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Gayatri Devi Love Story: 12 साल की उम्र में शादीशुदा महाराजा से हो गया था प्यार, इंदिरा गांधी से गायत्री देवी ने ली थी टक्कर

Gayatri Devi Love Story: हम बात कर रहे हैं राजस्थान के राजघरानों की राजनीति की। बात है 1962 के लोकसभा चुनावों की। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे मोहनलाल सुखाड़िया। वह समझ रहे थे कि कांग्रेस की हालत पतली है और महारानी गायत्री देवी ही उबार सकती हैं।

Gayatri Devi Love Story: पीटी नेहरू से भिड़ गईं थीं गायत्री देवी, शादीशुदा महाराज को दे बैठीं थी अपना दिल, पढ़ें रोचक कहानी

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वह दुनिया की सबसे सुंदर 10 महिलाओं में से एक चुनी गई थीं। 12 साल की उम्र में चीते का शिकार किया। 16 साल की उम्र में एक बड़े राजघराने की महारानी बन गईं। सबसे महंगा फ्रेंच इत्र इस्तेमाल करती थीं। इटली की सबसे महंगी सिगरेट का आनंद लेतीं। सिगरेट केस सोने का था। शिफॉन की सबसे महंगी साड़ी पहनतीं। चुनाव मैदान में उतरीं तो गिनीज बुक में नाम दर्ज करवा लिया। वो लंदन में पैदा हुईं। विदेशों में पढ़ीं। जब वह छोटी थीं तभी उन्हें एक ऐसे शख्स से प्यार हो गया, जिसकी दो शादियां हो चुकी थीं।

उन्होंने दो-दो प्रभावशाली प्रधानमंत्री से पंगा लिया और पांच महीने जेल में बिताए। जीवन के अंतिम दौर में अपना किला बचाने के लिए झुग्गी-झोपड़ी वालों के साथ सड़क पर बैठना पड़ा। वह चाहतीं तो आसानी से मुख्यमंत्री बन सकती थीं, लेकिन अपने महाराजा का मान रखा और इस बहाने अपनी प्रजा का भी।

गायत्री देवी ही कांग्रेस को उबार सकती

हम बात कर रहे हैं राजस्थान के राजघरानों की राजनीति की। बात है 1962 के लोकसभा चुनावों की। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री थे मोहनलाल सुखाड़िया। वह समझ रहे थे कि कांग्रेस की हालत पतली है और महारानी गायत्री देवी ही उबार सकती हैं। उस समय गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो चुकी थीं। विधानसभा चुनावों में 154 सीटों में से 36 सीटें स्वतंत्र पार्टी को दिलवा चुकी थीं महारानी।

मां-बाप की मर्जी के बगैर इंदिरा देवी ने की शादी

गायत्री देवी ना केवल खूबसूरत थीं बल्कि चार्मिंग भी थीं। उनकी मां इंदिरा देवी की गिनती खुद अपने जमाने की सुंदर महिलाओं में होती थी। इंदिरा देवी की शादी जिस तरह कूच विहार के प्रिंस से हुई थी, वो अपने आप में एक सनसनी थी। क्योंकि इंदिरा देवी ने ग्वालियर के सिंधिया से अपनी शादी तोड़कर मां-बाप की मर्जी के बगैर शादी रचाई थी। उनकी बेटी भी उसी ओर बढ़ने वाली थी लेकिन उनका तरीका अलग था। इंदिरा देवी जितनी सुंदर थीं, उतनी ही स्टाइलिश और तड़क भड़क वाली भी थीं।

सिल्क-सिफॉन साड़ियों को फैशन में लाने का श्रेय इंदिरा को

यूरोप में उनकी पार्टियों और दोस्ती के चर्चे होते थे। माना जाता है कि देश में सिल्क और सिफॉन की साड़ियों को फैशन में लाने का श्रेय इंदिरा देवी को ही जाता है। इंदिरा देवी की सगाई ग्वालियर के सिंधिया घराने में हुई थी, लेकिन वो इस बीच कूचबिहार के युवराज जितेंद्र के प्यार में पड़ गईं। उन्होंने न केवल ग्वालियर में राजघराने में शादी तोड़ी बल्कि अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर इंग्लैंड कूच बिहार के युवराज से शादी रचाई।

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तीसरी और सबसे छोटी संतान थीं गायत्री देवी

इंदिरा देवी के तीन बच्चे थे। एक बेटा और दो बेटियां। गायत्री देवी तीसरे नंबर की संतान थीं। वह 1919 में लंदन में पैदा हुईं थीं। तब उनका नाम आयेशा रखा गया। गायत्री देवी के तौर पर नया नाम तो उन्हें शादी के बाद मिला था। जब गायत्री देवी बड़ी होने लगीं तो ये तय हो चुका था कि वह अपनी मां की ही तरह बेहद सुंदर महिला बनने वाली हैं। गायत्री को बचपन से ही खुली जिंदगी मिली थी। वह टाम बॉय की तरह थीं, जिसे हार्स राइडिंग और शिकार से प्यार था।

पिता की मौत के बाद लगा झटका

वह जब 12 साल साथ की थीं तब उन्होंने पहली बार पैंथर का शिकार किया था। गायत्री को ना किसी तरह का कोई अभाव था और ना ही कोई दिक्कत थी। हालांकि उनके पिता पक्ष में शराब की लत बुरी तरह घुसी हुई थी। इसी की अधिकता से गायत्री देवी के चाचा और राज्य के प्रमुख की मृत्यु हुई। फिर उनके पिता भी इसी के शिकार हुए। इसी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। गायत्री देवी तब कम उम्र की ही थीं। पिता की मौत के बाद उन्हें उनके प्यार की जरूरत महसूस होती थी।

12 साल की उम्र में हुआ प्यार

आपको बता दें कि जब गायत्री 12 साल की थीं तो मां इंदिरा देवी ने कोलकाता में फैमिली एस्टेट में जयपुर के आकर्षक महाराजा मानसिंह को आमंत्रित किया। 21 साल के मानसिंह का निकनेम जय था। वह पोलो के जानेमाने खिलाड़ी थे। गायत्री ने 12 साल की उम्र में जब हैंडसम मानसिंह को देखा तो वह उनके ऊपर फिदा हो गईं। उन्हें जय को देखकर कुछ कुछ होने लगा था। मतलब उन्हें प्यार हो गया था।

महाराजा ने सुंदर किशोरी को किया नोटिस

हालांकि ये उनका एकतरफा प्यार ही था। गायत्री उनके इर्दगिर्द मंडराने लगीं। इस तरह दिखाने की कोशिश करने लगीं कि वह बड़ी हो चुकी हैं। खैर इस दौरे में मानसिंह यानि जय ने गायत्री को किसी बच्चे जैसा ट्रीट किया। अगले सीजन में मानसिंह फिर कोलकाता आए। फिर वह गायत्री के परिवार के मेहमान बने। गायत्री हालांकि अब भी टीनएज में ही थीं। लेकिन महाराजा ने अबकी बार बड़ी होती इस सुंदर किशोरी को नोटिस किया।

साड़ी पहनकर डिनर के लिए गईं

पूरे ट्रिप में जय की आंखें उन्हीं पर थी। जब उन्होंने कोलकाता में इंडिया पोलो एसोसिएशन चैंपियनशिप जीती, तो इंदिरा देवी ने दोस्ती के तौर पर उनसे कुछ भी मांगने को कहा। तो उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि आज रात में उनके साथ डिनर में गायत्री साथ रहें। इससे इंदिरा देवी खिन्न तो जरूर हुईं लेकिन वादा कर लिया था। गायत्री को साड़ी पहनाकर डिनर के लिए उस रात राजा मानसिंह के साथ भेजा गया।

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जयपुर में पहले से थीं दो रानियां

अभी तो आगे इस प्रकरण में बहुत कुछ और भी होना था। ये तो बस एक शुरूआत थी। ये डिनर कोलकाता के मशहूर रेस्टोरेंट में था। ऐसा लगता है कि 13 साल की इस किशोरी पर युवा महाराजा रीझ चुका था। हालांकि जयपुर में उसकी दो रानियां पहले से मौजूद थीं। उसकी पहली शादी मरुधर से तब हो गई थी जब वह केवल 12 साल का था। तब पहली पत्नी 24 साल की थी। दूसरी बीवी पहली की भांजी थी।

जयपुर घूमने गया गायत्री और उनका परिवार

हालांकि जय को गायत्री के साथ कुछ मुलाकातों में अंदाज हो गया कि उनकी नई प्रेमिका बेशक उम्र में छोटी हो लेकिन आज्ञाकारी तो नहीं रहने वाली। एक बार जब गायत्री और उनका परिवार जयपुर घूमने गया तो जय ने तय किया वो गायत्री को अकेले हार्स ट्रिप पर ले जाएंगे। जब उन्होंने गायत्री को हार्स राइडिंग के नए टिप्स दिए तो उन्होंने इसे अनसुना कर दिया। हालांकि दोनों एक दूसरे के प्यार में डूब चुके थे।

इंदिरा देवी ने रिश्ते के लिए मना कर दिया

गायत्री जब 14 की हो गईं तो महाराजा ने उसकी मां से कहा कि वह कुछ और बड़ी होने पर गायत्री से शादी करना चाहते हैं। तब इंदिरा देवी ने इस प्रस्ताव की हंसी उड़ाते हुए खारिज कर दिया। दोनों परिवारों में बड़ा अंतर तो था ही। गायत्री का परिवार बहुत ओपन था तो मानसिंह का परिवार बेहद परंपरागत और पर्दा मानने वाला था। ऐसे में इंदिरा देवी ने रिश्ते के लिए मना कर दिया।

पर्दे में रहती थीं जय की दोनों पत्नियां

जय की पहली दोनों पत्नियां राजमहल के अनुशासन के तहत पर्दे में रहती थीं। जबकि गायत्री का लालन-पालन इंडीपेंडेंट तरीके से हुआ था। दकियानूसी परंपराओं में वह कतई यकीन नहीं रखती थीं। इंदिरा देवी इसलिए भी अपनी बेटी को जयपुर में ब्याहना नहीं चाहती थीं क्योंकि वो नहीं चाहती थीं कि वह भी जयपुर के पर्दे और अन्य परंपराओं का पालन करे। उन्हें ये भी लगता था कि उनकी बेटी कभी ऐसा नहीं कर पाएगी।

1962 में पीटी नेहरू से ले लिया था पंगा

1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद संसद में वह प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से उलझ गई थीं। उनका कहना था, ‘अगर आपको किसी चीज़ के बारे में कुछ पता होता, तो आज हम इस झंझट में नहीं पड़ते।’ 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने गायत्री देवी से कांग्रेस में शामिल होने का आग्रह किया था। फिर पांच साल बाद 1967 में वह इंदिरा गांधी से उलझ गईं।

गायत्री देवी को कह दिया था कांच की गुड़िया

दरअसल गायत्री देवी की माता का नाम भी इंदिरा राजे था। वह इंदिरा गांधी के साथ शांति निकेतन में पढ़ चुकी थीं। इंदिरा गांधी ने तब संसद में गायत्री देवी को किसी संदर्भ में कांच की गुड़िया कह डाला था। यह वो साल था, जब राजस्थान विधानसभा में स्वतंत्र पार्टी के 49 विधायक जीतकर आए और इंदिरा गांधी की कांग्रेस के विकल्प का दावा मजबूती से पेश किया। कहा जाता है कि दोनों के बीच तल्खी तब और बढ़ी, जब इंदिरा गांधी ने राजा-महाराजाओं के प्रिवी पर्स ख़त्म कर दिए।

पांच महीने तिहाड़ जेल में रहीं

आपातकाल के समय गायत्री देवी को गिरफ्तार कर पांच महीने तिहाड़ जेल में रखा गया। तब कहा जाता है कि जयपुर राजघराने के जयगढ़ क़िले में इंदिरा गांधी के इशारे पर फ़ौज भेजी गई थी और वहां गड़ा हुआ ख़ज़ाना भी शायद हाथ लगा था। हालांकि जयपुर राजघराने ने बाद में कहा था कि सोने-चांदी के कुछ पुराने सिक्के ही खुदाई में मिले थे।

स्वतंत्र पार्टी का लगातार हो रहा था विस्तार

कहा जाता है कि इंदिरा गांधी को गायत्री देवी की संसद में मौजूदगी बर्दाश्त नहीं थी। खूबसूरत, बुद्धिमान, राजसी ठाठ-बाट और ज़िंदगी जीने का शाही अंदाज़- यह सब इंदिरा गांधी को अखरता था। उस पर स्वतंत्र पार्टी का लगातार विस्तार हो रहा था। महारानी गायत्री देवी स्वतंत्र पार्टी का सबसे चमकता दमकता सितारा थीं और पार्टी का चुनाव चिह्न था तारा। इंदिरा गांधी इसे चुनौती के रूप में देखने लगीं।

जेल से छूटने पर राजनीति से कर लिया किनारा

खैर, तिहाड़ जेल से छूटने के बाद गायत्री देवी ने राजनीति से किनारा कर लिया। यह एक चौंकाने वाला फैसला था और रहस्यमय भी। कूच बिहार राजघराने की राजकुमारी, जयपुर की महारानी और फिर राजमाता गायत्री देवी का हमेशा झुकाव राजघरानों की राजनीति पर ही रहा। ख़ुद तो वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं या यूं कहा जाए कि कांग्रेस में जाकर मुख्यमंत्री नहीं बनने की अघोषित कसम ने उन्हें इस पद से दूर रखा, लेकिन 1977 में मौका मिला तो डूंगरपुर के महारावल लक्ष्मण सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूरा जोर लगा दिया।

महारावल को सीएम बनाना चाहती थीं गायत्री देवी

दरअसल तब 200 सीटों की विधानसभा में जनता पार्टी को 151 सीटें मिली थीं और कांग्रेस 41 पर सिमट गई थी। 151 में से भारतीय जनसंघ से जुड़े 68 विधायक जीतकर आए थे और इनके नेता थे भैरों सिंह शेखावत। लेकिन, गायत्री देवी चाहती थीं महारावल को मुख्यमंत्री बनाना। स्वतंत्र पार्टी के पीलू मोदी से लेकर जय प्रकाश नारायण तक को गायत्री देवी ने फोन कर दबाव डाला। लेकिन, उनकी चली नहीं और फिर गायत्री देवी ने भी राजनीति से ख़ुद को दूर कर लिया।

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vrinda

मैं वृंदा श्रीवास्तव One World News में हिंदी कंटेंट राइटर के पद पर कार्य कर रही हूं। इससे पहले दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स न्यूज पेपर में काम कर चुकी हूं। मुझसे vrindaoneworldnews@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।
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