काम की बात

एनडीए सरकार में जितने भी कानूनों में संसोधन किया गया, ज्यादातर का जनता ने विरोध किया है.

धारा 370 से लेकर कृषि बिल तक सबका सड़को पर लोगों ने विरोध किया है


किसान आंदोलन का आज सातवाँ दिन है. अब तक इस आंदोलन का कोई हल नहीं निकला है.  कल किसान संगठन और सरकार के बीच हुई बातचीत बेनतीजा रही है. अब अगली बैठक तीन दिसंबर को होनी है. इससे पहले ही किसानों ने अपने हक के लिए सरकार को आँख दिखाई है. आजादी के बाद कृषि कानूनों में भी बदलाव किए गए. लेकिन ऐसा देखा जा रहा है कि एनडीए की सरकार जब भी कोई नया कानून लाती है, जनता उसके विरोध में सड़कों पर आ जाती है. आज काम की बात पर हम ऐसे ही कुछ कानूनों के बारे में चर्चा करेंगे.

आज़ादी के बाद से ही कृषि को लेकर बदलाव होते रहे हैं. संविधान के पहले संशोधन में ही जमींदारी प्रथा को खत्म किया गया. साल 1950 में इस जमीदारी उन्मूलन बिल को लागू किया गया था. इसके बाद देश में कृषि की स्थिति को सुधारने के लिए हरित क्रांति लाई.

हरित क्रांति

हरित क्रांति की शुरुआत 1966-67 में प्रोफेसर नॉरमन बोरलॉग ने की थी. भारत में इसका जनक एम एस स्वामीनाथन को माना जाता है. इन्होंने ने ही सबसे पहली न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) की बात कही थी. हरित क्रांति के पहले देश में अकाल जैसे स्थिति थी. इसी क्रांति की बदौलत सिंचित और असिंचित कृषि क्षेत्र में अधिक उपज देने वाले संकर और बौने बीजों के उपयोग से ज्यादा उत्पादन किया गया था. इस सुधार के कारण कृषि के क्षेत्र आधुनिकता आई है..जिसके कारण धान, गेंहू की उपज में वृद्धि आई है. खाद्यान्न मामलों में आत्मनिर्भरता आई है.

नए कृषि बिल में सरकार ने तीन सुधार किए है. जिसे लेकर लगातार विरोध जारी है. उत्तर भारत के अलग अलग हिस्सों से किसान दिल्ली आकर अपना विरोध जाहिर कर रहे हैं. साल 2014 के बाद आई बीजेपी सरकार ने जितने भी कानून पारित किए है उनका ज्यादातर का जनता ने विरोध किया है. पिछले छह सालों में जितना लोग सरकार का समर्थन कर रहे हैं उतना ही उनके द्वारा लाए गए कानूनों का विरोध भी कर रहे हैं.

कृषि बिल

एनडीए सरकार द्वारा कोरोना काल के दौरान तीन कृषि बिल, आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020, और मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा विधेयक, 2020 के किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौते को संशोधित किया गया था. इस संसोधन के बारे में  सरकार का कहना था कि नए बिलों से किसानों की आय बढ़ेगी और किसान आत्मनिर्भर बनेंगे.

अब इस कानून के खिलाफ  पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान इस कानून को खत्म करने की मांग कर रहे हैं.  उनका कहना है कि इन कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) समाप्त हो जाएगा और कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट का दबदबा हो जाएगा.  कुछ किसानों को डर है कि जब वे अपनी उपज के साथ कॉरपोरेट्स के पास जाएंगे, तो खरीदार कह सकते हैं कि उत्पाद की गुणवत्ता अच्छी नहीं है, ताकि उन्हें उपज के लिए कम पैसा देना पड़े. वही दूसरी ओर केंद्र सरकार किसानों को आश्वस्त करने के प्रयास कर रही है उन्हें बार-बार कह रही है कि उन्हें एमएसपी मिलती रहेगी. इस कानून के द्वारा वे बिचौलियों के चंगुल से मुक्त हो जाएंगे और उनकी आय में वृद्धि होगी. एनडीए सरकार ने यह भी बनाए रखा है कि कृषि के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ेगा. सरकारों के तमाम प्रयासों के बावजूद, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसान अभी भी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से नए संशोधन वापस लेने के लिए कह रहे हैं. इस बीच किसान लगातार विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, उन्हें दिल्ली-हरियाणा और हरियाणा-पंजाब सीमा पर कोरोनोवायरस का कारण बताते हुए रोक दिया गया था.पुलिस ने प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल भी किया. फिलहाल किसान बुराड़ी के  निरंकारी ग्राउंड में 6 महीने का राशन लेकर बैठे हैं . और कह रहे हैं जब तक इस कानून को सरकार वापस नहीं लेगी वो दिल्ली से वापस नहीं जाएंगे.

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नागरिक संसोधन कानून

पिछले साल सरकार द्वारा लाए गए नागरिक संसोधन कानून का पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हुआ. इस कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के अल्पसंख्यको को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इसी कानून का विरोध करते हुए पूरे देश की जनता सड़कों पर आ गयी थी.लोगों का कहना था कि इस कानून के तहत देश के अल्पसंख्यको को लगाने लगा था कि उनकी नागरिकता खतरे में आ गई. दक्षिण भारत के लोगों के कहना था कि अगर कानून के तहत तीन देशों के प्रताडितों को नागरिकता दी जा सकती है तो श्रीलंका के रह रहे तमिल हिंदुओं को भारत मे शरण क्यों नहीं दी जा सकती है. वो भी तो वहां अल्पसंख्यक है उन्हें भी तो प्रताड़ित किया जाता है.

तीन तलाक

तीन तलाक खत्म करके मोदी सरकार ने भले ही मुस्लिम महिलाओं से तारीफ पाई है लेकिन दूसरे तरफ कुछ लोग इसका विरोध भी कर रहे है. कानून के अनुसार अगर कोई शख्स अपनी बीबी को फ़ोन, या सामने से तीन पर तलाक कहकर रिश्ता खत्म करता है तो उसे 3 साल की सजा होगी. इस पर जनता का कहना था कि एनडीए सरकार मुसलमानों को जान बुझकर परेशान कर रही है.आपको बता दें इस कानून से पहले कई मुस्लिम महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ में याचिका लगाई थी. मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीन तलाक को खत्म किया गया था.

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जीएसटी

भारतीय संसद ने 1 जुलाई, 2017 को “वन नेशन, वन टैक्स, वन मार्केट” में भारत को एकजुट करने के लिए कई राज्यों के करो को समाप्त करने और राज्यों में एक आम टैक्स स्लैब के साथ सामान और सेवाओं को लाने के लिए गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स लॉन्च किया. इसे लागू करने के पीछे सरकार ने तर्क दिया  कि जीएसटी कागजी काम को कम करेगा, लॉजिस्टिक में मदद मिलेगी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा. जो विदेशी और घरेलू दोनों उपभोक्ताओं के लिए आसान होगा. भारत ने अपनी लगभग तीन बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और 130 करोड़ से अधिक लोगों को एक साझा बाजार में एकीकृत किया. जीएसटी को एक उपाय के रूप में देखा जाता है जो लंबे समय में लाभ प्राप्त करेगा. हालांकि, जब देश भर में जीएसटी लागू किया गया था, तो छोटे दुकानदारों और खुदरा विक्रेताओं ने इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि जीएसटी लागू होने के बाद से उनके लिए कारोबार करना मुश्किल हो गया है. चार टैक्स स्लैब बनाए गए थे जिसमें सभी सेक्टर्स डाले गए थे। एक जटिल जीएसटी के कारण, दैनिक आधार पर परिवर्तन किए गए थे. इसने कई लोगों के लिए समस्याएं खड़ी कर दी थी. छोटा व्यापारी को इसे समझने में परेशानी हो रही थी. इसकी जटिलताओं के कारण लोगों ने बिल की आलोचना करना शुरु दी. जीएसटी को वापस लेने के लिए देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए. विशेषज्ञों ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि भारतीय बाजार जीएसटी जैसे सुधार के लिए तैयार नहीं था, खासकर जब पहले से ही विमुद्रीकरण हो चुका था और भारतीय अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही थी.

धारा 370

संघ के अखंड भारत के सपने को पूरा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त को धारा 370  और 35ए को निरस्त कर दिया था. यही दो धाराएं जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देती थी. इन धाराओं के हटने के बाद से ही जम्मू- कश्मीर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया.आज़ादी के बाद से ही यह विवाद का मुद्दा रहा है. लेकिन धारा हटने के बाद भी ये विवाद थमा नहीं. 5 अगस्त के बाद पारित हुए कानून के बाद जम्मू-कश्मीर समेत पूरे देश मे इसको लोग विरोध शुरू हो गया.

ख़बरों की माने तो इस कानून के पारित होने के बाद कश्मीर की सड़कों पर लगभग 10,000 लोग विरोध कर रहे थे. इसका विरोध सिर्फ भारत मे ही नहीं हुआ बल्कि विदेशों में भी हुआ. 10 अगस्त 2019को लंदन में हाई कमीशन ऑफ इंडिया के बाहर प्रदर्शन किया.  इसके अलावा टोरंटो, कनाडा में भी इसको लेकर विरोध हुआ.

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