क्या है National Flag Day का इतिहास और क्यों मनाया जाता है
भारत में National Flag Day हर साल 22 जुलाई को मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन सन् 1947 में संविधान सभा ने भारत के राष्ट्रीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में अपनाया था।
National Flag Day का महत्व और ऐतिहासिक संदर्भ
National Flag Day:राष्ट्रीय ध्वज दिवस हर साल 22 जुलाई को मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन सन् 1947 में भारत की संविधान सभा ने वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज को आधिकारिक रूप से अपनाया था। यह दिन न केवल हमारी आज़ादी की ओर बढ़ते कदमों की याद दिलाता है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता, गर्व और स्वतंत्रता का प्रतीक भी है। तिरंगा केवल एक झंडा नहीं, बल्कि देशभक्ति, बलिदान और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है, जो हमें अपने कर्तव्यों और देश के प्रति जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।
राष्ट्रीय ध्वज दिवस क्यों मनाया जाता है?
भारत के तिरंगे झंडे का सम्मान करना और उसके इतिहास को याद करना। देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देना। उन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करना जिन्होंने इस ध्वज के नीचे आज़ादी की लड़ाई लड़ी। झंडे के रंगों और प्रतीकों (अशोक चक्र) के पीछे छिपे मूल्यों – जैसे साहस, शांति, समृद्धि और धर्म – को समझना और अपनाना।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का डिज़ाइन
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज, जिसे तिरंगा कहा जाता है, हमारे देश की पहचान, गर्व और एकता का प्रतीक है। इसका डिज़ाइन तीन क्षैतिज पट्टियों से मिलकर बना है – सबसे ऊपर केसरिया रंग, बीच में सफेद रंग और नीचे हरा रंग होता है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र होता है, जिसमें 24 तीलियाँ होती हैं। यह चक्र सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है और यह निरंतर प्रगति और धर्म का प्रतीक है।
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ऐतिहासिक संदर्भ
National Flag Day का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। देश की आज़ादी से पहले विभिन्न क्रांतिकारियों और संगठनों द्वारा कई प्रकार के झंडे अपनाए गए, जो स्वतंत्रता की भावना और संघर्ष का प्रतीक बने। सबसे पहला ज्ञात राष्ट्रीय झंडा 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में फहराया गया था, जिसमें तीन रंग—हरा, पीला और लाल थे। इसके बाद 1921 में आंध्र प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने महात्मा गांधी को एक नया झंडा प्रस्तुत किया, जिसमें दो रंग (लाल और हरा) थे और बीच में चरखा था। 1931 में एक नया डिज़ाइन अपनाया गया जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियाँ और चरखा शामिल था। यह डिज़ाइन वर्तमान तिरंगे का आधार बना।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का महत्व
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज, जिसे ‘तिरंगा’ कहा जाता है, देश की स्वतंत्रता, अखंडता और गौरव का प्रतीक है। यह केवल एक झंडा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं, संघर्षों और बलिदानों का प्रतिनिधित्व करता है। तिरंगे का प्रत्येक रंग और मध्य में स्थित अशोक चक्र देश की मूलभूत विचारधारा को दर्शाता है – केसरिया रंग साहस और बलिदान का, सफेद रंग शांति और सच्चाई का, हरा रंग समृद्धि और जीवन के प्रति सम्मान का प्रतीक है, जबकि अशोक चक्र प्रगति, न्याय और नैतिकता का संदेश देता है। ध्वज का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। भारत सरकार द्वारा निर्धारित ‘ध्वज संहिता’ के अनुसार, ध्वज को फहराते समय उसकी गरिमा, मर्यादा और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था, जिसमें तीन रंग — हरा, पीला और लाल — थे और उस पर सूर्य, चंद्रमा तथा आठ कमल के फूल बनाए गए थे। 1921 में पिंगली वेंकैया ने महात्मा गांधी के सुझाव पर एक नया झंडा प्रस्तावित किया जिसमें दो रंग — लाल (हिंदुओं का प्रतीक) और हरा (मुसलमानों का प्रतीक) थे तथा केंद्र में चरखा था जो आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। 1931 में एक अधिक सर्वमान्य डिज़ाइन सामने आया जिसमें केसरिया, सफेद और हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियाँ थीं और बीच में चरखा था। यह डिज़ाइन बाद में हमारे राष्ट्रीय ध्वज का आधार बना। अंततः 22 जुलाई 1947 को स्वतंत्रता से ठीक पहले संविधान सभा ने वर्तमान स्वरूप के तिरंगे को आधिकारिक राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इस ध्वज में चरखे की जगह अशोक चक्र को केंद्र में स्थान दिया गया, जिसे सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया है। यह चक्र धर्म, न्याय और निरंतर प्रगति का प्रतीक है। इस प्रकार भारतीय ध्वज का इतिहास न केवल झंडे के डिज़ाइन में बदलाव की कहानी है, बल्कि यह राष्ट्र की चेतना और आज़ादी के संघर्ष का भी प्रतीक है।
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