World Deaf Day: वर्ल्ड डेफ डे 2025, सुनने में अक्षम लोगों की चुनौतियाँ और समाधान
World Deaf Day, हर साल सितंबर के आखिरी रविवार को विश्व बधिर दिवस (World Deaf Day) मनाया जाता है।
World Deaf Day : विश्व बधिर दिवस, शिक्षा, रोजगार और समानता की ओर एक कदम
World Deaf Day, हर साल सितंबर के आखिरी रविवार को विश्व बधिर दिवस (World Deaf Day) मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य समाज में सुनने में अक्षम लोगों (Deaf Community) के प्रति जागरूकता फैलाना, उनके अधिकारों को सुनिश्चित करना और उनके जीवन में आने वाली चुनौतियों को समझना है।
वर्ल्ड डेफ डे का इतिहास
विश्व बधिर दिवस की शुरुआत साल 1951 में हुई थी। यह पहल वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ (World Federation of the Deaf – WFD) द्वारा की गई थी। इसकी शुरुआत उस समय हुई जब रोम (इटली) में पहली बार WFD की कांग्रेस आयोजित की गई। तब से यह दिवस हर साल अलग-अलग देशों में बड़े स्तर पर मनाया जाता है। भारत में भी इस दिन को विशेष महत्व दिया जाता है। यहां लाखों लोग सुनने में असमर्थ हैं और उनके लिए शिक्षा, रोजगार और सामाजिक समानता जैसे मुद्दे बेहद अहम हैं। वर्ल्ड डेफ डे इनके अधिकारों और जरूरतों को समझने का अवसर देता है।
इस दिन को मनाने का उद्देश्य
-बधिर लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना।
-उनके लिए बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
-सांकेतिक भाषा (Sign Language) को बढ़ावा देना और इसे शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाना।
-लोगों को यह समझाना कि सुनने में अक्षम होना किसी की क्षमता या प्रतिभा को कम नहीं करता।
-समाज में समानता और सम्मान की भावना पैदा करना।
भारत में बधिर समुदाय की स्थिति
भारत में अनुमानित 1.8 करोड़ से अधिक लोग सुनने में अक्षम हैं। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिन्हें समय पर सही इलाज या हियरिंग एड जैसी सुविधाएं नहीं मिल पातीं। इसके अलावा, समाज में जागरूकता की कमी और सांकेतिक भाषा का अभाव भी इनके लिए बड़ी बाधा बनता है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत में कई संस्थान और एनजीओ सक्रिय हुए हैं जो बधिर बच्चों और युवाओं को शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसके अलावा इंडियन साइन लैंग्वेज रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर (ISLRTC) जैसी संस्थाएं सांकेतिक भाषा को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं।
वर्ल्ड डेफ डे का महत्व
यह दिन केवल बधिर लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम किस तरह से हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार दे सकते हैं।
-यह दिन हमें समावेशी समाज (Inclusive Society) की ओर बढ़ने का संदेश देता है।
-यह हमें बधिर लोगों की प्रतिभा, कला और उपलब्धियों को पहचानने का अवसर देता है।
-यह दिन हमें याद दिलाता है कि टेक्नोलॉजी और शिक्षा की मदद से बधिर समुदाय को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है।
सुनने में अक्षम लोगों की उपलब्धियां
इतिहास गवाह है कि सुनने में अक्षम लोगों ने भी अपने दम पर बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। चाहे खेल का मैदान हो, कला और संस्कृति का क्षेत्र हो या फिर विज्ञान और तकनीक – बधिर लोग भी समाज की प्रगति में बराबरी से योगदान दे रहे हैं।
-कई बधिर खिलाड़ी ओलंपिक और पैरालंपिक स्तर तक पहुंचे हैं।
-सांकेतिक भाषा के जरिए कई कलाकार और लेखक अपनी कला दुनिया तक पहुंचा रहे हैं।
-भारत में भी कई ऐसे उदाहरण हैं जहां सुनने में अक्षम युवाओं ने शिक्षा और व्यवसाय में अपनी पहचान बनाई है।
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टेक्नोलॉजी और नई उम्मीदें
आज के समय में टेक्नोलॉजी ने बधिर लोगों के जीवन को आसान बना दिया है।
-हियरिंग एड्स और कॉक्लियर इम्प्लांट्स सुनने की क्षमता को बेहतर बना रहे हैं।
-मोबाइल और इंटरनेट ने सांकेतिक भाषा को सीखना और सिखाना आसान कर दिया है।
-सोशल मीडिया ने बधिर समुदाय को अपनी आवाज उठाने का बड़ा मंच दिया है।
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हमें क्या करना चाहिए?
वर्ल्ड डेफ डे पर हर नागरिक को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम समाज को अधिक समावेशी और संवेदनशील बनाने में अपना योगदान देंगे। स्कूलों और कॉलेजों में सांकेतिक भाषा को पढ़ाना चाहिए। कार्यस्थलों पर बधिर लोगों को रोजगार के अवसर देने चाहिए। बधिर लोगों के अधिकारों और जरूरतों पर सरकार और समाज दोनों को मिलकर काम करना चाहिए। आम लोगों को यह सीखना चाहिए कि वे बधिर व्यक्तियों के साथ संवाद के लिए धैर्य और सहयोग दिखाएं। वर्ल्ड डेफ डे केवल एक जागरूकता दिवस नहीं है, बल्कि यह हमें यह याद दिलाता है कि सुनने में अक्षम लोग भी हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्हें बराबरी का दर्जा, सम्मान और अवसर देना हमारी जिम्मेदारी है। इस दिन हम सभी को यह सोचना चाहिए कि हम बधिर समुदाय को समाज की मुख्यधारा से कैसे जोड़ सकते हैं और उनके जीवन को और बेहतर बनाने में क्या योगदान दे सकते हैं।
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