कैसा होता है अपने घर से दूर विदेश में रहना
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घर से दूर घर
कितना अलग होता है अपने ही घर से दूर रहना। कितना मुश्किल होता है, ये कोई नहीं समझ सकता। बाहरी दुनिया हमें बहुत आकर्षित करती है। पर कोई यह समझ ही नहीं सकता कि वहां बसना और अपनी ही एक अलग दुनिया बनाना इतना आसान नहीं होता। वहां की चकाचोंध और रंगीन दुनिया हमारी सादी जिंदगी से बहुत अलग होती है। वहां जाकर हम भले ही स्वतंत्र हो जाते हो, पर जिन मुश्किलों का सामना हमें करना पड़ता है वह घर की याद जरूर दिलाती है। आजकल की इस युवा पीढ़ी पर बाहर जाकर पढ़ाई करने का एक अलग ही जुनून है। पर उनका ये जूनून गलत भी कहाँ है। अब जहाँ इंसान और उसके हुनर की क़द्र होगी, उसी ओर ही तो वो भागा चला जाएगा। पर ये कैसे कहा जा सकता है कि विदेशों में हमारी क़द्र, हमारे देश से ज़्यादा होगी?
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बाहर रह रहे कुछ भारतीयों से हमारी बात हुई तो उनके विचार भी यही झलकाते थे की वहाँ उनका भविष्य ज़्यादा बेहतर होगा। मेलबोर्न में रह रहे मनन से बात-चीत में उन्होंने बताया कि, ‘ मैं यहां पढ़ाई करने आया हूँ। मैंने मेलबोर्न सोचा नहीं था वो बस हो गया। पर देखा जाए तो यहाँ काम मिलने का अवसर ज़्यादा है। यही नहीं, यहाँ किसी भी व्यक्ति की इज़्ज़त ज़्यादा है और यहाँ हर किसी को एक ही नज़रिए से देखा जाता है। यहाँ कोई भेद भाव नहीं होता। यहाँ मेहनत को सराहा जाता है।‘ जब हमने उनसे पढाई के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि,’यहाँ की पढाई भारत से अलग है। यहाँ प्रैक्टिकल पढाई ज़्यादा होती है।’
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वही ऑस्ट्रेलिया में अपने परिवार के साथ रह रही देवशी पालीवाल का कहना है कि, ‘ यहां लोगों के लिए रहना ज्यादा बेहतर है। उनको उनके काम का फायदा मिलता है। ये बहुत ही शाँत जगह है। और यहाँ रह रहे लोगो को काम और तनख्वा अच्छा मिल जाते है और यहाँ भारत या अमेरिका की तरह कोई मारा मारी नहीं है। यहाँ पर शिक्षा और कार्य क्षेत्र में कोई स्पर्धा नहीं है। तो इसलिए किसी को भी उनकी काबिलियत के अनुसार कॉलेज में दाखिला मिल जाता है।‘
दोनों का ही मानना था कि विदेश में रहना और एक नयी ज़िंदगी की शुरुआत करने में थोड़ी मुश्किल होती है। पर ये मुश्किल ज़्यादा समय तक नहीं रहती है। अब बात तो सही है। पर सिक्के का अगर दूसरा पहलु देखा जाए तो क्यों लोग भारत छोड़ना चाहते है? क्यों हमारे देश में, हमारी ही युवा पीढ़ी को वो सुविधाएं और वो तनख्वा नहीं मिलती जिनके वो हक़दार होते है? अब घर से दूर एक घर तो बन जाता है, पर फिर भी विदेश कभी अपना देश नहीं बन पाता। और विदेश में रहकर भी, भारत जैसी रौनक नहीं मिलती पर उस जगह में एक अपनापन सा ज़रूर हो जाता है।