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क्यों महिला सुरक्षा अभी भी एक विचारणीय विषय है?

महिला सुरक्षा


महिला सुरक्षा” एक ऐसा संवेदनशील विषय है जिस पर जितनी चर्चा की जाए कम है। महिला यानि स्त्री जो काली, दुर्गा के रूप में पूजी जाती है और सभी की रक्षा करते हुए दुष्टों का संहार करती है – आज उसी की सुरक्षा की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये विचारणीय प्रश्न है।

हम स्त्रियोचित, धर्म, संस्कार निभाने की बात स्त्रियों को कह तो सकतें है कि वो इसका पालन करें और अपने दायरे में ही रहें परंतु छोटी-छोटी अबोध बालिकाओं जिन्होने अभी बोलना, सुनना और समझना ही नहीं सीखा, वे पुरुषों की घृणित मानसिकता का शिकार होती है, तो उन संसकारों का क्या करेंगे? इन दिनों महिलाओं के साथ बलात्कार की बढ़ती घटनाओं ने सभी को झकझोर कर रख दिया है।

“निर्भया” हो या “गुड़िया”, ऐसा लगता है मानो सभी हमारे ही बीच वीरान आँखों से पुकारती हमसे इंसाफ की भीख मांगती दम तोड़ रही है और हम रैलियाँ निकालते, मोमबत्तियाँ जलाते, हाय-हाय करते अपने आप को माफ करते जा रहें है कि हमने इंसाफ के लड़ाई तो की। पर निष्कर्ष? कुछ नहीं। हम जितना ज्यादा प्रगतिवादी होते जा रहें हैं उतनी ही ज्यादा हमारी मानसिकता कुंठित और संकुचित होती जा रही है। शहर हो या गाँव, कहीं भी महिलाओं को अपने सुरक्षित होने का अहसास नहीं होता। यदि गहराई से सोचा जाये तो कौन इन सब बातों का जिम्मेदार है? जिम्मेदार केवल हम सब  ही हैं।

क्यों महिला सुरक्षा अभी भी एक विचारणीय विषय है?
महिला सुरक्षा

एक ओर तो हम स्त्रियों की पूजा करतें हैं तो दूसरी ओर उन्ही से पुत्र प्राप्ति की कामना करतें हैं। पुत्र होने पर उन्ही को तिरस्कृत कर पुत्र की सेवा में लगे रहते हैं। इसीलिए पुत्र यानि पुरुष के मन में शुरू से ही स्त्रियों के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव आ ही नहीं पाता है। यही मानसिकता लिए वे बड़े होते हैं व पीढ़ी दर पीढ़ी इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।

आज जरूरत है इस सोच को बदलने की। सर्वप्रथम घर से ही स्त्रियों के प्रति आदर व सम्मान की भावना की शुरुआत होनी चाहिए। महिलाओं की सुरक्षा तो सब जगह है और कहीं भी नहीं है। सिर्फ हमारी सोच और व्यवहार ही उसे बनाता और बिगाड़ देता है। आज हम जितना भी महिलाओं को अधिकार दे दे पर यदि हम मन से स्त्रियों का सम्मान नहीं करतें हैं तो उन अधिकारों का कोई औचित्य ही नहीं है।

फिर भी महिलाएँ अपने आप से सुरक्षा के कुछ ऐसे इंतजाम सकतीं हैं जिससे वे स्वयं सुरक्षित हो सकें, जैसे अपने आसपास के वातावरण पर नज़र रखें, संदिग्ध व्यक्तियों पर पैनी दृष्टि रखेँ और उनको अपने घर के आसपास फटकने न दे और छोटी बच्चियों को घर में व घर के आस पास अकेला न छोड़े। लड़कियों को चाहिए कि वो अपने पास कुछ ऐसी सामग्री हमेशा साथ रखें जैसे, पेपर स्प्रे , छोटा चाकू, पिन इत्यादि। माता पिता का दायित्व है कि वो अपने बच्चों को अच्छा ज्ञान दें, संस्कार दें जिससे उनमें स्त्रियॉं के प्रति अच्छे विचार रहें और उनकी रक्षा करने का भाव रहे। सरकार की ओर से भी सख्त कानून बनने चाहिए जिसमें बचाव का सीधा रास्ता न हो।

क्यों महिला सुरक्षा अभी भी एक विचारणीय विषय है?
लड़कियो को शिक्षित करे और उन्हें सिखाये

जगह-जगह पुलिस बीट बॉक्स लगने चाहिये व उनमें 24 घंटे पुलिस कर्मी तैनात रहने चाहिए। पीसीआर वैन को लगातार गश्त लगाते रहना चाहिए, सुनसान इलाकों में बिजली की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। खंडहर, वीरान पड़ी इमारतों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए। किसी भी प्रकार की शिकायत पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिये। लड़कियों को प्राथमिक शिक्षा से ही अपनी सुरक्षा के उपाय सिखाये जाने चाहिए, उन्हे जूडो-कराटे, टाइक्वांडो आदि की ट्रेनिंग मिलनी चाहिए।

सबसे बड़ी बात, घर के बड़े बुजुर्ग उनको मानसिक रूप से शक्तिशाली बनाए जिससे उनमें आत्म विश्वास जागे। महिला सुरक्षा के लिए सम्मेलन आयोजित करने से ज्यादा उनका ध्यान रखने की आवश्यकता है। ये जरूरी नहीं कि स्त्रियाँ घर के अंदर ही सुरक्षित हैं। उन्हे तो केवल इस आश्वासन की जरूरत हैं कि वो जहां कहीं भी जाएँ वहाँ किसी की गिद्ध दृष्टि उन पर न पड़े। केवल अपने आत्मविश्वास के साथ वो हर दिशा में कदम बढ़ा सकें।

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