मातृभाषा का प्रयोग करने में केसी शर्म
हाल ही में मेरे साथ एक किस्सा एक लड़के ने मेरे को सोशल मीडिया के जरिए मैसेज भेजा। और पूरा समय उस लड़के ने अशुद्ध अंग्रेज़ी में। उसकी मूर्खता देख में उस पर बहुत हँसी। मैंने उसे बोला कि, ‘ ये ज़रूरी नहीं की तुम अंग्रेजी में बात करो। मुझे हिंदी आती है और हम हिंदी में बात कर सकते है।‘ तो इस पर उसने बोला कि, ‘ नही, इट्स ओके।‘
कुछ समय बाद तक भी मैं उसकी गलत अंग्रेजी सुनती रही। कई बार टोकने के बाद भी जब वह गलत फलत अंग्रेजी बोलता रहा तो मैने उससे एक प्रश्न पूछा की, ‘ गलत अंग्रेजी की जगह अगर तुम सही हिंदी बोलोगे तो क्या तुम छोटे हो जाओगे या तुम्हारी इज़्ज़त कम हो जाएगी?’ इस प्रश्न का उसके पास कोई जवाब नहीं था।
आजकल पाश्चात्य सभ्यता का बोलबाला इतना बढ़ गया है कि अपनी सभ्यता तो हम भूल ही गये है। इस नयी पीढ़ी के लिए अंग्रेजी भाषा इतनी महत्वपूर्ण है कि अपनी मातृभाषा को तो भूल ही गए है। अंग्रेज़ी का प्रयोग करना प्रतिष्ठा को बढ़ाता नहीं है। अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है जिसे सिखाया जा सकता है। पर हिंदी एक ऐसी भाषा जो हमारी अपनी भाषा है।
भारत में पैदा हुआ हर बच्चा अपनी भाषा को जानता व समझता है। कोई उसे कोख में हिंदी या अंग्रेजी पढाता नहीं है। तो हम ऊनी भाषा बोलने में हिचकिचाते क्यों है? हिंदी एक बहुत ही ख़ास भाषा है। इसे बोला जाए तो किसी का भी दर्जा या इज़्ज़त काम नहीं होगी।
इस भाषा की इज़्ज़त की जाए तो कल को यही भाषा हमे बहुत आगे लेके जाएगी। अंग्रेज़ी बोलने में कोई बुराई नहीं है। समझना ये है कि गलत भाषा बोलने से अच्छा सही ढंग से अपनी भाषा बोली जाए। ये भाषा हमारी पहचान, हमारी शान है।