क्या आपका बच्चा भी करता है आपसे हर बात पर बहस, तो ऐसे ला सकते हैं उसमें बदलाव
जाने कैसे लाए जिद्दी किस्म के बच्चों में बदलाव
जब दो लोग शादी के बंधन में बंधते है तो उनके जीवन में कई तरह के बदलाव होते हैं। इस दौरान उनके कई नए रिश्ते जुड़ते हैं। नया जोड़ा कई नए लोगों से मिलता है और एक नए बंधन में बंधता है। इस सफर में उनका अच्छे और बुरे दोनों तरीके के लोगों से सामना होता है। शादी के बाद ही अक्सर लोगों को जिंदगी का असल मतलब समझ मेंआता है। शादी के बाद उनकी कई तरह से जिम्मेदारियां भी बढ़ती है। जैसे उनके जीवन में एक बच्चे का आना। इससे दोनों लोग को माता पिता बनने का सुख तो मिलता है लेकिन साथ ही साथ उनको बहुत सारी जिम्मेदारियां भी मिलती है। बच्चा होने के बाद कपल बच्चे के लिए हर एक चीज करते हैं, उसकी हर एक जरूरतों का ध्यान रखते हैं। उससे बहुत ज्यादा प्यार करते है लेकिन कई बार इस लाड़ प्यार के चक्र में बच्चे काफी जिद्दी किस्म के हो जाते है और हर बात पर अपने माता पिता से बहस करने लगता है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आप कैसे अपने बच्चों में बदलाव ला सकते हैं।
बच्चों को सही गलत में फर्क बताएं: आपको बतौर माता पिता हमेशा अपने बच्चे को ये समझाना चाहिए कि सही क्या है और क्या गलत है। जैसे अगर कभी आपका बच्चा किसी गलत काम को करने के लिए बहुत ज्यादा जिद्द करता है, तो आपको उसे गुस्से की जगह प्यार से समझाना चाहिए कि आप उसे उस काम के लिए क्यों रोक रहे हैं, वो काम करने से क्या गलत हो सकता है।
बच्चे को बोलने का मौका जरूर दें: ये बात तो अपने भी जरूर सुनी होगी कि स्वस्थ तर्क हमेशा अच्छा ही होता है। इसलिए हमेशा आपको अपने बच्चे को बोलने का मौका देना चाहिए। इससे बड़ा होकर वो समझेगा कि उससे किससे क्या बात कहनी है और क्या नहीं। साथ ही साथ उसकी सोच में बदलाव आएगा।
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बच्चे को बात समझाएं: आपने देखा होगा कि कई बच्चे अपने माता पिता की पूरी बात नहीं सुनते है और पहले ही अपने माता पिता से बहस करना शुरू कर देते हैं, जो की एक गलत आदत है ऐसे में बतौर माता पिता आपको अपने बच्चे को सबसे पहले अपनी समझना चाहिए। क्योकि अगर एक बार बच्चा आपकी बात समझ जाता है तो वह बहस करना बंद कर देता है।
बच्चे की बात को सुनें: अपनी बात बोलने के बाद आपको हमेशा अपने बच्चे की बात को भी सुनना चाहिए। आपने देखा होगा कि कुछ माता पिता अपनी बात बोल कर अपने बच्चे की आवाज को दबाने की कोशिश करते है। जिसे धीरे धीरे बच्चे में नकारात्मक भावना पैदा हो सकती है। इसलिए जरूरी होता है कि अपनी बात बोलने के साथ साथ बच्चे की बात को भी ध्यान से सुने।
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