देखा जाए तो इस साल गणगौर पूजा गुरुवार 11 अप्रैल को होगी।

3 शुभ योग में मनेगी गणगौर

11 अप्रैल को गणगौर पूजा के दिन रवि योग, प्रीति योग और आयुष्मान योग बना है। रवि योग प्रात:काल में 06:00 बजे से अगले दिन 12 अप्रैल को मध्य रात्रि 01:38 तक है। वहीं, प्रीति योग सुबह 07:19 तक है और उसके बाद से आयुष्मान योग लगेगा। जो 12 अप्रैल को प्रात: 04:30 तक रहेगा। फिर सौभाग्य योग बनेगा।

महिलाएं छिपाकर क्यों करती हैं व्रत

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए व्रत और पूजा की, लेकिन वो भोलेनाथ से इसके बारे में बताना नहीं चाहती थीं। शिव जी ने काफी प्रयास किया कि वे बता दें, लेकिन माता पार्वती ने उस बारे में कोई बात नहीं की। वे गुप्त रूप से वह व्रत करना चाहती थीं। इस वजह से हर साल महिलाएं गणगौर व्रत और पूजा अपने पति से छिपाकर करती हैं। यहां तक कि इस व्रत और पूजा में चढ़ाए गए प्रसाद को भी पति को खाने को नहीं देती हैं।

18 दिन तक मनाते हैं यह पर्व

राजस्थान का मुख्य गणगौर पूजा का पर्व बड़े ही उत्सव के साथ मनाया जाता है। राजस्थान में ये पर्व पूरे 16 दिनों तक मनाया जाता है। यह पर्व 25 मार्च 2024 को शुरू हुआ था और कल 11 अप्रैल को इस पर्व का समापन होगा। यानि इस बार बड़ी गणगौर पूजा 11 अप्रैल दिन गुरुवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, ये गणगौर पूजा चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रथम यानी दुल्हैंडी से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि यानी तीसरे नवरात्र को पूरी होती है।

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ये है मान्यता

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने सभी महिलाओं को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। तभी से इस पूजा को मनाने की परंपरा चली आ रही है। 18 दिन तक चलने वाली गणगौर पूजा राजस्थान का मुख्य पर्व है, लेकिन इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात के कुछ इलाकों में भी त्योहार मनाया जाता है। इस पूजा की खास बात ये है कि गणगौर पूजा के दिन ही माता पार्वती ने राजघराने की महिलाओं को अपनी उंगली चीरकर खून के छींटों से सुहाग रस के वरदान के रूप में आशीर्वाद दिया था।

शाम को सुनी जाती है कथा

राजघराने की महिलाओं के पहुंचने से पहले गरीब परिवार की महिलाओं को पूरे सुहाग रस का वरदान दे चुकी थीं। इसलिए माता पार्वती को ये कदम उठाना पड़ा था। गणगौर पूजा के दिन कुंवारी लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं घर-घर में शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इसमें ईश्वर और गौर यानी शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर सोलह शृंगार कर सजाया जाता है और 16 दिन तक लगातार पूजा की जाती है और महिलाएं गीत गाती हैं। बड़ी गणगौर के दिन व्रत रखकर शाम को गणगौर की कथा भी सुनती हैं।

माता पार्वती को अर्पित किए जाते हैं गहनें

मान्यता है कि बड़ी गणगौर के दिन जितने गहने यानी गुने माता पार्वती को अर्पित किए जाते हैं, उतना ही घर में धन-वैभव बढ़ता है। पूजा के बाद महिलाएं ये गुने सास, ननद, देवरानी या जेठानी को दे देती हैं। गुने को पहले गहना कहा जाता था लेकिन अब इसका अपभ्रंश नाम गुना हो गया है। गणगौर शब्द गण और गौर दो शब्दों से मिलकर बना है। जहां ‘गण का अर्थ शिव और ‘गौर का अर्थ माता पार्वती से है।

महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की होती प्राप्ति

मान्यता है कि इस व्रत को करने से महिलाओं को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान शिव जैसा पति प्राप्त करने के लिए अविवाहित कन्याएं भी यह व्रत करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव के साथ सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देने के लिए भ्रमण करती हैं। महिलाएं परिवार में सुख-समृद्धि और सुहाग की रक्षा की कामना करते हुए पूजा करती हैं।

ऐसे होती है पूजा

  • गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां सुबह स्नान कर वस्त्र, आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग-बगीचों में जातीं हैं।
  • इसके बाद ताजा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुईं घर आती हैं।
  • मिट्टी से बने शिव स्वरूप ईसर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा और होली की राख से बनी 8 पिंडियों को दूब पर एक टोकरी में स्थापित किया जाता है।
  • शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब घास और पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
  • पूरे 18 दिन तक दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली, मेहंदी, हल्दी और काजल की लगाई जाती हैं।
  • दूब से पानी के 16 बार छींटे 16 शृंगार के प्रतीकों पर लगाए जाते हैं। गौर तृतीया को व्रत रखकर कथा सुनकर पूजा का समापन होता है।

18 दिन तक होती है पूजा

गणगौर पूजा के दिन कुंवारी लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं घर-घर में शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इसमें ईश्वर और गौर यानी शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर सोलह शृंगार कर सजाया जाता है और 16 दिन तक लगातार पूजा की जाती है और महिलाएं गीत गाती हैं। बड़ी गणगौर के दिन व्रत रखकर शाम को गणगौर की कथा भी सुनती हैं।

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गणगौर की व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले थे। सभी एक गांव में पहुंचें। जब इस बात की जानकारी गांव वालों को लगी तो गांव की संपन्न और समृद्धि महिलाएं तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं, ताकि प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं गरीब परिवारों की महिलाएं पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे, उनको अर्पित करने के लिए पहुंच गई।

ऐसे में उनकी भक्ति भाव से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। फिर थोड़ी देर में संपन्न राजघराने के परिवार की महिलाएं तरह-तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहां पहुंचीं लेकिन माता के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा। इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया। ऐसे में अब आप क्या करेंगी।

तब माता पार्वती ने अपनी अंगुली चीर कर खून के छींटों से उन महिलाओं को अपना आशीर्वाद दिया। इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया तिथि थी। इसके बाद सभी महिलाएं घर वापस लौट गईं। फिर माता पार्वती ने नदी के तट पर स्नान कर बालू से महादेव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया। फिर बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया और बालू के दो कणों को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान शिव के पास वापस लौट आईं।

यह सभी बातें भगवान शिव जानते थे फिर भी माता पार्वती को छेड़ने के लिए पूछा कि स्नान करने में बहुत देर लगा दी। तब माता ने कहा कि मायके वाले मिल गए थे जिसके कारण इतनी देर हो गई। फिर भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा कि आपके पास तो कुछ था भी नहीं स्नान के बाद प्रसाद में क्या लिया? इसके जवाब में माता ने कहा कि भाई और भावज ने दूध-भात बना रखा था उसी को ग्रहण कर सीधे आपके पास आई हूं।

इसके बाद भगवान शिव ने भाई भावज के यहां चलने को कहा ताकि उनके यहां बने दूध-भात का स्वाद चख सकें। तब माता ने अपने को संकट में फंसता देख मन ही मन भगवान शिव को याद कर अपनी लाज रखने को कही। इसके बाद नारद मुनि को साथ लेते हुए तीनों लोग नदी तट की तरफ चल दिए। वहां पहुंच कर देखा कि एक महल बना हुआ है। जहां पर लोगों की भारी भीड़ लगी हुई थी। इसके बाद जब वहां से तीनों लोग चलने लगे तो कुछ दूर चलकर भगवान शिव माता से बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूं।

माता पार्वती के कहने पर नारद जी वहां से माला लेने के लिए उस जगह दोबारा गए तो वहां पहुंचकर हैरान रह गए क्योंकि उस जगह चारों तरफ सन्नाटे के आलावा कुछ भी नहीं था। तभी एक पेड़ पर उन्हें भगवान शिव की रूद्राक्ष की माला दिखाई दी उसे लेकर वे लौट आए और भगवान शिव को सारी बातें बताईं। तब भगवान शिव ने कहा कि यह सारी माया देवी पार्वती की थी। वे अपने पूजन को गुप्त रखना चाहतीं थीं।

इसलिए उन्होंने झूठ बोला और अपने सत के बल पर यह माया रच दी। तब नारदजी ने देवी माता से कहा कि मां आप सौभाग्यवती और आदिशक्ति हैं। ऐसे में गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली और सार्थक होती है। तभी से जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पूजनकर मंगल कामना करेंगी। महादेव की कृपा से उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी। इसी कथा के चलते तभी से गणगौर उपवास को महिलाएं अपने पति से छिपाते हुए करती हैं।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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