आने वाले नए साल में इकॉनमी के सामने आने वाली है कई चुनौतियां
भारत की अर्थव्यवस्था सुधरने के लिए नया साल सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण
रोजगार बढ़ाने और करप्शन खत्म करने के नाम पर, मोदी सरकार के लिए 2019 लोकसभा चुनाव से पहले का साल 2018, सबसे चुनौतीपूर्ण साल रहने वाला है। 2019 में मई से पहले चुनाव वाले हैं जिसमें सरकार को देश के विकास पर रिपोर्ट कार्ड वोटरों को दिखाना होगा। पूरा देश अभी भी नोटबंदी और उसके बाद के जीएसटी के शॉक से अभी तक नहीं संभल पाया है। ऐसे में ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या 2018 में, मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था की स्पीड बढ़ पाएगी?
ग्रोथ 7% से कम रहेगी
नोटबंदी से अप्रैल-जून 2017 तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 5.7 प्रतिशत के साथ तीन साल में सबसे कम देखी गई थी। जुलाई-सितंबर 2017 में मामूली-सा कुछ फर्क आया और रिकवरी के साथ नार्मल प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2003-04 से 2011-12 के बीच जीडीपी ग्रोथ 7% से अधिक रही थी। इसका मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था क्षमता के मुताबिक अच्छा ग्रोथ और परफॉर्म नहीं कर पा रही है। वैसे वित्त वर्ष 2018 और 2019 के लिए जो अनुमान आए हैं, उनमें अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ने का दावा किया गया है।
इकनॉमिक रिकवरी जारी रहेगी
एक दशक से अधिक समय में भारत की सॉवरेन रेटिंग बढ़ाने वाली अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज’ का कहना है कि अगले साल मार्च में खत्म होने वाले वित्त वर्ष 2018 में ग्रोथ 7.5 प्रतिशत और 2019 में 7.7 प्रतिशत रहेगी। अमेरिकी बैंक गोल्डमैन सैक्स ने कहा है कि 2018 में ग्रोथ 6.4 प्रतिशत रहेगी, लेकिन अगले वित्त वर्ष में 8 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। वित्त वर्ष 2019 के लिए इन एजेंसियों ने 7.3 प्रतिशत से 8 प्रतिशत तक की जीडीपी ग्रोथ के अनुमान दिए हैं। इसका मतलब यह है कि साल 2018 में अर्थव्यवस्था की हालत इस साल से कुछ अच्छी रहेगी।
पिछले बुधवार ही सरकार ने 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लेने का ऐलान किया था। इससे वित्त वर्ष 2018 में 3.2% के वित्तीय घाटे के लक्ष्य के चूक जाने की आशंका बढ़ गई है। इससे बॉन्ड मार्केट से कर्ज लेना भी महंगा पड़ सकता है। इसका यह भी मतलब है कि रिजर्व बैंक के लिए लोन सस्ता करने की गुंजाइश कम हो जाएगी। कंपनियां लोन सस्ता होने पर निवेश बढ़ाती हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आती है।
बजट
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कम सीटें मिलने के बाद, बजट के लोक-लुभावन होने की अटकलें लग रही हैं। अगर इसके लिए अगले वित्त वर्ष के वित्तीय घाटा लक्ष्य में बदलाव किया जाता है तो उससे मार्केट पर बुरा असर होगा।
कच्चा तेल
कच्चे तेल की कीमत अभी 66 डॉलर प्रति बैरल के करीब है। इसके 70 डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। अगर ऐसा होता है तो इससे महंगाई दर में बढ़ोतरी होगी और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी बढ़ेगा। इससे भी लोन सस्ता करने के मामले में रिजर्व बैंक के हाथ बंध जाएंगे।
राज्यों में चुनाव
नए साल में कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित 8 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। इन आगामी चुनावों में BJP के परफॉरमेंस देखने लायक होंगी।
Have a news story, an interesting write-up or simply a suggestion? Write to us at info@oneworldnews.in