पहली लहर में कोरोना एक वायरस लगता था, अब मौत दिखाई देती है
लॉकडाउन के लिए लोग पहले से तैयार थे.
पिछले साल जब पहली बार लॉकडाउन हुआ था तो लगा जिदंगी में कुछ अलग हो रहा है। रोज के काम से थोड़ी राहत मिलेगी। यह कहना है दिल्ली में रहने वाले डॉ. नितिन कुमार वर्मा का जो दिल्ली विश्वविद्यालय के भारती कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है। अप्रैल के पहले सप्ताह में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप दिल्ली और अन्य राज्यों में शुरु हो गया था। आलम यह था कि एक दिन में दो लाख से भी ज्यादा के संक्रमित केस सामने आने लगे। चारों तरफ हाहाकार मचने लगा। अपनी जान बचाने के लिए लोग ऑक्सीजन की तलाश में इधर-उधर भटकने लगें। हर कोई अपने-अपने परिजनों को बचाने की जद्दोजहद में लगा हुआ है। इस दौरान लोगों ने दोबारा से लॉकडाउन की मांग करते हुए। सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड करवा। जिसका नतीजा यह हुआ कि रोजाना आने वाले केसों में कमी हो गई है। महाराष्ट्र, दिल्ली के बाद अब चार मई से बिहार में भी 15 मई तक के लिए लॉकडाउन लगा दिया गया है। इन राज्यों की स्थिति सबसे ज्याद खराब है। इस साल के दौरान लोगों को दो बार लॉकडाउन का सामना करना पड़ा है।
डॉ. नितिन का कहना है कि पिछले साल लगे लॉकडाउन के शुरुआती दौर में कुछ तो अच्छा लगा उसके बाद चीजें परेशान करने लगी। पिछले बार आंकड़े कम थे तो लोग इतना ज्यादा परेशान नहीं थे। अब तो आलम यह हो गया है कि अब हमारे आमने-सामने नजदीकी लोग बीमार पड़ रहे हैं। इस बार के लॉकडाउन में इंजॉय की जगह टेंशन ज्यादा हो रही है। रोज आती मौत की खबरें दिल को दहला रही है। कुछ लोग मजबूर है। कमाने के लिए उन्हें बाहर निकलना ही पड़ रहा है। ऐसी स्थिति एक इंसान को सिर्फ फ्रस्टेट कर रही है। इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है।
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देश में इस वक्त कोरोना के कुल केस 2,06,65,148 है जिसमें 34,87,229 एक्टिव केस है। इस वक्त महाराष्ट्र का सबसे बुरा हाल है। महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटे में 51,880 नए मामले सामने आएं है। और 891 लोगों में जान गंवाई है। रवि राउत महाराष्ट्र के नागपुर के रहने वाले हैं और एक स्टूडेंट हैं। रवि का कहना है कि महाराष्ट्र में जिस तरह से मौंतों का सिलसिला चल रहा था। उसके लिए एक मात्र रास्ता लॉकडाउन ही थी। लेकिन इस बीच अच्छी बात यह है कि इस बार के लॉकडाउन का अंदाजा लोगों को पहले ही हो गया था। इसलिए लोगों ने इसके लिए अपने आप को तैयार भी रखा था। पिछली बार जब तालाबंदी हुई थी तो मैं यूनिर्वसिटी में था। लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में तो लगा जिदंगी में कुछ अलग हो रहा है। रोज की डेली लाइफ से हटकर कुछ होने जा रहा है लाइफ में, लेकिन धीरे-धीरे यह एक्साइटमेंट फ्रस्टेशन में बदल गई। हालात यहां तक हो गई कि पढ़ने की भी इच्छा नहीं करती थी। इस बार कम से कम हमें पहले से ही इन चीजें के लिए तैयार थे। इसके साथ ही इस बार हुए लॉकडाउन में जरुरी चीजें आसानी से मिल रही है। जो लोगों की परेशानी को कम रही है।
लॉकडाउन पहला हो या दूसरा हर घऱ में महिलाओं को परेशानी ज्यादा होती है। हर किसी को देखना घर के हर काम को मैनेज करना इसके साथ ही अपना ख्याल रखना होता है। दिल्ली में रहने वाली रुपा एक टीचर है। पिछले साल हुए लॉकडाउन के दौरान वह अपने घर से दूर थी। इस बार वह अपने घर में ही है। रुपा कहती है कि पिछली बार भले ही मैं घर से दूर थी। लेकिन मन में कोरोना के लेकर इतना डर नहीं था। हां यही लगता था कि अपना ध्यान रखना है। लेकिन इस बार स्थिति बहुत ही भयावह हो गई है। मेरे नजदीकी लोगों की कोरोना के कारण मौत हो गई है। घर में ही कोरोना के मरीज है। हालात यह है कि चाहकर भी मैं उनकी मदद नहीं कर पा रही हूं। अब डर लगने लगा है पिछली बार कोरोना एक वायरस लगता था अब तो उसमें सिर्फ मौत दिखती है। जब भी सोशल मीडिया और टीवी खोलती हूं तो सिर्फ मौत की ही खबरें आती हैं। पता नहीं इन सबका अंत कब होगा।
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