Reels सिर्फ मनोरंजन नहीं, दिमाग की सेहत भी बिगाड़ रही हैं
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया का क्रेज चरम पर है, और खासतौर पर इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक पर दिखने वाली Reels ने युवाओं से लेकर बच्चों तक को अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
Reels : कुछ सेकंड का मज़ा, दिमाग पर भारी बोझ
सोचिए, आप थके हुए घर लौटे हैं। दिनभर की भागदौड़ के बाद एक कप चाय और फोन हाथ में लेकर सोचते हैं “बस 5 मिनट इंस्टा स्क्रॉल कर लेते हैं। लेकिन जब सिर उठाते हैं, तो 5 मिनट कब 50 मिनट बन गए, पता ही नहीं चलता। अब ये कहानी सिर्फ आपकी नहीं है। शायद ही आज कोई हो जिसे इंस्टाग्राम, यूट्यूब या टिकटॉक की रील्स की आदत न लगी हो। ये छोटी-छोटी क्लिप्स दिखने में भले ही मासूम लगती हों, लेकिन इनका असर हमारे दिमाग पर किसी धीमे ज़हर से कम नहीं है। और ये कोई डराने वाली बात नहीं, बल्कि हाल की एक साइंटिफिक स्टडी से साबित हुआ सच है।
Reels देखने में भले ही मजा आता हो, लेकिन यह लत बन जाए तो इसके दुष्परिणाम गंभीर हो सकते हैं। मनोरंजन जरूरी है, लेकिन उसकी आड़ में मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना किसी भी तरह समझदारी नहीं है। यह समय है कि हम रील्स की चकाचौंध से बाहर निकलें और अपने मस्तिष्क को वह सुकून और संतुलन दें जिसकी उसे सख्त जरूरत है।
डिजिटल ड्रग’ बनती रील्स
विशेषज्ञों का मानना है कि रील्स आज के समय की ‘डिजिटल ड्रग’ बन चुकी हैं। इनका एल्गोरिदम इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यूजर एक के बाद एक वीडियो देखते जाए, और बार-बार ऐप खोलने की आदत विकसित कर लें। इस ‘इंफिनिटी स्क्रॉल’ फीचर के कारण व्यक्ति को यह पता ही नहीं चलता कि कब 5 मिनट का मनोरंजन 2 घंटे की आदत में बदल गया।
किशोरों और युवाओं पर गंभीर प्रभाव

स्टडी में यह भी सामने आया कि किशोर और युवा सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। किशोरावस्था में दिमाग विकास की अवस्था में होता है, और इस दौरान लगातार डिजिटल ओवरलोड से मस्तिष्क की विकास प्रक्रिया पर विपरीत असर पड़ता है। इसके कारण एकाग्रता की कमी, पढ़ाई में मन न लगना, आत्मसम्मान में गिरावट और depression जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं।
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दिमाग को लगती है तेज़ी की लत
रिसर्च में यह भी पाया गया कि लगातार शॉर्ट वीडियो देखने वालों के दिमाग में ‘रिवॉर्ड सिस्टम’ की एक्टिविटी तो बढ़ जाती है, लेकिन इमोशन्स, फोकस और सेल्फ-कंट्रोल से जुड़े हिस्सों की कनेक्टिविटी कमजोर होने लगती है। यानि रील्स जितना एंटरटेन करती हैं, उतना ही आपका दिमाग धीरे-धीरे अपनी रफ्तार खोने लगता है।
रील्स और नशा: फर्क सिर्फ ज़रिया का
प्रोफेसर कियांग वांग, जिन्होंने इस स्टडी का नेतृत्व किया, बताते हैं कि रील्स का असर उन लोगों जैसा है जो शराब या जुए के आदी होते हैं।
- ध्यान भटकना
- तुरंत संतुष्टि की तलाश
- खुद पर कंट्रोल की कमी
- छोटी-छोटी बातें भूलना
ये सभी लक्षण अब मोबाइल स्क्रीन से भी जुड़े पाए जा रहे हैं।
नींद भी लेती है ‘स्क्रॉलिंग’ से मात

आपने कभी सोचा है कि देर रात तक फोन देखने के बाद नींद क्यों नहीं आती? वजह है, मोबाइल की स्क्रीन लाइट और तेज़ विजुअल्स। ये हमारे दिमाग को ‘आराम’ का सिग्नल नहीं जाने देते। मेलाटोनिन (नींद लाने वाला हार्मोन) बनने में देरी होती है और नतीजा
- सोने में मुश्किल
- सुबह उठते वक्त भारीपन
- दिनभर थकावट और चिड़चिड़ापन
यह सब सीधा असर डालता है आपके दिमाग के हिप्पोकैम्पस पर, जो आपकी याददाश्त और सोचने की क्षमता को नियंत्रित करता है।
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तो अब क्या करें?
Reels देखना कोई पाप नहीं है। लेकिन जब आदत बन जाए, तब सतर्क होना ज़रूरी है।
- खुद को एक तय समय दें “दिन में सिर्फ 15 मिनट रील्स”
- ‘स्क्रीन टाइम’ ट्रैक करें
- सोने से एक घंटे पहले फोन से दूरी बनाएं
किताबें, म्यूजिक, वॉक या परिवार से बात करें, ये सब असली रिवॉर्ड हैं,Reels हमें हंसाती हैं, मनोरंजन देती हैं,इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन हर बार जब आप ‘एक और’ रील पर उंगली घुमाते हैं, तो याद रखिए,आपका दिमाग एक नई लत की ओर खिंच रहा है। मनोरंजन ज़रूरी है, लेकिन उसका बैलेंस बनाए रखना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है।
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