उम्र और समझदारी साथ-साथ नहीं चलते
समझदारी उम्र के साथ नहीं आती
‘तुम तो इतने छोटे हो और अभी से इतनी बड़ी बड़ी बातें करते हो!’
‘तुम इतने बड़े हो कर भी ये छोटी सी बात नहीं समझ सकते।’
किसी की उम्र ये नहीं बताती की वो कितना समझदार और प्रौढ़ है। अक्सर हम यही मात खा जाते है। छोटे बच्चा अगर कोई समझदारी की बात बोले तो वो बड़ी बड़ी बातें करता है। हम ये अक्सर भूल जाते है कि लोगो की समझदारी उनकी उम्र के साथ नहीं बढ़ती। वो सीखते है अपने अनुभवों और अपनी अवलोकन करने की क्षमता से।
हम अक्सर ऐसी बाते कर जाते है जो शायद दूसरा व्यक्ति नहीं समझ पाता। वो शायद इसलिए क्योंकि हो सकता है, उन्होंने हम से इन बातों की उम्मीद ही ना की हो।हमारी उम्र, हमारी परिपक्वता का प्रमाण पत्र नहीं है। अब ऐसा हो सकता है कि कोई बच्चा किसी बात को कुछ समय में समझ और सीख जाए और वही बात किसी बड़े को सीखने में समय लगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हर व्यक्ति की सीखने और समझने की क्षमता अलग होती है, फिर चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो।
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अब अगर उदाहरण लिया जाए तो एक गरीब बच्चे को पैसे और खाने की अहमियत एक अमीर इंसान से ज्यादा पता होगी। किसी भी व्यक्ति की परिस्थितयां उसकी समझदारी और उसकी परिपक्वता को बुनती है। उसके वही हालात, उसका ढांचा होते है जिसमे वो ढलते है। हर कोई ज़िन्दगी का पाठ पढता है। वो अलग बात है कि हर कोई उसको एक बार में नहीं समझ पाता। पर अपने असूलों की पक्की ये ज़िन्दगी भी, हर कच्चे इंसान को सींच कर उसे भी समझदार बना देती है। हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार सीखता और उगता है पर वो हमेशा के लिए नासमझ नहीं रहता।
ये ज्ञान और ये समझ ऐसी नहीं है, जिसको किताबो में से पढ़ कर सीख लिया जाए। इसको सीखने और समझने के लिए हमे अपनी ज़िंदगी के हर पल को पढ़ना होगा। इसमें मौजूद हर व्यक्ति, हर किस्सा हमे कुछ सिखाता है। हमे वही सब सीखना है। सही यार गलत में फर्क कर, हमें उन सभी किस्सो से अपना ज्ञान बढ़ाना है। शुरुआत में ये बहुत कठिन होता है। पर धीरे धीरे आप सब सीखेंगे और समझेंगे भी। तभी आप समझदार बनेंगे और सही मायनों में प्रौढ़ भी कहलाएंगे।